कहानी:स्वीटू
शादी को कुछ महीने ही गुजरे थे एक दिन अचानक स्वीटू ने आकाश से चाय की टेबल पर कहा"दिन भर मै यहां इस घर मे ऊब जाती हूं प्लीज मेरी जोब की बात कहीं करो ना. मै भी स्कूल मे पढाना चाहती हूं"
"घर मे ट्यूशन कर लो. वक्त भी गुजर जायेगा और तुम्हे बोरियत भी महसूस नहीं होगी." आकाश ने जवाब दिया. और चुप चाप अपनी बाइक से स्कूल की ओर तेज गति से चला गया. स्वीटू उसकी तरफ़ एक उम्मीद से देखती रही और उसके व्यवहार को समझने की कोशिश करती रही.
आकाश अपने घर से १५ किलोमीटर दूर एक क्रिश्चियन स्कूल मे बायो लेक्चरर है आज शायद उसके स्कूल मे यूनिट टेस्ट थे. टेस्ट के बाद वो स्टाफ़ रूम मे आकर देखा तो सब अपनी ड्यूटी से वापिस नहीं लौटे है वो चुपचाप अपनी सीट मे बैठ गया और सुबह सुबह अपनी लाइफ़ पार्टनर स्वीटू की सुबह की बात पर सोचने लगा. उसे आज वह शाम याद आगयी जब वो शादी के एक महीने पहले स्वीटू से रूटीन फ़ोन से बात कर रहा था और स्वीटू ने अपनी बात उसके सामने रखी थी.
"मैने सोच लिया है शादी के पहले स्कूल पढाने नहीं जाउँगी, एक तो इतना दूर. और दूसरी सबसे बडी बात कि मुझे और अपने मम्मी पापा के साथ रहना शादी के पहले कुछ दिन और रहना है."- स्वीटू ने फ़िर से एक बार अपने विचार आकाश के सामने रख दिये.
आकाश और स्वीटू लगभग सात सालों से एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते है दोनो की सहमति से और दोनो परिवारों की सहमति से शादी भी बहुत जल्द करने वाले है. दोनो एक दूसरे से प्यार कितना करते है इस बात का अभास आकाश को बखूबी है पर स्वीटू इस बात को जान बूझ कर अनदेखा कर मन ही मन मुस्काती है. दोनो पेशे से शिक्षक है अभी तक अलग स्कूल मे अपनी सेवाएँ देरहे थे. आकाश ने कोशिश करके अपने स्कूल मे फ़ादर से कहकर आर्ट और म्युजिक के लिये स्वीटू की नौकरी भी लगवा दी थी.
दोनो का परिवार मध्यम वर्ग से ताल्लुकात रखता है. आकाश का फ़क्कडपन और शेरो शायरी मे रुचि ने उसे विज्ञान के क्षेत्र से साहित्य की जमीन मे खडा कर दिया. इस दरमियाँ एक मुशायरे मे उसकी मुलाकात स्वीटू के पिता जी से हो गयी. दोनो की उमर मे काफ़ी अंतर जरूर था .दोनो को एक ही डोर जोडती थी. और वो थी शेरो शायरी. एक लम्बा वक्त गुजर गया साथ साथ मे इस्लाह करते हुये
जब कुछ आकाश के द्वारा लिखा जाता तो स्वीटू के पिता जी को जरूर दिखाया जाता, इस तरह एक तरह से स्वीटू के यहां आना जाना भी शुरू हुआ. एक दिन की बात है आकाश भी शादी के बारे मे सोच रहा था उसे महसूस होने लगा था कि स्वीटू उसके जीवन के लिये सही चयन है. साहित्यिक रिस्ते पारिवारिक रिस्तों मे बदले जा सकते है. उसने तुरंत ही स्वीटू के पिता जी को फ़ोन लगाया और अपने मन की सारी बात कह दी. उन्हे इस बात की खुशी थी कि आकाश ने इतनी बेबाकी से सारी बात कही थी कि उसकी ईमानदारी पे संदेह तक नहीं किया जा सकता था, और उसने यहां तक कहा कि इस बात के बारे मे वो स्वीटू से भी पूँछ ले. अंतत: दोनो परिवारों के बीच रिस्ते की बात हुयी और आकाश और स्वीटू की शादी की डेट भी तय हो गयी. आकाश और स्वीटू ने यह भी तय किया कि साथ मे नौकरी करेगे तो सही रहेगा. इसी वजह से आकाश ने बाहर की नौकरी को समय से पहले छोडकर अपने शहर के अपने पुराने स्कूल मे दोनो की नौकरी तय करवाई.दोनो की सगाई जो स्कूल शुरू होने के पहले होनी थी वो आकाश के बाबा जी के स्वर्ग सिधार जाने की वजह् उस वक्त नहीं हो पायी.
