कहानी- रिश्ते
की ब्याज -अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान",सतना
सुबह का अखबार
देखते ही नीलेश के होश उड गये.शशिकांत की गुमशुदगी की सूचना उसकी नजरों के सामने घूम
रही थी.जब वो शशिकांत के बारे में सोचता तो उसे हमेशा ही क्षोभ सा महसूस होता था.कुछ
समय पहले की ही तो घटना है कि शशिकांत के बडे भाईसाहब से उसकी काफी बहस भी हुई थी.
शशिकांत नीलेश के परिवार के दूर के रिश्तेदार थे. रिश्ते में वो नीलेश के चाचा जी लगते
थे.लेकिन थे हम उम्र ही.नीलेश को बातों ही बातों में पता चला कि शशिकांत की अपने बडे
भाई साहब के साथ तीखी बहस हुई थी.पिता जी की अमानत के रूप में शशिकांत बडे भाई साहब
की जिम्मेवारी बन गये. बचपन में ही मां और बाप की छत्र छाया उनके सिर से उठ गई थी.
बडे भाई के साथ कपडे सिलने की दुकान में काम करते हुये उन्होने मैट्रिक तक किसी तरह
पढाई पूरी की.फिर प्राइवेट बीए कर लिया.दुकान में जब जेब खर्ची भी न निकल पाई तो तीन
हजार रुपये की महीने की पगार में वो नामी गिरामी आटोमोबाईल्स में आफिस ब्वाय बन गये.
इधर बडे भाईसाहब की शादी एक बडे घराने में तय
हो गई.उनके ऊपर अपने परिवार की जिम्मेवारी बढने लगी,पहले पत्नी और फिर बडे होते दो
बच्चे.बडे भाई साहब को पता ही नहीं चला कि कब उनके बच्चे नन्हे मुन्हे बच्चों की श्रेणी
से कालेज गोईंग नौजवान हो गये.और शशिकांत नौजवान से अधेड होते चले गये. वो आफिस ब्वाय
से स्टोर कीपर फिर स्टोर कीपर से आफिर इंचार्ज में प्रमोशन होता चला गया.घर से भी उनका
लगाव लगभग ना के बराबर रहा. सुबह का नाश्ता,रात का खाना और सोना बस इतना ही संपर्क
रहा.बातचीत के नाम पर महीने का कुछ हजार रुपये देने की बात होती थी.जैसे कोई पेइंग
गेस्ट घर में रह रहा हो,बडे भाईसाहब की पारिवारिक जिम्मेवारियों ने उनके दिमाग से शशिकांत
की जिम्मेवारी को काफी पीछे छॊड दिया.बच्चों को पढाने के साथ अन्य निर्णयों में बडे
भाई साहब के साढू भाई का योगदान अधिक होता था.
नीलेश की मुलाकात जब भी शशिकांत से यूं तो यदा
कदा होती थी.परन्तु जब भी होती तो उनका दुखडा हमेशा मेरे सामने हुआ करता था.उनकी जिंदगी
जंजालों में फंस चुकी थी.पारिवारिक जिम्मेवारियां कुछ ऐसी थी कि शशिकांत जी बीस से
तीस और तीस से चालीस तक पहुंच गये.जब भी नीलेश उनसे शादी का जिक्र करता तो वो यही करते
की.मुझे करना होतो तो मै कल ही कर लूं.आपकी चाची जी को घर ले आऊ. पर बडे भैयामुझे घर
से बाहर निकाल देगें. नीलेश मजे लेते हुये कहते कि तो बडे भैया क्या आपकी शादी बुढानीदार
करेंगें.एक छॊटा सापुट लेकर दोनो ठहाके मार कर हंस देते थे.उस मुलाकात के कुछ महीनों
बाद पता चला कि एक बार जो उनकी और बडे भाई साहब की बहस हुई थी वो शादी को लेकर ही हुई
थी. शशिकांत अपनी पसंद की शादी करना चाहते थे और बडे भाई साहब शादी के दहेजसे ही उनकी
शादी को निपटाना चाहते थे.इस लिये उनकी शादी में इतना देर हो रही थी. नीलेश को कानों
कान खबर मिली कि बडे भाई साहब अपने साढू भाई के परिवार की किसी उम्रदराज लडकी से शशिकांत
का चोला बांधने की फिराक में हैं.शशिकांत को यह बात अच्छी तरह से पता थी इस लिये वो
भी ज्यादा कुछ हामी नहीं भर रहे थे. गुप्त सूत्रों से पता चला कि वो लडकी कुछ दिमाग
से पैदल है.गुप्त सूत्र क्या नीलेश ने एक दिन बडे भाई साहब उनके साढू भाई और भाई की
बात चोरी छिपे सुन लिया था.उसने साढू भाई को यह भी सुन लिया कि "इतना दहेज का
पैसा मिलेगा कि तुम लोग छोटे की शादी भी कर दोगे तब भी घर खर्च आराम से चलता रहेगा."
