मंगलवार, 12 मार्च 2024

अखबार वाले संजय भैया

 अखबार वाले संजय भैया 


संजय नाम से कोई ना कोई मेरी कहानी का किरदार हो जाता है। इस बार ही ले लो संजय भैया अखबार देने वाले। 

इस बार अखबार का पैसा लेने आए तो कार्यालय में लग गया दरबार हम दोनों का। जबसे मारुति नगर में घर है हमारा तब से अखबार देने का काम संजय भैया कर रहे हैं।

संजय भैया मुख्त्यारगंज में रहते हैं, जब हम लोग पंडित हरीराम उमरिया जी के यहां किराये से रहते थे तो तो उनके बड़े भैया अखबार देते थे। अखबार और मेरा एक विशेष संबंध रहा। पहले अपना परीक्षा परिणाम देखने के लिए, फिर नवभारत में सृजन पेज पर अपनी रचनाएं देखने के लिए, सृजन बहुत पहले सुरेश दाहिया जी नवभारत में देखा करते थे। उसके बाद साहित्यिक गतिविधियां होती तो उसके समाचारों की कटिंग के लिए, अब तो सभी अखबार ई पेपर्स के रूप में मोबाइल में उपलब्ध होते है।

मुझे याद है, जब मै सिंधु स्कूल में और स्वशासी महाविद्यालय में पढ़ता था तो स्वामी चौराहे में पांड़ेय किराना स्टोर में पेपर पढ़ने या फि उरमलिया जी के यहाँ नवभारत और दैनिक भास्कर पेपर पढ़ने जरूर जाता है। फइर जब आमदनी हुई तो अखबार खरीदकर पढ़ने लगे। वह सिलसिला आज भी जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगा।

संजय भैया हमारे रोटीन में रहने वाले इंशान हैं,उनका इंतजार पेपर पढ़ने के लिए पहले हमारी मम्मी करती थी उसके पहले जब भी हमारी दादी आई सतना वो भी अखबार के लिये किया करती थी और अब पापा जी के जीवन का अहम हिस्सा अखबार और अखबार बांटने वाले संजय भैया हैं।

इस बार संजय भैया फुरसत में दिखे तो मैने भी उनके साथ दरबार करना शुरु कर दिया, बातों ही बातों में पता चला कि वो चार सौ अखबार आज भी हमारे मारुति नगर में बाँटते है। मैने कहा भैया इसमें क्या कमाई होती है। 

-कहाँ अनिल भैया, बचत करने पर हर पेपर में पचास पैसे बच जाते हैं, अब तो यह आदत में शामिल है तो कर रहे हैं, नहीं तो कहाँ अब साइकिल चलाई होती है, और कहाँ -लोग अखबार पढ़ते हैं।

आने वाली पीढ़ी क्या अखबार बाँटेगी? मैने पूँछा

- या मानी भैया, हमरे बाद कौनो य अखबार न बाँटी, अबहिन न ही सोहात हमरे बच्चन का।

तो भैया अखबार बस है या कुछ और भी काम धाम करते हैं आप,

हुए गा, सुबह अखबार बाटेंन और ओखर बाद दिन भर दुकान किहेन। हमार पिता जी त अखबारै बस बांटत् रहें। पर अब कहाँ गुजारा है, मँहगाई बहुत कै ही।

तो भैया सब समय से पैसा दे देते हैं। या परेशान करते हैं।

जब कोविड़ रहा तो अखबार लेते थे लोग या बंद कर दिये थे?

कोरोनाकाल भी गजब रहा है भैया, बहुत कम लोग अखबार लेत रहें, पहले दिन भर धूप मा अखबार पड़ा रहे फिर सांझ के उठा लेत रहें। कोरोनाकाल तो केहुका ना भूली, ऐसन महामारी जीवन म न देखन भैया। वहिन समय त किराने केर दुकान हम कीन्हेन, और प्लाट खरीद के घर बनवायेन। 

मतलब कोरोना में आपने मौके का फायदा उठाया।

वो ठहाका मारकर हंस दिये

ऐसन है भैया बीस परसेंट पैसा बुला के देत हें, पर अधिक्तर रोबाय मारत हें, पैसा लेंय के खातिर बहुत चक्कर लगावै क पड़त है।

हमी याद है कि पहिले पचास रुपिया महीना रहा है, तबहुँ लोगन के पास समय से देंय का पैसा नहीं रहा, अब तो डेढ़ सौ लागत है तो और बेगारी छाई रहत है, सब ज्यादा ही  खर्च करत हें दूसर कामन माँ पर अखबार के खातिर जेब खाली रहत ही।

मै संजय भैया की मजबूरी और पीड़ा समझ रहा था, वो आखिर कहना क्या चाह्ते थे, पहले तो अखबार लोग शौक से खरीदते, पढ़ते और रखते थे, परन्तु अब इतना महत्व कहां रह गया।

संजय भैया कौन सा अखबार सबसे ज्यादा बेंच लेते हैं,

भैया दैनिक भास्कर की बिक्री ३००, पत्रिका १००, और छुट पुट स्टार, स्वदेश, जनसंदेश बिकत है। कमीशन भास्कर म कम है औरन की जगह। भास्कर और पत्रिका आगे भी चलत रही, बाती त ऐसनै आहें।

मुझे याद है जब मै संगोष्टियों के समाचार देने अखबारों में जाया करता था तो स्टेशन रोड़ में होटल शिवम के नीचे  रोड़ में बोरी बिछाकर एक बुजुर्ग देश दुनिया के सभी अखबार बाँटा करते हैं,  सुबह से उनके पास खूब भीड़ रहा करती थी। इस समय दिखते नहीं हैं, क्या हुआ उनका।

उईं या दुनिया छोड़कै चले गें, बहुत साल अखबार बेचिन। अबहु एक दुई जने वहिन ठाँय अखबार बेंचैं का बैठत जरूर हैं पर उतनी बिक्री नहीं आय। 

कितना हुआ आपका भैया इस महीने

वही डेढ़ सौ,।

मैने उनको पचास की तीन नोट दी, वो उसे अपने जेब में डालते हुए बोले।

अनिल भैया चलित हैन कुछ और उगाही कर लीन जाय, एजेंसी में कल सब जोड़ जाड़ के देंय का पडी, तब हमार कमीशन बनी।

ठीक है भैया, फिर मुलाकात होती है।

संजय भैया जैसे व्यक्ति आज भी अखबार को समाज में बाँटकर जन सुलभ बनाये हुए हैं, वरना कहाँ लोगों को अखबार खरीदने की फुर्सत है और कहाँ पढ़ने की फुर्सत है।


अनिल अयान

 


रविवार, 7 मई 2023

ईमानदारी प्रणम्य थी

ईमानदारी प्रणम्य थी
कल दोपहर को मैग्जीन पीडीएफ सबको भेजकर जैसे ही घड़ी पर नज़र पड़ी तो देखा कि धानी की वापसी का समय हो चुका है।
धानी छुट्टियों में स्कूल में लगे समर कैंप में ट्रेनिंग ले रही थी, सुबह मां के साथ जाना और 11-30 बजे मेरे साथ वापिस लौटना तय था।
मैंने आफिस का शटर गिराया और मोबाइल लोवर के जेब में डालकर धानी को लेने बाइक से उसके स्कूल चल दिया। बगल में प्रेस वाले सुरेश भैया ने पूछा तो लौटेंगे अभी?
धानी को घर छोड़कर लौटूंगा।
रास्तेसे में खुदाई की वजह से सड़क बहुत ही खराब हो चुकी थी। एम पी नगर की सड़कों के हाल तो और बदतर थे। इसी दस्चा दच्ची में मेरा मोबाइल जेब से खिसक गया। रामाकृष्णा कालेज के पास जेब में हाथ गया तो मोबाइल गायब था।
मन में आया कि जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते में वापिस लौटकर देखते हैं शायद मिल जाए।गिरे पैसे और मोबाइल मिल जाए तो भाग्य ही है। गाड़ी 10 की स्पीड से ले जाते हुए और नजरों के स्कैनर से सड़क स्कैन करते हुए वापस कार्यालय पहुंचा।
सुरेश भैया ने पूछा जल्दी आ गए।
मैं बोला कि भैया समय खराब चल रहा है मोबाइल गिर गया है।
वो बोले आफिस में तो नहीं रख दिए?
मैंने आफिस में भी देखा तो मोबाइल था ही नहीं।
मैं वापिस चल दिया।धानी को लेने। इस, बीच सुरेश भैया ने फोन लगाया तो घंटी जा रही थी।
वो बोले आप जाइए मैं कोशिश करता हूं, शायद कोई ईमानदार मिल जाए तो वापस कर दे।
मैंने कहा कहां भैया, अब वो जमाना नहीं है, घर में दस गालियां खाना तय ही है।
धानी को बचपन स्कूल से लेकर वापसी में उसे भी कहा कि एक तरफ तुम देखना एक तरफ मैं। मोबाइल मिले तो बताना।
रास्ते में धानी बोली पापा आपके मोबाइल का कवर दिखा।
मैंने गाड़ी घुमाकर और रोक कर देखा तो काला मोबाइल कवर था पर मेरा नहीं था।
रास्ते भर यही ख्याल, गरीबी में आटा गीला, पांच साल पहले रेडमी नोट एट प्रो 14000 में उस समय लिया था। उससे समाचार भेजना फोटो खींचना, रिकार्डिंग करना और तो और पूरा बैंकिंग, कियोस्क, आनलाइन क्लासेज, मीटिंग्स वेबीनार आदि करता रहा, बहुत सी महत्वपूर्ण वीडियो क्लीपिंग्स थी। एक झटके में सब खत्म।
आज के समय पर कम से कम बीस हजार रुपए चाहिए तब तो ऐसा मोबाइल मिलेगा। पूरा‌ बिजनेस उसी से। तीस हजार की सैलेरी में बीस हजार मोबाइल पर कैसे खर्च करेंगे। पत्नी से मांग नही सकते। मुसीबतें भी बिना बुलाए आ ही जाती हैं।
अब तो खाली हाथ हो गये, चार दिन में पारिवारिक शादियां अलग से उसके खर्चे भी देखना।
यही सब सोचते सोचते अपने आफिस पहुंचा
, तभी बगल से सुरेश भैया आवाज लगाए, सर जी आपका मोबाइल मिल गया।
मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ। मेरे मुंह से निकला क्या बात कर रहे हैं सुरेश भैया।।। कैसे मिला।
सुरेश भैया बोले आपके जाने के बाद मैं लगातार घंटी करवाता रहा, तभी अचानक फोन उठा वहां से से किसी बुजुर्ग की आवाज आई। मैंने बोला कि मेरा मोबाइल गिर गया है, आप कहां हैं मैं आकर ले लेता हूं।
सामने वाले ने कहा कि बरदाडीह रेलवे के पास पहुंच रहा हूं। कुछ खर्चा पानी दे दीजिए और मोबाइल ले ले लीजिए।
वो मारुति नगर की शुरुआत में ही सुरेश भैया के कहने पर दुकान तक आया। सुरेश भैया ने उसे 200 लिए और नाश्ता पानी कराया।
उसने मोबाइल सही सलामत सुरेश भैया को दे दिया।
सुरेश भैया ने जब मुझे यह घटना और उस इंसान के बारे में बताया तो मुझे की, वो बहुत ही ईमानदार था। वो हजार दो हजार भी मांग सकता था,
या फिर रखे रहता बेंच देता तो आठ दस हजार आराम से मिल जाता। पर वो निहायत ही ईमानदार था।
मैंने सुरेश भैया को पैसे आनलाइन भेज दिया।मैंने कहा भैया वो आदमी वाकयै भगवान ही था।
आज के समय पर वर्ना गिरे पैसे मोबाइल कभी नहीं मिलते।
सुरेश भैया ने कहा है सकता है कि आपकी नीयत गलत नहीं रही ती तो आपके लिए किसी ने गलत नहीं किया। आपकी ईमानदारी काम आ गई।
पूरे घटनाक्रम में भगवान रूप में सुरेश भैया और वो अनजान व्यक्ति जिसे मैं नहीं जानता था मेरे सामने थे।
सुरेश भैया ने यदि छोटा भाई समझ कर मदद नहीं की होती तो न वो इंसान मिलता ना मोबाइल मिलता।
पच्चीस हजार तो लगने ही थे। क्योंकि मेरा पूरा काम सिर्फ स्मार्टफोन से ही चलना था।
मैं हृदय से इन दोनों इंसान के रुप में भगवान स्वरूप ईमानदार व्यक्तियों को प्रणाम करता हूं।।। ईश्वर दोनों को स्वस्थ और प्रसन्न चित्त रखे। दोनों को कोई कष्ट न हो।।।।
अनिल अयान।