जिस दिन इस सगाई की डेट निरस्त की गई थी उसी दिन आकाश को लगने लगा था की अब शायद स्वीटू के परिवार के लोग उसे स्कूल नहीं जाने देगे वो भी शादी के पहले. और जब शादी भी तय हुयी तो वो भी नये सत्र के अंतिम सप्ताह मे .बहुत बडी दुविधा थी. सब अपनी जगह सही थे.स्कूल के फ़ादर से बात करने पर यह परिणाम निकला कि नये सत्र मे १०-१५ दिन आकर स्वीटू स्कूल के महौल को देख ले सभी के साथ फ़ेमीलियर हो जाये उसक बाद वो समर वेकेशन के बाद कान्टीन्यू कर लेगी.वरना फ़िर जून और जुलाई मे ज्वाइनिंग मुश्किल हो जायेगी.और पूरा सत्र बरबाद हो जायेगा,
जब से नई शादी की डेट आई थी तभी से आकाश स्वीटू आपस मे बात करते थे. जब भी स्कूल का मुद्दा आता तो स्वीटू हँसते हँसते आकाश के साथ नये सत्र मे स्कूल चलने की बात करती. इसी बहाने दोनो को कुछ सुकून मिल जाता था. धीरे धीरे वक्त गुजरने के साथ ही स्वीटू के घर का माहौल बदलने लगा. वो स्कूल भेजने के विरोध मे स्वीटू के ऊपर दबाव बनाने लगे. जब यह बात आकाश को पता चली. तो आकाश ने स्वीटू को फ़ादर से हुये डिस्कशन के बारे मे विस्तार से बताया. और यह भी सुझाव दिया कि १५ दिन की बात है उसके बाद तो सब सही हो जायेगा. इस मामले को लेकर आकाश ने अपने घर .. और स्वीटू के घर के सभी सदस्यों को हर तथ्य और मजबूरियॊं को समझाया.
किसी तरह अपने घर की सहमति के बाद ,आकाश को आभास हुआ की स्वीटू की माँ की सबसे बडी समस्या है वो समाज को ज्यादा ही तवज्जो देती है और उनके रूखे व्यव्हार का प्रभाव स्वीटू के बात करने मे साफ़ दिखाई देने लगा था.स्वीटू की माँ का मानना था "इतना दूर शादी के कुछ दिन पहले कैसे जायेगी मेरी फ़ूल से बच्ची. समाज क्या सोचेगा. हमे भी तो इसी समाज मे रहना है" शादी के बाद जाती तो सब सही होता, ठीक है,आकाश है साथ मे पर कैसे भरोसा हो इस जालिम समाज मे"
आकाश को जब यह बात पता चली तो वो एक दिन स्वीटू के घर उसके माँ और पापा से मिलने गया. वहाँ पर स्वीटू की माँ को अपने मन की बात बताई"देखिये मैम, मैने आप सब के यकीन के चलते स्कूल मे किसी तरह स्वीटू के जाब की बात की आप इस तरह दकिया नूसी विचारों के चलते क्यों उसका भविष्य बरबाद कर रहीं है. यदि मै आपसबके यकीन के चलते स्वीटू को अपनी मंगेतर के रूप मे मान चुका हूं और स्कूल मे सभी से मिलवाया. और शादी भी उसी से करूंगा. तो १५दिन की ही बात हैसिर्फ़. मै हूं ना. अब वो मेरी भी जिम्मेवारी हैआप कम से कम मेरे यकीन के बारे मे भी सोचिये. और फ़िर समाज के बारे मे सोचिये. मेरी स्वीटू से कोई सगाई नहीं हुयी फ़िर भी अपने यकीन के चलते मै उसको अपनी मंगेतर बता सकता हूं ,और आप मुझ पर इतना यकीन नहीं कर सकती हैं"
. लेकिन वो महिला टस से मस नहीं हुई. आकाश चिरौरी करके हारगया पर. परिणाम शून्य आया,और आखिरकार घर के दबाव के चलते
एक शाम स्वीटू ने कह ही दिया कि वो शादी के पहले स्कूल नही जा पायेगी. वजह कुछ भी रही हो पर आकाश भी जान गया कि माँ का असर स्वीटू की बातचीत से दिखने लगा. वो भी क्या करती आकाश को दिलाये गये सारे यकीन. आकाश के साथ किये गये सारे वादे एक तरफ़ थे और अपनी माँ की खुशी एक तरफ़ थी. वो आकाश के लिये अपनी माँ को दुःख नहीं देसकती थी. उसने अपने कैरियर को अपनी माँ की खुशी के लिये बलिदान कर दिया.
स्वीटू ने आकाश के सारे प्रयासों और सारी कोशिशो को बिना समझे इस मामले मे उसका साथ नहीं दिया और सभी के सामने वो आकाश को बुरा बना ही चुकी थी, जिस स्वीटू के लिये आकाश ने बिना किसी रस्म के अपनी मंगेतर मान लिया था उसी ने उसका ऐन वक्त पे साथ छोड दिया, आकाश ने सारी बातॊं को एक ही पल मे भांफ़ लिया. उसने स्वीटू को अन्तिम बार शादी के पहले फ़ोन किया और कहा "स्वीटू,मैने बहुत सोचकर यह परिणाम निकाला है कि यदि तुम सत्र की शुरुआत मे स्कूल नहीं जाओगी तो शादी के बाद तुम नौकरी नहीं करोगी.बाद मे देखेगे’ और यही बात उसने स्वीटू के पिता जी से भी कह दिया,
और तब से आज तक कई महीने बीत गए. आज स्वीटू घर मे रहती है.इस पूरे घटना चक्र मे सब बिखर गया. वो आज भी नहीं समझ पायी की उसका स्कूल ना जाने का निर्णय कितना सही था.