भाभी जी को यह बात जंच गई तो फिर क्या वो भाई साहब पर ऐसा दबाव बनाया कि भाई साहब ने
शशिकांत को यह बोल कर राजी कर ही लिया कि" देख छोटे लडकी को कम सुनाई पडता है.वह
बीमारी तो सुनने की मशीन के साथ दूर हो जायेगी.तेरा विवाह भी हो जायेगा.पिता जी की
इच्छा भी पूरी हो जायेगी." यह मेरी अंतिम कोशिश है मै भी तेरे विवाह के बाद अपने
परिवार की सोचूंगा."
पर भैया.इस तरह से मेरा जीवन कहां पार होगा.आप
कहें तो मै मंदिर से शादी कर लूं.लेकिन सही लडकी से मेरी शादी होनी चाहिये."शशिकांत
ने जवाब दिया.
"देख छॊटे
अब जिद मत कर तू समझ नहीं रहा है. तेरे पास ज्यादा जीवन का अनुभव नहीं है.मै जो फैसला
लूंगा वो तेरे लिये सही रहेगा. आखिरकार तेरा बडा भाई हूं. अब जिद मत कर.वरना जो तुझे
करना हो कर और चला जा यहां से."बडे भाई साहब को अपनी बात कमतर होते देख गुस्सा
आ गया. फिर उन्होने कुछ सोच कर शशिकांत को अपने पास बिठाया और उन्हें प्यार से समझाया
कि देख छॊटे मेरे अपने रिश्ते के लिये लिये तू यह शादी कर ले तू बहुत खुश रहेगा. तेरे
ससुराल वाले तुझे कोई दुख नहीं देगें.तुझे कसम है मेरी."शशिकांत जी का मौन उनकी
कसम और मजबूरी की बेडी बन कर उनके पैरों में बांध दी गई.एक दो दिनों के अंदर ही उनके
पल्लू वो अमीर जादी पैदल लडकी बांध दी गई.कुल मिलाकर बडे भाई साहब ने अपने साढू भाई
के साथ उनका बैंड बजवा ही दिया. एक दो दिन बाद जब नीलेश से उनकी मुलाकात हुई तो चाय
पीते पीते वो अपनी पीडा बता ही दिये कि "मुझे लगता है कि वो कम सुनने वाली ही
बस नहीं है वो तो मुझे दिमाग से मंद समझ में आती है या यह कहूं कि पागल की तरह उसकी
हरकतें हैं." नीलेश सब जानते हुये भी खामोश रहा. एक पल को सोचा "अगर मै इन्हें
सब कुछ बता देता हूं तो पारिवारिक कलह होगी और मेरी टांग भी फंस जायेगी." वो बोला
परेशान मत होईये.धीरे धीरे सब सही हो जायेगा."
अगले कुछ महीनों में तो शशीकांत का घर किसी पागलखाने
की तरह नजर आने लगा.यह उनके मोहल्ले वाले कहते फिरते थे.हर दिन ऐसा गुजरता कि छोटी
बहू तो हडकंप मचा देती.दाल में शक्कर डालना.हंसना शुरू होता तो रुकने का नाम लेना,रात
में दो दो घंटे नहाना, रात में पूजा करना,आधी रात को घर से बाहर भाग चलना आदि आदि,पूरा
परिवार जैसे अस्त व्यस्त सा नजर आने लगा. एक दिन नीलेश ने शशिकांत से बात करके उनके
साथ बडे भाई साहब को समझाने गया परन्तु उल्टा उसे ही दोषी बन कर वापिस भेज दिया गया.अगले
दिन शशिकांत की इस मुसीबत से उन्हे छुटकारा दिलाने के लिये वो उन्हें फोन में पट्टी
पढाई कि वो इस बार अपनी पत्नी को पहले सावन में जब मायके भेजें तो दो बारा तब तक लेने
ना जाये.जब तक उसके घर वाले उसका इलाज न करवा दे."बडे भाई साहब तो कुछ कहने से
रहे क्योंकि साढू भाई के सामने उनकी बेइज्जती हो जायेगी. तभी कुछ हो सकता है."शशिकांत
ने ठीक वैसा ही किया.
आने वाला समय कुछ अप्रत्यासित ही रहा.जैसे ही
सावन बीता तो शशिकांत के ससुराल वालों ने दबाव बनाया कि आकर वो अपनी पत्नी को ले जाये.शशीकांत
ने भी अपनी पट्टी को उनके सामने बोल दिया. कुछ समय गुजरा तो साढूभाई उनके ससुराल वालों
की तरफ से कोर्ट का लिफाफा लेकर आगये.जिसमें एक कागज समझौते का था. जिसमें यदि शशीकांत
अपनी पत्नी को बुलालाते हैं तो कुछ और लाख रुपये मिल जायेगें. और जीवन भर सुख सुविधाये
भी. नहीं तो दूसरा कागज कानूनन नोटिस जिसमें दहेजप्रथा के चलते कोर्ट में अगली पेशी
में शशीकांत को जाना पडेगा." साढू भाई,बडे भाई साहब,और भाभी ने पहले प्रस्ताव
को स्वीकार करने का दबाव शशिकांत पर बनाया. ताकि कोर्ट कचेहरी से छुटकारा मिल जाये.