गुरुवार, 9 मार्च 2023

कहानी- रिश्ते की ब्याज

कहानी- रिश्ते की ब्याज -अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान",सतना
सुबह का अखबार देखते ही नीलेश के होश उड गये.शशिकांत की गुमशुदगी की सूचना उसकी नजरों के सामने घूम रही थी.जब वो शशिकांत के बारे में सोचता तो उसे हमेशा ही क्षोभ सा महसूस होता था.कुछ समय पहले की ही तो घटना है कि शशिकांत के बडे भाईसाहब से उसकी काफी बहस भी हुई थी. शशिकांत नीलेश के परिवार के दूर के रिश्तेदार थे. रिश्ते में वो नीलेश के चाचा जी लगते थे.लेकिन थे हम उम्र ही.नीलेश को बातों ही बातों में पता चला कि शशिकांत की अपने बडे भाई साहब के साथ तीखी बहस हुई थी.पिता जी की अमानत के रूप में शशिकांत बडे भाई साहब की जिम्मेवारी बन गये. बचपन में ही मां और बाप की छत्र छाया उनके सिर से उठ गई थी. बडे भाई के साथ कपडे सिलने की दुकान में काम करते हुये उन्होने मैट्रिक तक किसी तरह पढाई पूरी की.फिर प्राइवेट बीए कर लिया.दुकान में जब जेब खर्ची भी न निकल पाई तो तीन हजार रुपये की महीने की पगार में वो नामी गिरामी आटोमोबाईल्स में आफिस ब्वाय बन गये.
      इधर बडे भाईसाहब की शादी एक बडे घराने में तय हो गई.उनके ऊपर अपने परिवार की जिम्मेवारी बढने लगी,पहले पत्नी और फिर बडे होते दो बच्चे.बडे भाई साहब को पता ही नहीं चला कि कब उनके बच्चे नन्हे मुन्हे बच्चों की श्रेणी से कालेज गोईंग नौजवान हो गये.और शशिकांत नौजवान से अधेड होते चले गये. वो आफिस ब्वाय से स्टोर कीपर फिर स्टोर कीपर से आफिर इंचार्ज में प्रमोशन होता चला गया.घर से भी उनका लगाव लगभग ना के बराबर रहा. सुबह का नाश्ता,रात का खाना और सोना बस इतना ही संपर्क रहा.बातचीत के नाम पर महीने का कुछ हजार रुपये देने की बात होती थी.जैसे कोई पेइंग गेस्ट घर में रह रहा हो,बडे भाईसाहब की पारिवारिक जिम्मेवारियों ने उनके दिमाग से शशिकांत की जिम्मेवारी को काफी पीछे छॊड दिया.बच्चों को पढाने के साथ अन्य निर्णयों में बडे भाई साहब के साढू भाई का योगदान अधिक होता था.
      नीलेश की मुलाकात जब भी शशिकांत से यूं तो यदा कदा होती थी.परन्तु जब भी होती तो उनका दुखडा हमेशा मेरे सामने हुआ करता था.उनकी जिंदगी जंजालों में फंस चुकी थी.पारिवारिक जिम्मेवारियां कुछ ऐसी थी कि शशिकांत जी बीस से तीस और तीस से चालीस तक पहुंच गये.जब भी नीलेश उनसे शादी का जिक्र करता तो वो यही करते की.मुझे करना होतो तो मै कल ही कर लूं.आपकी चाची जी को घर ले आऊ. पर बडे भैयामुझे घर से बाहर निकाल देगें. नीलेश मजे लेते हुये कहते कि तो बडे भैया क्या आपकी शादी बुढानीदार करेंगें.एक छॊटा सापुट लेकर दोनो ठहाके मार कर हंस देते थे.उस मुलाकात के कुछ महीनों बाद पता चला कि एक बार जो उनकी और बडे भाई साहब की बहस हुई थी वो शादी को लेकर ही हुई थी. शशिकांत अपनी पसंद की शादी करना चाहते थे और बडे भाई साहब शादी के दहेजसे ही उनकी शादी को निपटाना चाहते थे.इस लिये उनकी शादी में इतना देर हो रही थी. नीलेश को कानों कान खबर मिली कि बडे भाई साहब अपने साढू भाई के परिवार की किसी उम्रदराज लडकी से शशिकांत का चोला बांधने की फिराक में हैं.शशिकांत को यह बात अच्छी तरह से पता थी इस लिये वो भी ज्यादा कुछ हामी नहीं भर रहे थे. गुप्त सूत्रों से पता चला कि वो लडकी कुछ दिमाग से पैदल है.गुप्त सूत्र क्या नीलेश ने एक दिन बडे भाई साहब उनके साढू भाई और भाई की बात चोरी छिपे सुन लिया था.उसने साढू भाई को यह भी सुन लिया कि "इतना दहेज का पैसा मिलेगा कि तुम लोग छोटे की शादी भी कर दोगे तब भी घर खर्च आराम से चलता रहेगा." भाभी जी को यह बात जंच गई तो फिर क्या वो भाई साहब पर ऐसा दबाव बनाया कि भाई साहब ने शशिकांत को यह बोल कर राजी कर ही लिया कि" देख छोटे लडकी को कम सुनाई पडता है.वह बीमारी तो सुनने की मशीन के साथ दूर हो जायेगी.तेरा विवाह भी हो जायेगा.पिता जी की इच्छा भी पूरी हो जायेगी." यह मेरी अंतिम कोशिश है मै भी तेरे विवाह के बाद अपने परिवार की सोचूंगा."
      पर भैया.इस तरह से मेरा जीवन कहां पार होगा.आप कहें तो मै मंदिर से शादी कर लूं.लेकिन सही लडकी से मेरी शादी होनी चाहिये."शशिकांत ने जवाब दिया.
"देख छॊटे अब जिद मत कर तू समझ नहीं रहा है. तेरे पास ज्यादा जीवन का अनुभव नहीं है.मै जो फैसला लूंगा वो तेरे लिये सही रहेगा. आखिरकार तेरा बडा भाई हूं. अब जिद मत कर.वरना जो तुझे करना हो कर और चला जा यहां से."बडे भाई साहब को अपनी बात कमतर होते देख गुस्सा आ गया. फिर उन्होने कुछ सोच कर शशिकांत को अपने पास बिठाया और उन्हें प्यार से समझाया कि देख छॊटे मेरे अपने रिश्ते के लिये लिये तू यह शादी कर ले तू बहुत खुश रहेगा. तेरे ससुराल वाले तुझे कोई दुख नहीं देगें.तुझे कसम है मेरी."शशिकांत जी का मौन उनकी कसम और मजबूरी की बेडी बन कर उनके पैरों में बांध दी गई.एक दो दिनों के अंदर ही उनके पल्लू वो अमीर जादी पैदल लडकी बांध दी गई.कुल मिलाकर बडे भाई साहब ने अपने साढू भाई के साथ उनका बैंड बजवा ही दिया. एक दो दिन बाद जब नीलेश से उनकी मुलाकात हुई तो चाय पीते पीते वो अपनी पीडा बता ही दिये कि "मुझे लगता है कि वो कम सुनने वाली ही बस नहीं है वो तो मुझे दिमाग से मंद समझ में आती है या यह कहूं कि पागल की तरह उसकी हरकतें हैं." नीलेश सब जानते हुये भी खामोश रहा. एक पल को सोचा "अगर मै इन्हें सब कुछ बता देता हूं तो पारिवारिक कलह होगी और मेरी टांग भी फंस जायेगी." वो बोला परेशान मत होईये.धीरे धीरे सब सही हो जायेगा."
      अगले कुछ महीनों में तो शशीकांत का घर किसी पागलखाने की तरह नजर आने लगा.यह उनके मोहल्ले वाले कहते फिरते थे.हर दिन ऐसा गुजरता कि छोटी बहू तो हडकंप मचा देती.दाल में शक्कर डालना.हंसना शुरू होता तो रुकने का नाम लेना,रात में दो दो घंटे नहाना, रात में पूजा करना,आधी रात को घर से बाहर भाग चलना आदि आदि,पूरा परिवार जैसे अस्त व्यस्त सा नजर आने लगा. एक दिन नीलेश ने शशिकांत से बात करके उनके साथ बडे भाई साहब को समझाने गया परन्तु उल्टा उसे ही दोषी बन कर वापिस भेज दिया गया.अगले दिन शशिकांत की इस मुसीबत से उन्हे छुटकारा दिलाने के लिये वो उन्हें फोन में पट्टी पढाई कि वो इस बार अपनी पत्नी को पहले सावन में जब मायके भेजें तो दो बारा तब तक लेने ना जाये.जब तक उसके घर वाले उसका इलाज न करवा दे."बडे भाई साहब तो कुछ कहने से रहे क्योंकि साढू भाई के सामने उनकी बेइज्जती हो जायेगी. तभी कुछ हो सकता है."शशिकांत ने ठीक वैसा ही किया.
      आने वाला समय कुछ अप्रत्यासित ही रहा.जैसे ही सावन बीता तो शशिकांत के ससुराल वालों ने दबाव बनाया कि आकर वो अपनी पत्नी को ले जाये.शशीकांत ने भी अपनी पट्टी को उनके सामने बोल दिया. कुछ समय गुजरा तो साढूभाई उनके ससुराल वालों की तरफ से कोर्ट का लिफाफा लेकर आगये.जिसमें एक कागज समझौते का था. जिसमें यदि शशीकांत अपनी पत्नी को बुलालाते हैं तो कुछ और लाख रुपये मिल जायेगें. और जीवन भर सुख सुविधाये भी. नहीं तो दूसरा कागज कानूनन नोटिस जिसमें दहेजप्रथा के चलते कोर्ट में अगली पेशी में शशीकांत को जाना पडेगा." साढू भाई,बडे भाई साहब,और भाभी ने पहले प्रस्ताव को स्वीकार करने का दबाव शशिकांत पर बनाया. ताकि कोर्ट कचेहरी से छुटकारा मिल जाये. मामला दबा रहे.
      शशीकांत चिडचिडा कर आखिरकार अपने मन की भडास निकाल ही दिये"भैया आपकी कसम की वजह से मुझे यह शादी करना पडा वरना मै अपनी जिंदगी में खुश था.बस बहुत हो गया अब मै यह सब नहीं कर पाऊंगा." उन्हें जो कुछ करना हो कर लें.इस प्रकार के जीवन से तो बेहतर है कि मै आत्महत्या कर लूं.मुझे सब कुछ समझ में आरहा है.” इतना सब कुछ होने के बाद बडे भाई साहब ने भी अपना पल्लू झाड कर सारा मामला शशिकांत के खाते में डालकर फुरसत हो गये. दूसरे ही दिन शशीकांत नीलेश के पास आये और अपनी आप बीती मुझे सुना डाला. नीलेश ने मामले की नजाकत को भांपते हुये,हर पहलू पर गौर किया. फिर बोला," आप क्या सोचे हैं.".. मुझे क्या सोचना है लगता है कि मै यहां से सब कुछ छॊड कर भाग जाऊं कहीं दूर जहां मै सुकून की जिंदगी जी सकूं".. नीलेश ने भी संजीदगी से कहा" तो भाग जाइये यही एक रास्ता बचा है.आप अकेले कोर्ट से जीत नहीं सकते,ना ही आपके पास इतनी इन्कम है कि कचेहरी की चोचलें बर्दास्त कर सकें और बाद में आपको अपनी ब्याहता को लाना ही पडेगा या फिर उसके जीवन यापन का खर्च देना पडेगा."
      "अच्छा यह बताइये आपका कहीं दूसरे शहर में जुगाड है. मेरा कहने का मतलब नौकरी चाकरी. और आपकी तथाकथित जीवन साथी का क्या हुआ जिसके साथ आपने अपने जीवन के ख्वाब देखे थे." नीलेश ने कोई राह निकालने की कोशिश की.
      " कौन पूजा वो तो आज भी मेरा इंतजार कर रही है. मेरे साथ जाब करती थी, उसके बाद वो पुणे चली गई.अभी मेरी कोई बात नहीं हुई परन्तु यदि मै बात करू तो मेरी नौकरी का इंतजाम भी वो करवा देगी."
      "तो फिर आप कल ही यहां से बोरिया बिस्तर उठाकर रफू चक्कर हो जाईये.कुछ दिन तक खोजबीन होगी.बडे भाई साहब को उनके साढू भाई और भाभी सम्हाल लेगीं." गुमसुदगी की पेपर बाजी होगी और धीरे धीरे फिर सब मामला शांत."
      शशिकांत ने नीलेश की बातों को चंद्रगुप्त की तरह मान कर इस शहर से पलायन कर दिया. बीच में नीलेश की ट्रेनिंग एक महीने के लिये दिल्ली में शुरु हो गई.इधर वैसा ही हुआ जैसा नीलेश ने सोचा था.गुजरे एक महीनों में शशिकांत का मोबाईल स्विच आफ आने लगा. भैया कुछ दिन तक सक्ते में रहे लेकिन साढू भाई और भाभी जी के प्रेम ने उन्हें शशिकांत के नाम को भुलाने में मदद की.दहेज के पैसे से उनका जीवन यापन हो ही रहा था. और  तो और शशिकांत की दिमाग से पैदल पत्नी का मेंटल हास्पीटल में इलाज होने लगा.
      जैसे ही नीलेश ने अखबार रखा कि अचानक एक अनजाना सा नंबर उनके मोबाइल में बज उठा.
"हैलो कौन"
"कैसे हैं आप"
"माफ करियेगा मैने पहचाना नहीं"
 " हमें गुमशुदा बनाकर क्यों पहचानेगें"
 " अरे शशिकांत भाई.. कैसे हैं आप..आप तो हमे भूल ही गये"
" कहां बस हो गया चल रही है जिंदगी".. मैने पूजा के साथ इसी सोमवार को कोर्ट मैरिज कर ली है. अब हम दोनो अपना खुद का बिजनेस कर रहे हैं यहां"
"आप सब कैसे हैं" शशिकांत  ने पूंछा.
"मै तो आज ही दिल्ली से लौटा हूं. सब में भाई साहब मजे में हैं. आपकी पूर्व पत्नी इस समय मेंटल हास्पीटल में विश्राम कर रही है." नीलेश ने हंस कर जवाब दिया
दोनो लोग फोन में ठहाके मार कर हंस दिये. नीलेश को इस बात की प्रसन्नता थी रिस्तों की ब्याज चुकाने से शशिकांत बच गये और अपनी जिंदगी में खुश तो हैं.

अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"
श्रीराम गली,मारुति नगर,पोस्ट बिडला विकास,सतना

म.प्र, संपर्क:९४७९४११४०७

रविवार, 8 जून 2014

कहानी: एक बांसुरी की बेदर्द तान

कहानी: एक बांसुरी की बेदर्द तान
जैसे से ही स्निग्धा अपने केबिन में पहुँची ,उसे अपनी टॆबल में एक खत दिखाई दिया. या यह कहें की अंतर्देशीय पत्र. जो आज कल चलन में कम हो चुका था. पत्र भेजने वाले का नाम था शिव कुमार, प्यार से सब उसे छोटू बुलाते थे जगह थी वही उसकी सबसे पसंदीदा अल्मोडा जहाँ पर उसकी दिल और जान बसा करती थी. आज इतने साल हो गए पुलिस की नौकरी किये हुये.उसे ना अल्मोडा भूला था और ना वह पहाडी माहौल,सब जैसे यादों के झरोखें में कैद उसके दिल में समाया हुआ था.बस झरोखा खोलना होता और हर याद उसके सामने आने लगती.
      पुलिस में एस.आई की परीक्षा पास करने के बाद आज उसके पास जेल विभाग ही है. उसने पहले एन.सी.सी किया.और फिर पुलिस की नौकरी की तैयारी की.अपराधियों पर उसकी विशेष रुचि थी.वह उनके जीवन और अपराध के बारे में जानना चाहती थी. इस सब के चलते उसने कई किताबें भी लिखी अपने अनुभवों को जोडकर.आज वह भोपाल के पास केंद्रीय जेल में पदस्थ है जहाँ पर म.प्र और आसपास के राज्य के वो अपराधी रखे जाते है जिनको आजीवन कारावास की सजा मिली हुई है. कई अपराधी तो आतंकी घटनाओं में शामिल होने की वजह से जेल में कैद है क्योंकि उनका केस आज अदालत की फाइलों में कैद है.इस जेल की वो अभिवावक की तरह है कई प्रमोशन आये,कई आफर आये. पर उसे इस जेल से जैसे बहुत प्रेम हो गया था. आज तीस साल की उम्र में जब उसके परिवार में कोई नहीं तो सिर्फ यह एक माध्यम है अपने को व्यस्त रखने में.
      स्निग्धा ने खत को बिना खोले अपनी पाकेट में रख लिया और काम में व्यस्त हो गयी.शाम को जब ड्यूटी से फुरसत होकर घर पहुची तो.उसे ध्यान आया कि उसे तो अभी वो खत भी पढना है जो अल्मोडा से भेजा गया था. वह अपने बगले के बगीचे में बैठ कर चाय की चुस्की लेते हुये खत पढना शुरू किया.दिनांक देख कर पता चला कि खत १५ दिन पहले भेजा गया था. और भेजने वाला छोटू था.उसका बहुत पक्का दोस्त.खत को पढने का मन ही नहीं हो रहा था.परन्तु बिना खत पढे यह भी पता नहीं चलता कि छोटू ने इतने सालों के बाद स्निग्धा को याद क्यों किया था.वह अपने दिल को सम्हालते हुये पढना शुरू किया.
      बडी मैडम जी,
      नमस्ते
            कैसी है आप,इधर कई सालों से आपका अल्मोडा आना ही नहीं हुआ.पहले तो आप हर साल गर्मी की छुट्टियों में यहाँ आती थी. मैने इस साल बी.ए.पास कर लिया है. मै भी पुलिस में भर्ती होना चाहता हूँ.आप यदि नहीं होती मुझ जैसे पहाडी अनपढ को कौन इतना पढाता.और पढाई का महत्व बताता.आपने जो जो प्रस्ताव मेरे सामने रखा उसके लायक मै नहीं हूँ.लेकिन अब मै इस बारे में सोच सकता हूँ.समझ सकता हूँ.मुझे माफ करियेगा मैडम जी मै आपके किसी काम ना आ सका. आपने मुझसे जो कुछ माँगा वह कुछ ना दे सका मै आपको. पर मैडम जी बहुत बडा एहसान किया है आपने मुझपर मेरे बापू को वापिस मुझसे मिलवाकर.मेरा उनके सिवाय कोई नहीं है इस दुनिया में.बापू के कहने पर ही मैने आपको यह खत लिखने की जुर्रत की .वरना मेरी कहाँ हिम्मत थी कि आपको इंकार करने के बाद आपसे कुछ कह पाता. बापू आपको बहुत याद करता है और बहुत सा आशीर्वाद भी देता है.आप हमेंशा खुश रहें. मैडम जी एक बात कहूँ. याद तो मुझे भी बहुत आती है आपकी. कई बार याद करते करते आखें भी भर आती है. पर मेरा और आपका कोई मिलान नहीं है. मुझे हो सके तो माफी दे दीजियेगा.
                                                                                          आपका प्यारा छोटू.
      खत बहुत बडा नहीं था पर दिल के तारों को हिलाकर झंकार उत्पन्न करने वाला था.जैसे किसी ने हाथ पकड कर अतीत के दरवाजों को खोल कर पुराने दृश्य दिखा दिया हो. स्निग्धा ने चाय खत्म करके आयी और अपनी पुरानी डायरी के पन्नों को पलट रही थी.
      उसे याद है कि जब माँ की कैंसर से मौत हुई तो पापाजी ने उसे अल्मोडा ताऊ जी के यहाँ दो महीने के लिये भेज दिया था. ताकि वह इस सदमें से उबर सके उस साल वह कक्षा नौंवी में थी. एकलौती बेटी और अपनी माँ को खोने का गम. ताऊ जी अल्मोडा के जमीदार आदमी उनकी हवेली में यूँ बहुत से नौकर चाकर थे. पर ताई जी का सबसे पसंदीदा नौकर था छोटू. पाँचवी पास करने के बाद वह पढना बंद कर दिया था.उसकी रही होगी कोई मजबूरी. वह नहीं जानती थी. ताई जी ने छॊटू को उसकी देखभाल करने के लिये नियुक्त किया था. छॊटू उससे चाल पाँच साल छोटा रहा होगा. उसे ध्यान है कि एक बार खाना खाने की जिद में उसने छोटू के ऊपर खाने की थाली फेंक दी थी. और उसके माथे में गहरी चोंट लगी थी. और कुछ दिनों के बाद वो खुद छॊटू को अपने साथ लेने उसकी झोपडी में गई थी.
      हर साल उसका जाना होता था. गर्मी में वह छोटू को खूब पढाती थी. और उसके साथ वह पहाडो की सैर किया करती थी. सुबह पहर और शाम पहर उसका घूमना छॊटू के साथ ही हुआ करता था. जब वह बारहवीं में थी तो उसने छोटू को इंगलिश बोलना भी सिखा दिया था. उसने पहाडी की ढलान में बैठे हुये अपनी दोस्ती का इजहार भी किया था. पर छॊटू की छोटी बुद्धि में यह सब समझ में नहीं आया. जब वह कालेज खत्म कर पुलिस की तैयारी करने जाने वाली थी तो उसका पंद्रह दिन के लिये अल्मोडा जाना हुआ था.अब तो पिता जी नहीं रहे रोड एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी.अब तो ताऊ जी ही उसका सहारा था. हवेली जाते ही उसने अपना सामान रखा और ताई जी से छॊटू के बारे में पूँछा. पता चला कि इस समय वह चौराहे में बाँसुरी बजाता है सप्ताह में एक बार आता है.स्निग्धा उसे ना पाकर बेचैन सी हो गई.वह सीधे छॊटू की झोपडी गयी. दादी से पता चला कि वह कही अपनी बाँसुरी लेकर गया है. इस समय हर शाम वह चौराहे में बांसुरी बजाता है और जो पैसे मिलते है उससे वह अपनी पढाई करता है और घर का खर्चा चलाता है. वह चौराहे तरफ गई तो देखी एक चबूतरे में वह ध्यान मग्न होकर बांसुरी बजाने में लीन था. कई लोग उसे अपनी हैसियत के अनुसार रुपये दिये और सैलानियों ने भी उसके फोटो और वीडियो बना कर उसे खूब सारा पैसा देगये. उसने जैसे ही देखा कि स्निग्धा उसको दूर खडे सुन रही है वह अपनी बांसुरी लेकर उसकी तरफ दौड गया.