मामला दबा रहे.
शशीकांत चिडचिडा कर आखिरकार अपने मन की भडास
निकाल ही दिये"भैया आपकी कसम की वजह से मुझे यह शादी करना पडा वरना मै अपनी जिंदगी
में खुश था.बस बहुत हो गया अब मै यह सब नहीं कर पाऊंगा." उन्हें जो कुछ करना हो
कर लें.इस प्रकार के जीवन से तो बेहतर है कि मै आत्महत्या कर लूं.मुझे सब कुछ समझ में
आरहा है.” इतना सब कुछ होने के बाद बडे भाई साहब ने भी अपना पल्लू झाड कर सारा मामला
शशिकांत के खाते में डालकर फुरसत हो गये. दूसरे ही दिन शशीकांत नीलेश के पास आये और
अपनी आप बीती मुझे सुना डाला. नीलेश ने मामले की नजाकत को भांपते हुये,हर पहलू पर गौर
किया. फिर बोला," आप क्या सोचे हैं.".. मुझे क्या सोचना है लगता है कि मै
यहां से सब कुछ छॊड कर भाग जाऊं कहीं दूर जहां मै सुकून की जिंदगी जी सकूं"..
नीलेश ने भी संजीदगी से कहा" तो भाग जाइये यही एक रास्ता बचा है.आप अकेले कोर्ट
से जीत नहीं सकते,ना ही आपके पास इतनी इन्कम है कि कचेहरी की चोचलें बर्दास्त कर सकें
और बाद में आपको अपनी ब्याहता को लाना ही पडेगा या फिर उसके जीवन यापन का खर्च देना
पडेगा."
"अच्छा यह बताइये आपका कहीं दूसरे शहर में
जुगाड है. मेरा कहने का मतलब नौकरी चाकरी. और आपकी तथाकथित जीवन साथी का क्या हुआ जिसके
साथ आपने अपने जीवन के ख्वाब देखे थे." नीलेश ने कोई राह निकालने की कोशिश की.
" कौन पूजा वो तो आज भी मेरा इंतजार कर
रही है. मेरे साथ जाब करती थी, उसके बाद वो पुणे चली गई.अभी मेरी कोई बात नहीं हुई
परन्तु यदि मै बात करू तो मेरी नौकरी का इंतजाम भी वो करवा देगी."
"तो फिर आप कल ही यहां से बोरिया बिस्तर
उठाकर रफू चक्कर हो जाईये.कुछ दिन तक खोजबीन होगी.बडे भाई साहब को उनके साढू भाई और
भाभी सम्हाल लेगीं." गुमसुदगी की पेपर बाजी होगी और धीरे धीरे फिर सब मामला शांत."
शशिकांत ने नीलेश की बातों को चंद्रगुप्त की
तरह मान कर इस शहर से पलायन कर दिया. बीच में नीलेश की ट्रेनिंग एक महीने के लिये दिल्ली
में शुरु हो गई.इधर वैसा ही हुआ जैसा नीलेश ने सोचा था.गुजरे एक महीनों में शशिकांत
का मोबाईल स्विच आफ आने लगा. भैया कुछ दिन तक सक्ते में रहे लेकिन साढू भाई और भाभी
जी के प्रेम ने उन्हें शशिकांत के नाम को भुलाने में मदद की.दहेज के पैसे से उनका जीवन
यापन हो ही रहा था. और तो और शशिकांत की दिमाग
से पैदल पत्नी का मेंटल हास्पीटल में इलाज होने लगा.
जैसे ही नीलेश ने अखबार रखा कि अचानक एक अनजाना
सा नंबर उनके मोबाइल में बज उठा.
"हैलो कौन"
"कैसे हैं
आप"
"माफ करियेगा
मैने पहचाना नहीं"
" हमें गुमशुदा बनाकर क्यों पहचानेगें"
" अरे शशिकांत भाई.. कैसे हैं आप..आप तो हमे
भूल ही गये"
" कहां बस
हो गया चल रही है जिंदगी".. मैने पूजा के साथ इसी सोमवार को कोर्ट मैरिज कर ली
है. अब हम दोनो अपना खुद का बिजनेस कर रहे हैं यहां"
"आप सब कैसे
हैं" शशिकांत ने पूंछा.
"मै तो आज
ही दिल्ली से लौटा हूं. सब में भाई साहब मजे में हैं. आपकी पूर्व पत्नी इस समय मेंटल
हास्पीटल में विश्राम कर रही है." नीलेश ने हंस कर जवाब दिया
दोनो लोग फोन में
ठहाके मार कर हंस दिये. नीलेश को इस बात की प्रसन्नता थी रिस्तों की ब्याज चुकाने से
शशिकांत बच गये और अपनी जिंदगी में खुश तो हैं.
अनिल श्रीवास्तव
"अनिल अयान"
श्रीराम गली,मारुति
नगर,पोस्ट बिडला विकास,सतना
म.प्र, संपर्क:९४७९४११४०७