      क्यों रे छॊटू इस समय कहाँ रहता है पता ही नही चलता. तू बांसुरी कब से बजाने लगा है. मुझे तो बताया ही नहीं.-स्निग्धा ने बहुत खुश होकर पूछा.
कहाँ मैडम जी इस समय धंधा मंदा है.चलिये आज मै आपको इसकी पार्टी देता हूँ.आप ही इस समय बहुत दिनों के बाद य यहा आती है. यहाँ से पास के गांव में मेला लगा है चलिये आपको घुमा कर लाता हूँ.-छोटू ने मुस्कुराते हुये उसके सामने प्रस्ताव रहा.
क्यों नहीं अब तो अपने प्यारे छोटू की मेहनत से कमाये पैसे से चाय पियूँगी.ठंड भी बढ रही है.-स्निग्धा ने छॊटू के गाल खींचते हुए बोली
अच्छा यह तो बता यह बांसुरी की क्या कहानी है पहले तू तो यह नहीं बजाता था और पढाई का क्या हुआ. तेरी पढाई बंद हो गई क्या.
चलिये मैडम जी बताता हूँ. मैने इस साल इंटर परीक्षा पास की है. आपकी मेहनत यूँ ही बर्बाद नहीं होने दूंगा.पुलिस में भर्ती होकर अपने बापू को जरूर खोजूगा.यह बांसुरी उन्हीं की है.मै तो इसी के सहारे अपना घर चलाता हूँ.
एक मिनट क्या हुआ तुम्हारे बापू को. स्निग्धा से पूँछा.
मैडम जी बहुत साल पहले उन्हें पुलिस पकडकर लेगई.क्योंकि पुलिसवालों को यह लग रहा था कि वो उग्रवादियों मदद कर रहे थे. हमेशा से ही वो बांसुरी बजाकर अपना घर चला रहे थे. एक शाम को वो इसी चौराहे में बांसुरी बजारहे थे. कई सैलानी आये और बापू के पास बैठ कर बांसुरी की धुन सुनने लगे. तभी पुलिस का छापा पडगया .उनके पास से हथगोले बरामद हो गये. और इसी की शंका में बापू को मारे पीटे और जेल में बंद कर दिया गया. वो गिडगिडाते रहे पर कोई सुनवाई नहीं हुई. कुछ साल पहले मैने पता किया तो पता चला कि वह किसी शहर की जेल में आतंकी होने की सजा भुगत रहें है और उसकी आंखे नम हो गई.
      स्निग्धा ने उसकी दर्दनाक दास्तां सुनकर उसको गले लगा लिया. और उसके गालों को चूम कर उसके आंसू पोछे. उसने छोटू से वादा किया कि वो पुलिस में जाकर उसके बापू को ढूढने में उसकी जरूर मदद करेगी.उसके बाद वो मेला गये.वापस लौटते समय उसने छॊटू से एक जगह रुकने के लिये कहा.
      छॊटू रुक थोडा मुझे कुछ कहना है.
      क्या मैडम जी बताइये
      मै अब पुलिस की तैयारी के लिये बाहर जा रही हूँ. शायद मै पुलिस में सेलेक्ट भी हो जाऊँ. यार छॊटू मै अकेली हूँ इस समय. कोई नहीं है मेरे साथ. चल ना हम दोनो शादी कर लें. देख तू भी पढ लिख रहा है. इंगलिश भी बोल लेता है. चल मेरे साथ तू भी पढाई के साथ पुलिस की तैयारी करना,और बाद में दोनो शादी कर लेंगें. क्या कमीं है मुझमें. हाँ मै तुझसे तीन चार साल बडी हूँ पर क्या फर्क पडता है. चल ना.क्या तू मुझसे प्यार नहीं करता.मै तुझसे दिलो जान से प्यार करती हूँ.
      पर मैडम जी मेरी दादी उनका क्या. मै भी आपको बहुत चाहता हूँ.पर यह रिस्ता मेरे समझ में नहीं आता. यदि आपके ताऊ जी को पता चला तो वो हम दोनो और मेरी दादी को कब्र में जिंदा गाड देगें. मैडम जी मै आपके लायक नहीं हूँ. रुपये पैसे में भी नहीं और दुनिया दारी में भी नहीं.
      दोनो खामोश हो गये.
      छोटू मै कल जा रही हूँ. इसके बाद शायद ही हमारी मुलाकात होगी.पर तू मुझे बहुत याद आयेगा. मै अब भी तुझसे कह रहीं हूँ चल मेरे साथ दोनो साथमें किसी और शहर मे रहेंगें. किसी को कुछ नहीं पता चलेगा.
      मैडम जी मुझे माफ कर दो. मै आपके परिवार से बेइमानी नहीं कर सकता.मै जानता हूँ आप भी सही हो. पर मै भी मजबूर हूँ.
स्निग्धा आंखों में आंसू लिये अपनी हवेली की ओर चल दी. चलने से पहले एक बार वो छॊटू को बांहो में भरकर खूब रोई थी. हवेली की तरफ जाते जाते उसने एक बार पीछे मुडकर देखा ,तब भी छॊटू अपनी भीगी पलकों से उसकी ओर हाथ हिला रहा था
 इधर पुलिस में उसका सेलेक्शन हो गया.और पहली पोस्टिंग जिस जेल में हुई. उसमें एक से एक खूँखार अपराधी थे. पर वह जब अपराधियों से मिलती थी. तो जेल में एक कोने मे बरगद के चबूतरें मे एक पहाडी वेशभूषा पहने एक बुजुर्ग बैठा मिलता था. उसे आज तक किसी ने लडते झगडते और चिल्लाते नहीं देखा. इस बार के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम के अंतिम कडी में हर साल की तरह उसकी बांसुरी की तान  सुनाई पडी. वह धुन जानी पहचानी थी. शायद जिस बांसुरी वाले छोटू को वह छोड आई थी अल्मोडा में उससे मिलती जुलती तान थी. उसको छॊटू से  किया अपना वादा याद आगया. अगले दिन वह उस पहाडी बाबा की फाइल से उसका केस जानने की कोशिश की. तब पता चला कि वो छोटू के बापू ही है. फिर क्या उसने सिफारिस,सजा माफी, और अच्छे व्यवहार के दम पे उसकी रिहाई के लिये आवेदन किया ,और उसे इस काम में सफलता भी मिल गई. २६ जनवरी को जब पहाडी बाबा रिहा हुये तो स्निग्धा उन्हें अपने घर ले आई और उन्हे कुछ रुपये ,नये कपडे दिलवाए,साथ में एक चिट्ठी छोटू के लिये दी और उन्हें अल्मोडा के लिये अलविदा किया. और यह भी कहा कि जब वो अल्मोडा पहुचें तो छोटू से कहें कि वो मुझे पत्र लिख कर सूचित करे.
      आज काफी समय गुजर चुका था.स्निग्धा ने अपनी यादों पर वक्त और व्यस्तता की धूल जमा कर ली थी. आज उसे यह लगता है कि सबको अपना सब कुछ मिल गया सिर्फ वो ही अकेली की अकेली रह गई एक उम्मीद के साथ. कि कभी छॊटू पुलिस में आयेगा और फिर से उसकी वीरान दुनिया आबाद हो जायेगी. पर इस खत ने थोडा ही सही पर कुछ धूल साफ तो की.वादे कुछ प्यार के लिये पूरे किये गये.और वादे कुछ मजबूरियों के लिये पूरे नहीं हो सके.जैसे बाँसुरी की तान  भी किसी ना किसी वादे को याद दिलाने में मन को कभी बहलाती है या कभी रुलाती है.यही उम्मीद उसे आज भी एक तान  को सुनने के लिये बेकरार करती है और वह धुन थी प्यार की धुन.

अनिल श्रीवास्तव "अयान",सतना
दीपशिखा स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर,सतना

संपादक "शब्द शिल्पी ,सतना"
शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन ,सतना
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०
email; ayaananil@gmail.com

      

कहानी: कोहरे में कैद जिंदगी

कहानी: कोहरे में कैद जिंदगी  
जिंदगी के २५ साल और हर पल एक बोझ की तरह लग रही थी उसे,जैसे किसी ने उसकी जिंदगी का एक पडाव उससे बहुत ही बेरहमी से छीन कर ले गया हो.और उसने उस पडाव तक पहुँचने में ना जाने कितने प्रयास किये परन्तु आज भी वह असफल रहते हुये अपनी जिंदगी को जीने के लिये मजबूर है.डां नलिन पेशे से जूनियर डाक्टर है अभी एक साल हुये दिल्ली के मेडिकल कालेज से अपनी डाक्टरी की पढाई पूरी करके भोपाल में पहली पोस्टिंग हुई थी. डाँक्टरी जैसे उन्हें अपनी विरासत में मिली थी. शुरुआत से माँ और नाना नानी के साथ पले बढे,और माँ का सपना था कि वो अपने बेटे को डाक्टर बनायें.नाना नानी ने यही सपना जो माँ के लिये भी देखा था. नलिन की माँ डाँ.नीरा भोपाल की नामवर हृदय रोग विशेषज्ञ थी. उनका खुद का नर्सिंग होम भी था. शुरू से ही नलिन जब भी अकेला होता तो उसके मन में अपने पापा के बारे में जानने की जिज्ञासा जरूर रहती थी. पर माँ का अजीब घर था. पापा के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. सब कुछ छोडो यहाँ तक की कोई तस्वीर तक उपलब्ध नहीं थी.
      बचपन तो किसी तरह गुजर गया था.पर जब नलिन बडा होने लगा तो सीनियर क्लासेस में उससे उसके सभी दोस्त उसके पापा के बारे में पूँछते थे.उसकी खामोशी उसके विरोध में सभी दोस्तों को खडा कर देती थी. अजीब सी परिस्थितियाँ थी नलिन के लिए अपनी माँ से जब भी अपने पापा के बारे में पूँछता तो डाँ नीरा इतनी गंभीर हो जाती की उनके मुँह से सिर्फ इतना निकलता" किस बात की कमी है यहाँ,परेशान मत हो जब बडे हो जाओगे तो खुद बखुद मिलवा दूँगी. दुनिया का क्या है हर तरह की बातें करती रहती है.क्या मैने तुम्हें अपने पिता की कमी महसूस होने दी है. तो क्यों परेशान होते हो. पढाई में मन लगाओ.अजीब सी कसमकस में था नलिन एक सवाल जो उसे कभी लावरिस कभी नाजायज औलाद तक के खयालात तक सोचने को मजबूर कर देता. माँ के कमरे में माँ से मुलाकात करना बहुत कठिन होता था. अपना कमरा उसे खाने के लिये दौडता था.सवालात उसे चैन से जीने नहीं देते थे. उसके पास सिर्फ यादें ही रह गई थी.
      मेडिकल की तैयारी में एक साल और फिर मेडिकल कालेज में एम.बी.बी.एस. करने में लगभग चार साल का समय यूँ ही निकल गया.इस व्यस्तता के दौर ने उसे अपनी माँ,और ननिहाल से बहुत दूर कर दिया था.अपने शहर में वापस लौटने के बाद उसके सवालात फिर उसका पीछा करना शुरू कर दिये.ड्यूटी रूम में बैठे इन सब खयालों में खोया ही हुआ था कि तभी कम्पाउंडर उसके पास भागते भागते आया और बोला" डाँ साहब,आई.सी.यू. में दिल्ली के कोई बुजुर्ग मरीज है उनका अंतिम समय चल रहा है. वो आपसे मिलना चाहते हैं. जल्दी चलिये." डा नलिन परेशान सा सोचता रहा कि कोई व्यक्ति उससे क्यों मिलना चाहेगा.आज तक उसकी माँ और नाना नानी के अलावा कोई उससे मिलने नहीं आया.वो जल्दी जल्दी आई.सी.यू में गया तो देखा कि एक बुजुर्ग मरणासन्न अवस्था में लेटे हुये है लगभग ६५ साल उम्र होगी,बगल में उनकी पत्नी और एक बेटी है जिनके पलकों से आँसू रुकने का नाम भी नहीं ले रहे थे. उस बुजुर्ग ने नलिन की तरफ बहुत ध्यान से देखा, चेहरा अधीर हो उठा " बिट्टू पहचाना मुझे मै तेरा पापा,कैसे ध्यान होगा तुझे तू उस समय तीन साल का था." नलिन उनके पास गया और उनको गले लगा कर उनके द्वारा अपने बिछडे बेटे को बाहों में भरने की कोशिश को कामयाब कर उनकी बात सुनने लगा.
"कितना बडा हो गया है.डाक्टर भी बनगया."आखों से आँसू और हलक से लफ्ज दोनो एक साथ बाहर निकल रहें थे.
      अपने मन की बात जब खत्म हुई तो बुजुर्ग का संतृप्त शरीर मौन हो गया.कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति की आँखों में आँसू थे. नलिन ने उनके शरीर को बिस्तर पर लिटाया और नाडी देखी तो वो मर चुके थे. बुजुर्ग की पत्नी और बेटी तो उनके शरीर से लिपट कर रोये जा रहीं थी. नलिन ने उनके पास जाकर ढाँढस बधाया.कुछ समय बीतने के बाद उनके बारे में जानना चाहा.उनकी बेटी ने बताया कि ये दिल्ली के मशहूर चित्रकार आनंद शेखर है. हमेशा डाँ नीरा और आपका जिक्र किया करते थे. और जब इनको हार्ट अटैक आया तो इनकी अंतिम इच्छा यही थी कि ये आपकी बाँहों में दम तोडे.
इनका अंतिम संस्कार आप ही करें.नलिन के लिये ये सब बहुत जल्दी हो गया था. इतना जल्दी हो गया की समझने में उसको बहुत समय लगने वाला था. नलिन ने आनंद शेखर के परिवार को अपना नंबर दिया और उन्हें एयरपोर्ट में फ्लाइट पकडाकर सीधे अपने घर की ओर रवाना हुआ.
      घर में पता चला कि नाना और नानी दो चार दिन के लिये अपने फार्म हाउस गये है.और माँ अपने रिसर्च पेपर प्रजेंटेशन के लिये मुम्बई गई है पाँच दिन के बाद लौटेंगी. माँ के कमरे में गया तो देखा तो उनकी स्टडी टेबल में एक बहुत पुरानी डायरी थी. जिसके कुछ पन्ने ही बचे हुये थे. नलिन को माँ की डायरी के पन्ने पलटने में संकोच लगा.ऐसा लगा कि वो बहुत बडा गुनाह करने जा रहा है. पर वह यह अच्छी तरह जानता था कि उसके हर सवाल का जवाब इसी डायरी में था.वह अपने दिल में पत्थर रख कर उस डायरी के पचीस साल से भी पहले के पन्ने पढना शुरू किया.
      " आज बहुत ही अच्छा लगा अपनी सहेलियों के साथ जब मै आर्ट गैलेरी में गई तो मुझसे मुलाकाल एक स्मार्ट चित्रकार से हुई नाम था आनंद शेखर, पहली नजर में मुझे उससे प्यार हो गया है.- नीरा
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१५ दिन बाद
      लगातार कई दिनों से आनंद से मिलना हो रहा है.उसकी तस्वीरों मे प्यार का असर दिखता है.आज तो उसने मेरी भी एक पेंटिंग बनाई. हमारे बीच में नजदीकियाँ बढ रहीं है.
      आज कालेज के चार सेमेस्टर पूरे हो गये है. आनंद से मिले बिना अब मन ही नहीं मानता.लगता है कि हम दोनों को एक साथ रहना शुरू कर देना चाहिये. आज शाम को मै आनंद के परिवार से मिली. आनंद शादी के लिये राजी है. अब मुझे मम्मी पापा से बात करनी है.-नीरा
------------------------------------------------------------------------------------------------------१ महीने बाद
आज हम दोनो ने कोर्ट मैरिज कर ली है आनंद के परिवार के सभी लोग और मेरी सभी सहेलियाँ साथ थी. मेरा मेडिकल भी पूरा होने को है पर मेरे घर वालों को यह पता ही नहीं कि मैने उन्हें बिना बताये यहाँ शादी कर चुकी हूँ. आनंद को यह पता है कि मेरे घर की भी इस बात पर सहमत थी.-नीरा
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१० महीने बाद
इस वक्त हम दोनो खुश है. पापा को यह लगता है कि  मै अभी डाक्टर हूँ .वो मुझे अपना नर्सिंग होम देखने के लिये भोपाल बुला रहें है. अब हमारे परिवार में बिट्टू आगया है. इसका नाम हमने नलिन रखा है. माँ को मैने अपनी शादी की बात बताई है पर पिता जी ने मुझे जान से मारने की धमकी दी और पूरे परिवार को खत्म करने का निर्णय लिया है. या तो मै अपने बेटे के साथ भोपाल लौट आऊँ.बाकी सब वह देख लेंगें. -नीरा
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५ दिन बाद
आज आनंद को हर बात मैने बताई.वो सिर्फ इतना कहता रहा कि वो उसके और बच्चे के बिना नहीं रह पायेगा.रोता रहा गिडगिडाता रहा. पर मैने अपने दिल में पत्थर रखकर उससे कसम ले ली कि यदि वो मुझसे कभी भी सच्चा प्यार किया हो और मै यदि उससे सच्चा प्यार की होऊगी तो कभी एक दूसरे से नहीं मिलेंगें ना ही जानने की कोशिश करेंगें. यही हमारे जिंदा रहने के लिये जरूरी था.
और अपना सामान लेकर हमेशा हमेशा के लिये दिल्ली से भोपाल आगई. एक नई जिंदगी शुरू करने के लिये. -नीरा
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३ महीने बाद
 पिता जी ने मेरी दोबारा शादी की बात की मैने अपनी जान देने की धमकी देकर इस विषय को उमर भर के लिये बंद कर दिया अब मै और मेरा बिटटू ही मेरे जीने का सहारा था. आनंद की याद तो बहुत आती थी पर अपने बच्चे और उसकी जिंदगी के लिये यह वन वास भी भोगना हीहै.- नीरा
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      डायरी के इतने पन्ने काफी थे अतीत के गर्भ में छिपे प्रश्नों को खोजने में.और वह काफी हद तक सफल भी रहा.अपनी माँ की बेबसी और उनकी संजीदगी की इतनी बडी वजह जानकर.उसको समझ में आगया कि इस बेबसी ने उसकी और उसके पापा की जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिये माँ की जिंदगी कोहरे में कैद करके रख दी.वह पूरी तरह से एक बुत की तरह से हो चुका था. नहीं समझ में आरहा था कि वो क्या करे तभी आनंद शेखर की बेटी का फोन आया वो उसको अंतिम संस्कार के लिये याद दिलायी और अंतिम इच्छा पूरी करने की गुजारिश की. नलिन ने उसे आने का वादा किया और फोन रख कर जाने की तैयारी करने लगा.
      उसने काका को एक पत्र दिया जो उसने अपनी माँ के नाम लिखा था.

"
माँ,
      मेरे पापा श्री आनंद शेखर नहीं रहे.मै उनके अंतिम संस्कार के लिये जा रहा हूँ.दो दिन के बाद लौटूँगा.यह बात मै आपको फोन में इस लिये नहीं बता रहा हूँ क्योंकि आपके सेमीनार में कहीं डिस्टर्ब ना हो.
                                                            आपका बेटा
                                                            नलिन
      इधर अगले दिन डा नीरा जैसे भोपाल लौटी और काका ने जैसे ही उन्हें नलिन का खत दिया. वो उसे पढते ही सोफे बैठ गई. बिना कुछ कहे जैसे उनके मन में बहुत से सवाल गूँज रहे थे.यह सब इस तरह इतनी जल्दी कैसे हो गया.जैसे पल भर में सब खत्म हो चुका था.
       जिस बेटे को पिता के बारे में बताने में इतने साल लग गये.उसने एक पत्र में अपने पिता का नाम मेरे सामने ऐसे लिख गया जैसे मुझसे ज्यादा वो उन्हे जानता है. अजीब से हालात थे मन के. वो चुप चाप अपने कमरे में गई. और जैसे ही उन्हें अपनी डायरी के खुले हुये पन्ने स्टडी टेबल में मिले वो पूरे हालात को समझ चुकी थी. एक माँ के लिये पिता का नाम बेटे के सामने उजागर करना जितना कठिन था उतना ही आसान था एक बेटे के लिये अनजाने ही ये बता देना कि वो अपने पापा का नाम ही नहीं जान चुका है बल्कि मिल भी चुका है जो अंतिम मुलाकात थी.
      नीरा अब पूरी तरह से शून्य अवस्था में लेट गई. बिना खाना खाये. रात हुई. पूरा घर जैसे खामोशी से घिर चुका था. खामोशी का अंधेरा रोशनी को रोके हुआ था.काका ने खाने के लिये नीरा से पूँछा पर उसने कोई जवाब नहीं दिया.
      सुबह नलिन की दिल्ली से वापसी हुई उसने काका से अपनी माँ के बारे मे पूँछा. काका ने जब बेडरूम की तरफ इशारा किया,नलिन तुरंत उस ओर बढा जहाँ माँ रात में सोई हुई थी. कमरे के हालात देख कर नलिन चकित रह गया. बिस्तर में माँ दीवाल का सहारा लेकर आँख बंद करके मुस्कुरा रही है.सीने से एक फोटो है.चारो तरफ पीले पड चुके खत है. माँ को देख कर नलिन जैसे ही उनके पास गया और फोटो देखने के लिये जैसे ही उसने हाथ में लिया माँ का  हाँथ फोटो से छूट कर बिस्तर पर गिर. फोटो में माँ पापा और वो था.नलिन की खामोशी और पलकों से बहता खारा पानी जिंदगी के खारे पन को दूर कर रहे थे. वो इस कोहरे में सब कुछ खो चुका था. पहले पापा को और अब मा      को भी.इतने सालो से कोहरे में कैद होने के बाद जिंदगी से इसके अलावा और कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी.

अनिल श्रीवास्तव "अयान",सतना
दीपशिखा स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर,सतना

संपादक "शब्द शिल्पी ,सतना"
शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन ,सतना
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०

email; ayaananil@gmail.com

सोमवार, 2 जून 2014

कहानी:- अनकही बेबसी


कहानी :- अनकही बेबसी 
आज उसे सिर्फ अपने ख़त्म होते भविष्य का इन्तजार था. आज उसने जिस काम को अंजाम दिया था उसके बारे में उसने कभी भी खयालो में भी नहीं सोचा था। आज वो बहुत ही कसमकस में था और उस दौरान उसने ऐसा कर ही दिया जिसके बारे में उसको और उसके किसी भी रिस्तेदार ने नहीं सोचा था 

 उसका भी खुशहाल परिवार था ,एक साल पहले उसने अपनी पसंद की शादी कर वो सब सपने सजाये थे जो हर युवा दिल में होते है. वह अपनी प्रेमिका से भी अधिक अपनी बीवी से प्यार करता था अपने व्यस्तम समय में भी अपनी बीवी का बहुत ज्यादा ध्यान रखता यह बात उसकी बीवी बहुत अच्छी तरह से जानती थी की वो उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता है। जब भी वो अपनी बीवी को मायके भेजता तो उसकी बीवी उसे वादा करके जाती थी की वह उसे अपनी कमी महसूस नहीं होने देगी. और उससे बात करती रहेगी एक ही शहर में रहने के बावजूद वो  अपनी बीवी से खूब बात करता था। एक बार उसने अपनी बीवी को एक महीने से ऊपर अपने से दूर उसके मायके भेजा उसी तरह उसकी बीवी ने उससे वादा किया की वो उससे बात करती रहेगी. समय गुजरने लगा वो सुबह और रात में बात करने लगा उसकी ससुराल में शादी का उत्सव होने की वजह से कई दिनों तक उसका फ़ोन उसकी बीवी ने नहीं उठाया वो अपने मन को समझाया। शादी हो चुकी वो फिर से उसे कई बार फ़ोन किया पर उसने कोई जवाब नहीं दिया. जब बात हुयी  तो उसकी बीवी ने यह कह कर किनारा कर लिया की वो बहुत व्यस्त है वो उससे इस तरह बात नहीं कर सकती उसके रिस्तेदार हसते है और मजाक उड़ाते है। जब उसे वक़्त होगा वो खुद उससे बात कर लेगी. ऐसा रवैया तीन चार दिन तक चलता रहा जब उसके फ़ोन का उसकी बीवी ने कोई जवाब नहीं दिया तब उसने अपने ससुर जी को और अन्य सदस्य को फोन लगाकर बात कराने की बात कही. अब की बार जब उसने बात की तो उसने अपनी बीवी से अपने दिल की बात बताया और यह भी कहा की उसके बिना उसका मन नहीं लगता और सिर्फ सुबह शाम वो यदि बात करेगी तो उसके दिल को सुकून मिल जाएगा. 

 उसने अपने प्यार के बदले सिर्फ अपनी बीवी से इतना ही माँगा था जब तक वह उसके पास नहीं थी इसकी जगह पर वो उसके घर में फोन नहीं करेगा इस बात का वादा किया. उसकी पत्नी दिल की बुरी नहीं थी पर अपने रिस्तेदारो के तानो से बचने के लिए बात नही कर रही थी पर वो इस बात से काफी नाराज और दुखी था की उसकी पत्नी' लोग क्या कहेंगे'इस बात को लेकर उसको इग्नोर कर रही थी वो काफी कसक से भर गया। उसने अपनी बीवी को बताया" देखो मै तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हु एक प्रेमिका से भी ज्यादा ,तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ अब मै तुमसे बात नहीं करूंगा तो किससे करूँगा. लोगो और रिस्तेदारो का क्या है वो मजाक करते है तो उनको जवाब भी दे सकती हो. पर उनके लिए मुझसे बात ना करना सही नहीं है. और यदि उनको यह बात नहीं पता तो उन्हें बताओ की मेरे तुम्हारे बीच में पति पत्नी से बढ़कर प्यार है जो तुम जानती हो या मै., तब शायद वो मजाक नहीं उड़ायेंगे। उसकी पत्नी ने वादा किया की वो उससे दिन भर में एक बार बात जरूर करेगी. उसको अपनी बीवी पर फिर यकीन हुआ. एक दिन गुजरा ही था की फिर वाही मजाक उड़ाने वाली बात उसको अपनी बीवी से पता चलीअब उसने आव देखा ताव अपने प्यार की बेइज्जती करने वाले रिस्तेदारो को समझाने की सोच कर अपनी ससुराल गया. रिस्तेदारो से सिर्फ एक सवाल किया की वो लोग पति पति को आपस में बात करने को क्यों गलत समझते है और मजाक बनाते है. वो सब उसे दुनियादारी और हिन्दू संस्कृति की दुहाई उसने अपने मन हर बात उन सब के रखी. और मजाक न बनाने की रिक्वेस्ट की उसने महसूस किया की अब उसकी बीवी और मायके वाले सब फिर से उसके प्यार का मजाक उड़ाकर हसने लगे. उसका सब्र अब टूट चूका था उसने पिस्टल निकाली  और एक   तरफ से सब को खत्म  कर दिया उसके सामने उसकी बीवी की लाश थी अब सब कुछ खो चूका था वह उसने पुलिस को फ़ोन किया।

नदी के किनारे पुलिस की गाड़ी और हथकड़ी उसका इंतजार कर रही थी. खत्म हो चुका था सब उसे अपनी प्रेमिका से बढ़कर प्यारी बीवी के जाने का गम भी था और अपने प्यार की बेइज्जती करने वालो से बदला लेने की मन में शांति भी थी। 

अनिल अयान,सतना 

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

अपने-अपने हिस्से की खुशी.

लघुकथायें

अपने-अपने हिस्से की खुशी.

आधे घंटे से कुछ अमीर घर की महिलायें कुछ दुसाले और स्वेटर के दाम कम
करवाने के लिये मोल भाव करने में लगी हुई थी. फेरी वाला इसी तरह दस हजार
रुपये से चार हजार तक पहुँचा था.महिलायें इस बात में खुश थी की काश्मीर
से आये फेरीवाले को वो अपने आलीसान महल नुमा घर में बेवकूफ बनाकर मोलभाव
करने में सफल हुई. और फेरीवाला वह काश्मीरी, इस मोलभाव से इस लिये खुश था
कि वह अपना दि हजार का माल चार हजार में बेंच कर दो गुना मुनाफा कमाने
में सफल हुआ.इस तरह मोलभाव खत्म हुआ और दोनो पक्ष अपने अपने हिस्से की
खुशी को लिये संतुष्ट हो गये थे.

अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.
९४०६७८१०४०

मंगलवार, 21 मई 2013

कहानी:: थाली


कहानी:: थाली
कल की गेट टूगेदर पार्टी का असर आज अभी भी मेरे दिलो दिमाग में था.पहली बार अपने ससुराल वालों के साथ गेट टूगेदर हो रहा था. मेरी पार्टनर के साथ और भी मेरे सभी रिस्तेदार थे.पार्टी तो वैसे बहुत अच्छी रही पर एक बात आज भी मेरे कानों में गूँज रही है.जो मेरी पार्टनर ने मुझसे कहा कि हम एक ही थाली में खाना नहीं खायेंगे. किसी को दिखाने की जरूरत है कि हम एक ही थाली में खाना खाते है. मैने उसे पार्टी के दौरान भी बहुत समझाया ये कोई पाश्चात सभ्यता की निशानी नहीं है जिस तरह अलग थाली में खायेंगे उसी तरह एक थाली में खाया जा सकता है. पर मेरी पार्टनर का तो यही था की नहीं हम अलग अलग थाली में ही खायेंगें चाहे कुछ भी हो जाये.
  आज भी ध्यान है कि शादी के पहले जब हमारी पहली मुलाकात हुयी थी तो मैने अलग अलग थाली में ही अपना खाना सर्व किया था उस दिन उसने मुझे सिर्फ यही कहकर टोक दिया था कि एक ही थाली में भी हम दोनो खा सकते है. तब से आज तक हम कभी भी कहीं भी गये पर खाना एक साथ ही ,एक ही थाली में खाते थे. यहाँ तक की घर में कभी कभी जब सभी खाना खा लेते थे तो मै उसके साथ ,उसका साथ देने के लिये एक ही थाली में खाना खाते थे.मेरा बचपन से मानना था कि एक वक्त ऐसा जरूर आयेगा जब मै और मेरी पार्टनर एक साथ ,एक ही थाली मे हमेशा खाना खायेंगें. इससे हमारे बीच में खाने के साथ साथ बातें भी होती जाती थी. और खाना खाने के बहाने एक अच्छी बातचीत का मौका भी मिल जाता था. मैने अपने अनुसार इस माहौल को भी बदल लिया था. पर अफसोस तो तब हुआ जब मेरी पार्टनर ने कल यह कह दिया कि एक ही थाली में खाना खाना सिर्फ एक दिखावा है और कुछ नहीं.और वह अपने घर वालों के सामने इस तरह का दिखावा नहीं करेगी.
कल भी मैने उसे बहुत सारी बातें बतायी. यह तो झूँठी संस्कॄति का नकाब है तुमने मेरे साथ इसे ओढ लिया और अपने घर वालों के सामने उनकी तरह होकर पेश आने लगी. आज भी उसका यही मानना है कि एक साथ थाली मे मेरा उसके साथ खाना खाना सिर्फ एक दिखावा है.इससे अपनापन, प्यार और नजदीकी बढने जैसी कोई चीज नहीं है. चलो कल उसने इस बात का एहसास करवा ही दिया कि वो मेरी नजदीकी, मेरे प्यार, और मेरे अपनेपन को जो कहीं ना कहीं एक थाली में खाना खाने से बढने लगा था और इस समय पर ही सही  अपनी प्रोफेसनल जिंदगी से हम दोनो एक दूसरे को खाने के बहाने ज्यादा वख्त देने लगे थे वह सिर्फ उसकी नजर में एक दिखावा है क्योंकी मेरी ससुराल में यह परंपरा नहीं है पति और पत्नी एक साथ एक ही थाली में खाना खाकर कुछ समय एक साथ व्यतीत करें.मै ही पागल था जो उसे नजदीक लाने का यह बहाना उसे देने की असफल कोशिश करता रहा.

सोमवार, 4 मार्च 2013

:स्वीटू



कहानी:स्वीटू
शादी को कुछ महीने ही गुजरे थे एक दिन अचानक स्वीटू ने आकाश से चाय की टेबल पर कहा"दिन भर मै यहां इस घर मे ऊब जाती हूं प्लीज मेरी जोब की बात कहीं करो ना. मै भी स्कूल मे पढाना चाहती हूं"
"घर मे ट्यूशन कर लो. वक्त भी गुजर जायेगा और तुम्हे बोरियत भी महसूस नहीं होगी." आकाश ने जवाब दिया. और चुप चाप अपनी बाइक से स्कूल की ओर तेज गति से चला गया. स्वीटू उसकी तरफ़  एक उम्मीद से देखती रही और उसके व्यवहार को समझने की कोशिश करती रही.
 आकाश अपने घर से १५ किलोमीटर दूर एक क्रिश्चियन स्कूल मे बायो लेक्चरर है आज शायद उसके स्कूल मे यूनिट टेस्ट थे. टेस्ट के बाद वो स्टाफ़ रूम मे आकर देखा तो सब अपनी ड्यूटी से वापिस नहीं लौटे है वो चुपचाप अपनी सीट मे बैठ गया और सुबह सुबह अपनी लाइफ़ पार्टनर स्वीटू की सुबह की बात पर सोचने लगा. उसे आज वह शाम याद आगयी  जब वो शादी के एक महीने पहले स्वीटू से रूटीन फ़ोन से बात कर रहा था और स्वीटू ने अपनी बात उसके सामने रखी थी.
"मैने सोच लिया है शादी के पहले स्कूल पढाने नहीं जाउँगी, एक तो इतना दूर. और दूसरी सबसे बडी बात कि मुझे और अपने मम्मी पापा के साथ रहना शादी के पहले कुछ दिन और रहना है."- स्वीटू ने फ़िर से एक बार अपने विचार आकाश के सामने रख दिये.
 आकाश और स्वीटू लगभग सात सालों से एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते है दोनो की सहमति से और दोनो परिवारों की सहमति से शादी भी बहुत जल्द करने वाले है. दोनो एक दूसरे से प्यार कितना करते है इस बात का अभास आकाश को बखूबी है पर स्वीटू इस बात को जान बूझ कर अनदेखा कर मन ही मन मुस्काती है. दोनो पेशे से शिक्षक है अभी तक अलग स्कूल मे अपनी सेवाएँ देरहे थे. आकाश ने कोशिश करके अपने स्कूल मे फ़ादर से कहकर आर्ट और म्युजिक के लिये स्वीटू की नौकरी भी लगवा दी थी.
     दोनो का परिवार मध्यम वर्ग से ताल्लुकात रखता है. आकाश का फ़क्कडपन और शेरो शायरी मे रुचि ने उसे विज्ञान के क्षेत्र से साहित्य की जमीन मे खडा कर दिया. इस दरमियाँ एक मुशायरे मे उसकी मुलाकात स्वीटू के पिता जी से हो गयी. दोनो की उमर मे काफ़ी अंतर जरूर था .दोनो को एक ही डोर जोडती थी. और वो थी शेरो शायरी. एक लम्बा वक्त गुजर गया साथ साथ मे इस्लाह करते हुये
जब कुछ आकाश के द्वारा लिखा जाता तो  स्वीटू के पिता जी को जरूर दिखाया जाता, इस तरह एक तरह से स्वीटू के यहां आना जाना भी शुरू हुआ. एक दिन की बात है आकाश भी शादी के बारे मे सोच रहा था  उसे महसूस होने लगा था कि स्वीटू उसके जीवन के लिये सही चयन है. साहित्यिक रिस्ते पारिवारिक रिस्तों मे बदले जा सकते है. उसने तुरंत ही स्वीटू के पिता जी को फ़ोन लगाया और अपने मन की सारी बात कह दी. उन्हे इस बात की खुशी थी कि आकाश ने इतनी बेबाकी से सारी बात कही थी कि उसकी ईमानदारी पे संदेह तक नहीं किया जा सकता था, और उसने यहां तक कहा कि इस बात के बारे मे वो स्वीटू से भी पूँछ ले. अंतत: दोनो परिवारों के बीच रिस्ते की बात हुयी और आकाश और स्वीटू की शादी की डेट भी तय हो गयी. आकाश और स्वीटू  ने यह भी तय किया कि साथ मे नौकरी करेगे तो सही रहेगा. इसी वजह से आकाश ने बाहर की नौकरी को समय से पहले छोडकर अपने शहर के अपने पुराने स्कूल मे दोनो की नौकरी तय करवाई.दोनो की सगाई जो स्कूल शुरू होने के पहले होनी थी वो आकाश के बाबा जी के स्वर्ग सिधार जाने की वजह् उस वक्त नहीं हो पायी.
जिस दिन इस सगाई की डेट निरस्त की गई थी उसी दिन आकाश को लगने लगा था की अब शायद स्वीटू के परिवार के लोग उसे स्कूल नहीं जाने देगे वो भी शादी के पहले. और जब शादी भी तय हुयी तो वो भी नये सत्र के अंतिम सप्ताह मे .बहुत बडी दुविधा थी. सब अपनी जगह सही थे.स्कूल के फ़ादर से बात करने पर यह परिणाम निकला कि नये सत्र मे १०-१५ दिन आकर स्वीटू स्कूल के महौल को देख ले सभी के साथ फ़ेमीलियर हो जाये उसक बाद वो समर वेकेशन के बाद कान्टीन्यू कर लेगी.वरना फ़िर जून और जुलाई मे ज्वाइनिंग मुश्किल हो जायेगी.और पूरा सत्र बरबाद हो जायेगा,
 जब से नई शादी की डेट आई थी तभी से आकाश स्वीटू आपस  मे बात करते थे. जब भी स्कूल का मुद्दा आता तो स्वीटू हँसते हँसते आकाश के साथ नये सत्र मे स्कूल चलने की बात करती. इसी बहाने दोनो को कुछ सुकून मिल जाता था. धीरे धीरे वक्त गुजरने के साथ ही स्वीटू के घर का माहौल बदलने लगा. वो स्कूल भेजने के विरोध मे स्वीटू के ऊपर दबाव बनाने लगे. जब यह बात आकाश को पता चली. तो आकाश ने स्वीटू को फ़ादर से हुये डिस्कशन के बारे मे विस्तार से बताया. और यह भी सुझाव दिया कि १५ दिन की बात है उसके बाद तो सब सही हो जायेगा. इस मामले को लेकर आकाश ने अपने घर .. और स्वीटू के घर  के सभी सदस्यों को हर तथ्य और मजबूरियॊं को समझाया.
किसी तरह अपने घर की सहमति के बाद ,आकाश को आभास हुआ की स्वीटू की माँ की सबसे बडी समस्या है वो समाज को ज्यादा ही तवज्जो देती है और उनके रूखे व्यव्हार का प्रभाव स्वीटू के बात करने मे साफ़ दिखाई देने लगा था.स्वीटू की माँ का मानना था "इतना दूर शादी के कुछ दिन पहले कैसे जायेगी मेरी फ़ूल से बच्ची. समाज क्या सोचेगा. हमे भी तो इसी समाज मे रहना है" शादी के बाद जाती तो सब सही होता, ठीक है,आकाश है साथ मे पर कैसे भरोसा हो इस जालिम समाज मे"
  आकाश को जब यह बात पता चली तो वो एक दिन स्वीटू के घर उसके माँ और पापा से मिलने गया. वहाँ पर स्वीटू की माँ को अपने मन की बात बताई"देखिये मैम, मैने आप सब के यकीन के चलते स्कूल मे किसी तरह स्वीटू के जाब की बात की आप इस तरह दकिया नूसी विचारों के चलते क्यों उसका भविष्य बरबाद कर रहीं है. यदि मै आपसबके यकीन के चलते स्वीटू को अपनी मंगेतर के रूप मे मान चुका हूं और स्कूल  मे सभी से मिलवाया. और शादी भी उसी से करूंगा. तो १५दिन की ही बात हैसिर्फ़. मै हूं ना. अब वो मेरी भी जिम्मेवारी हैआप कम से कम मेरे यकीन के बारे मे भी सोचिये. और फ़िर समाज के बारे मे सोचिये. मेरी स्वीटू से कोई सगाई नहीं हुयी फ़िर भी अपने यकीन के चलते मै उसको अपनी मंगेतर बता सकता हूं ,और आप मुझ पर इतना यकीन नहीं कर सकती हैं"
. लेकिन वो महिला टस से मस नहीं हुई. आकाश चिरौरी करके हारगया पर. परिणाम शून्य आया,और आखिरकार घर के दबाव के चलते
एक शाम स्वीटू ने कह ही दिया कि  वो शादी के पहले स्कूल नही जा पायेगी. वजह कुछ भी रही हो पर आकाश भी जान गया कि माँ का असर स्वीटू की बातचीत से दिखने लगा. वो भी क्या करती आकाश को दिलाये गये सारे यकीन. आकाश के साथ किये गये सारे वादे एक तरफ़ थे और अपनी माँ की खुशी एक तरफ़ थी. वो आकाश के लिये अपनी माँ को दुःख नहीं देसकती थी. उसने अपने कैरियर को अपनी माँ की खुशी के लिये बलिदान कर दिया.
 स्वीटू ने आकाश के सारे प्रयासों और सारी कोशिशो को बिना समझे इस मामले मे उसका साथ नहीं दिया और सभी के सामने वो आकाश को बुरा बना ही चुकी थी, जिस स्वीटू के लिये आकाश ने बिना किसी रस्म के अपनी मंगेतर मान लिया था उसी ने उसका ऐन वक्त पे साथ छोड दिया, आकाश ने सारी बातॊं को एक ही पल मे भांफ़ लिया. उसने स्वीटू को अन्तिम बार शादी के पहले फ़ोन किया और कहा "स्वीटू,मैने बहुत सोचकर यह परिणाम निकाला है कि यदि तुम सत्र की शुरुआत मे स्कूल नहीं जाओगी तो शादी के बाद तुम नौकरी नहीं करोगी.बाद मे देखेगे’ और यही बात उसने स्वीटू के पिता जी से भी कह दिया,
 और तब से आज तक कई महीने बीत गए. आज  स्वीटू घर मे रहती है.इस पूरे घटना चक्र मे सब बिखर गया. वो आज भी नहीं समझ पायी की उसका स्कूल ना जाने का निर्णय कितना सही था.

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

कहानी: समझौता.


कहानी: समझौता. - अनिल अयान

"क्या मै अंदर आ सकता हूं" तेजस ने नीले रंग की ड्रेस पहने हुये दरवाजा खोलकर कहा.
"यस कम इन"मैनेजर ने तेजस की ओर बिना देखे उत्तर दिया.
तेजस ने मैनेजर का उत्तर सुनकर अंदर आ गया. नीली ड्रेस पहने और माथे पर बहुत थोडे से बाल बिल्कुल आज की उमर का नौजवान की तरह था तेजस. मैनेजर की टेबल के नजदीक पहुंचते ही मैनेजर ने बैठने के लिये  कह दिया.
चेंबर का माहौल शांत था. मशीनों की आवाज तक नहीं आरही थी. तेजस को पता था की मैनेजर ने उसे क्यों बुलाया है.
वह यह भी जानता था कि तेजस की ओर घुमायी. तेजस की ओर मुंह करते हुये बोला.
  "इस हडताल का नोटिश तुमने साइन किया है."
"हां !तो" मुझे कोई आपत्ति नहीं है कि हडताल  के नोटिस पर किसके शाइन किया है. इसकी भी ज्यादा परवाह नहीं है कि कितना और किसका नुकसान होगा.पर तुम्हारी चिंता है." मैनेजर ने तेजस की अपना इशारा करते हुये कहा.
तेजस ने कहा :"आप मेरी चिंता मत करिये. हमारी मांग मालिकों तक पहुंचाइये और बता दीजिये यदि मांगे नहीं मांगी गयी तो सारे मजदूर ८ तारीख को ह्डताल मे चले जायेंगे.
मैनेजर उसकी बातों को सुना और सामान्य लहजे से पूंछा
"तुम्हारी क्या उमर है तेजस"
"२४ साल" तेजस ने जवाब दिया.
"तुम जानते हो, यह कंपनी ४८ साल से भी ज्यादा पुरानी है, और आज तक यहां कोई हडताल सफ़ल नहीं हुई" मैनेजर ने पूर्ण विश्वास के साथ अपनी बात रखी.
"मैनेजर साहब! पहले क्या हुआ ,इससे मुझे कोई सरोकार नहीं है बल्कि मै तो मजदूरों का भविष्य देखता हूं"
- तेजस ने जवाब दिया.
" मै भी तुम्हे यही कहता हूं कि तुम लोग आंगे की देखो. अभी एक साल भी नहीं हुआ तुम्हारी नौकरी लगे. यदि कम्पनी चाहे तो रेडमार्क लगा कर तुम्हे निकाल दे तो तुम किसी लायक नहीं बचोगे." समझदारी से काम लो तेजस." मैनेजर ने उसे समझाया.
मैनेजर की बात सुनकर तेजस कुरसी से  खडा हुआ. और खिडकी को खोलकर देखने लगा. खिडकी खुलते ही मशीनों कीआवाज आने लगी . तब तेजस ने वहीं से मैनेजर को कहा: " साहब ! साउण्ड प्रूफ़ कमरों मे भले  ही  यह आवाज आपको डिस्टर्ब करे पर मेरे लिये यह आवाज जीवन का संगीत है. इसी आवाज से मजदूरों का घर चलता है और उन मजदूरों  के भविष्य से ज्यादा मेरा भविष्य महत्व्पूर्ण नहीं है."
तेजस यदि तुम हमारा साथ दो तो मिल की हिस्सेदारी भी तुम्हे भविष्य मे मिल सकती है. एक बार सोच लो" मैनेजर ने बात को बनाने की कोशिश की.तभी रामू काका भी तेजस के पास आगये. रामू काका आफ़िस के चपरासी थे.
"बेटा तुम्हारा भविष्य महत्व्पूर्ण है यदि तुम ही चले जाओगे तो हमारा रखवाला कौन होगा." रामू काका ने तेजस से कहा.
समय गुजरता जा रहा था. पूरी फ़ैक्टरी मे हलचल थी. सभी मजदूरों के दिमाग मे यही चल रहा था कि ८ तारीख को क्या होगा. तेजस को सुनने के लिये सभी लोग एकत्र हुये. तेजस ज्यों ही मंच मे पहुंचा तभी मैनेजर का चपरासी जयदीप दौडते हुये आया और बोला." तेजस भैया! आपको बडे साहब बुला रहे है."
तेजस ने बहुत ही आश्चर्य मे आकर कहा" तुम चलो मै आता हूं."
वह मंच से नीचे उतरा और सीधे मालिक के चेंबर की ओर गया.
जैसे ही स्वागत कक्ष की ओर गया तेजस गया तो कंपनी के मालिक की गाडी खडी हुयी थी. मालिक शांति लाल जी स्वागत कक्ष मे बैठे जैसे उसी का इंतजार कर रहे थे.
"आओ तेजस! बैठो आखिर तुमने यहां पर हमे बुला ही लिया" शान्तिलाल जी  ने इतना कहते हुये बैठने का इशारा किया. तेजस उनके सामने बैठ गया. उन्होने फ़ाइल खोली और बोले " अच्छा तेजस तुम तो बहुत पढे लिखे हो. सुपरवाइजर लायक तो नहीं लगते, बल्कि मैनेजर लायक लगते हो. मुझे लगता है कि इतना होनहार नवयुवक मजदूरों के चक्कर मे बेकार को ही पडा है."
उनकी बात सुनकर तेजस परेशान सा हो गया. उसने अपने आप मे काबू करते हुये कहा " सर मै वर्तमान मे विश्वास करता हूं. वर्तमान मे मै सुपरवाइजर हूं और मजदूरों के साथ अन्याय नहीं देख सकता हूं."
" मजदूरों का न्याय और अन्याय देखने के लिये हम है, तुम तो अपना कैरियर देखो. मजदूर और हडताल यह सब बात नौजवानों के लिये ठीक नहीं. तुम तो अपना कैरियर बनाओ" शांतिलाल जी ने कहा.
"सर धन्यवाद आप मेरी चिंता न करें आप तो ह्डताल और नुकशान की चिंता कीजिये. मै अपने फ़र्ज से पीछे नहीं हट सकता. आप तो ये बताइये कि मजदूरों के हक  मे फ़ैसला करते है या नही." तेजस ने स्वर ऊंचा करते हुये जवाब दिया.
 तेजस की तीव्रता को भांफ़ते हुये गुस्से मे शांतिलाल जी बोले "बेटा!नेतागिरी का भूत उतार फ़ेंको. वरना यह तुम्हे बरबाद कर देगा. कल शाम तक मजदूरों को समझाओ और खुद भी समझ जाओ नहीं तो मै तुम लोगो को देख लूंगा. अब तुम जा सकते हो."
शांतिलाल जी ने गुस्से मे आकर धमकी दी. और दोनो लोग मजदूरों की तरफ़ चल दिये.
आज वो दिन भी आगया सभी परन्तु अपना काम कर रहे थे. तेजस भी मजदूरों के बीच सुपरवाइजर का काम कर रहा था. दोपहर मे शांतिलाल जी की गाडी फ़िर आकर खडी हुयी. उनके साथ मैनेजर भी था.
"तेजस की फ़ाइल लाओ और मै जैसा बता रहा हूं उसे यहां से धक्के मार कर बाहर निकाल दो वह हमारे लिये मुसीबत बन रहा है." उन्होने मैनेजर से कहा.
तभी उनके कानों मे मशीनों की आवाज पडी. समय देखा तो रात होने वाली थी. उन्होने तुरंत मैनेजर को बुलाया और कहा जाकर देखो इतनी रात को यह आवाज कैसे आरही है"
मैनेजर की ओर गया और शांतिलाल जी अपने कक्ष मे चले गये उन्होने अखबार देखना शुरू किया ही था कि मैनेजर ने बोला " तेजस ने कहा है कि जाइये हम सब हडताल मे है जब तक हमारी मांगे नही मानी जायेगी तब तक हम मशीनों को बिना रुके चलाते रहेगे."
शांतिलाल जी ने कहा " यह कैसी हडताल है मैनेजर साहब."
"शायद नये जमाने की हडताल हो तेजस का दिमाग है इसलिये कह रहा हूं" मैनेजर ने जवाब दिया.
शांतिलाल जी खिडकी से मशीनों की आवाजों मे परिवर्तन महसूस किया और बोले "यदि हम बात नहीं मानेगे तो ये सभी मजदूर हमारी करोडो की मशीनों को कबाड बना देंगे मैनेजर साहब."
आप जाकर उनसे कहिये कि हमने उनकी शर्तों से समझौता कर लिया है वो अपने ड्यूटी समय मे ही काम करें.उन्हे नया वेतनमान और सुविधाये मिलेंगी".
और हां तेजस को अब मै सुपरवाइजर से असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट दी गयी है इस समझौते मे यह भी बता दीजिये उन लोगो को."
शांतिलाल जी कार मे बैठ कर वापस चले जाते है. मैनेजर का संदेश मिलते ही सारे मजदूर इस समझौते के अवसर पर तेजस और रामू काका के साथ जश्न मनाते है.
....................................................................................................................... - अनिल अयान

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