अनिल अयान श्रीवास्तव
संपादक : शब्द शिल्पी,सतना
कवि और कहानी कार
दीपशिख स्कूल से तीसरी गली
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कहानी: मंगली....
"क्यों री तुझे कितनी बार कहा की पूजा के समय पर अपनी पढाई मत किय कर. दस मिनट के लिये बंद कर देगी तो कौन सा पहाड टूट पडेगा." स्वाती की मां ने पूजा घर से आवाज लगाई.
स्वाती कालेज मे अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रही है. चुपचाप मुंह बनाकर कम्प्यूटर मे बैठी और खेल खेलना शुरू कर दिया.मां ने पूजा करना शुरू ही किया था तभी स्वाती के पिता जी ने बाहर से आते हुये आवाज लगायी,
"स्वाती की मां सुनती हो, कहां हो ,,, इस रविवार को लड्के वाले आरहे है स्वाती को देखने. तैयारियां कर लेना और जब देखो तब पूजा करती रहती हो."
स्वाती रमाशंकर जी की इकलौती बेटी बी,ई, कर रही है.अंतिम वर्ष है, होनी का लिखा कौन टाल सकता था, नक्षत्रों ने करवट बदला तो बेटी को मंगली होने का दंश झेलना पड रहा है.पूरा परिवार पढा लिखा है परन्तु इस समाज को कौन समझाये.वह तो मुंआ आज भी दकियानूसी विचारधाराओ और कलुषित मानसिकता के पीछे औंधे मुंह दौड रहा है बेटी की जिद थी तो रमाशंकर जी ने उसे बी.ई. करा दिया. अब वह जिद मे है कि अभी शादी नहीं करेगी , पी.एस.सी. के तैयारी करेगी. सरकारी नौकरी करेगी. इधर मां की जिद है की बेटी के हाथ पीले कर दो. पर मंगली नाम का धब्बा पांच रिस्तोंको घर के बाहर का रास्ता दिखा चुका है. ये रिस्ता बडी मुश्किल से आया है लडका सरकारी क्लर्क है और सबसे बडी बात मंगली भी.
स्वाती के पेपर खत्म भी हो गये और कैम्पस भी आया, चयन भी हुआ. पर घर मे मां का रोन पिटना भी लग गया.वही पुराना राग ... बेटी जवान है कहीं इधर उधर ऊंच नींच हो गयी तो लोगों को क्या मुंह दिखायेगे.रोज का यही मुद्दा होने की वजह से अंतत: स्वाती का बाहर जाकर नौकरी करना भी कैंसिल होगया.
समय गुजरते देर नही लगी, रविवार का दिन भी आ गया,. लडके वाले शर्मा जी पहुंच गये आटो रिक्शा मे अपनी पत्नी बेटे और खुद तीन क्विंट्ल का वजन लेकर, और जाते ही धंस गये सोफ़े मे और कर भी क्या सकते थे. बात चीत का दौर शुरू हुआ, चाय नाश्ता कराया गया और फ़िर जब फ़ुरसत हुये तब....
पान चबाते हुये शर्मा जी बोले
"अब रमाशंकर जी आपकी बेटी तो हमने देख ही ली. सुशील, पढी लिखी और सांस्कारिक भी है किन्तु.... आप तो सब जानते है आज कल दहेज के बिना भी कुछ होता है तो बताइये क्या देना चाहेगे आप अपनी बेटी को."
रमाशंकर जी चुपचाप सारी बाते शर्मा जी की सुनी और एक गहरी सांस लेकर ,हांथ जोड्कर विनती की"शर्मा जी हम तो गरीब है आपके देने लायक कहां. हमारी पगडी की लाज रख लीजिये"
इतना सुनते है शर्मा जी की घर वाली तपाक से बोली."हमे तो एक मारुति कार चाहिये ही. बाकी तो आप अपनी बेटी को फ़्रिज कूलर वाशिंग मशीन और सारा सामान देंगे ही भाई साहब."
"इसके मामा जी तो एक और मंगली लडकी के विवाह का रिश्ता लेकर आये थे वो तो हमारा घर तक बनवाने और एक बडी गाडी भी देने की बात कर रहे थे. आप इतना भी कर देगे तो हम यहीं शादी कर लेगे."
रमाशंकर जी की आंखों से आंशू आगये. वो चुप चाप उठ कर स्वाती की मां से कुछ चर्चा करने के लिये अंदर गये. इधर स्वाती शांत भाव से सब सुन रही थी.अपने तेज तर्रार भाव को वो सिर्फ़ इस लिये दबाये हुये थी ताकि माता पिता के सम्मान को ठेस ना पहुचे. जैसे ही रमाशंकर जी वापिस लौटे तो शर्मा जी की नगद ५ लाख रुपये के दहेज की मांग सुनकर उसके होश उड गये. अब सारे निर्णय रमाशंकर जी को ही करना था, वो कुछ बोलते कि तभी स्वाती बैठके मे आजाती है. अब उससे यह पंचायत बर्दास्त नहीं होती है. वो अपने ह्र्दय मे पत्थर रख कर उत्तर देने को आगे बढ्ती है.
"अंकल आप तो मेरे पिता जी के समान है इसी लिये मै आपका आदर और सम्मान भी करती हूं मै आपके बारे मे बहुत अच्छा सोचती थी. पर मुझे नहीं पता था की आप इतने लालची और खुदगर्ज इंशान होंगे. आपको पांच लाख चाहिये ना , क्या कभी इतने रुपये एक साथ देखे भी है. आपका बेटा इतने सालो मे एक स्कूटर नहीं खरीद सका तो वो कार कैसे मैनेज करेगा. कहां से लायेगा पेट्रोल भराने का खर्च . अंकल आप देगे य आंटी आप देंगी बोलिये अब आप इतने शांत क्यों होगये. क्या आपके घर मे बहन बेटियों को डोळियों मे नहीं बिदा किया गया.आप कैसे एक लड्की के पिता को असहाय और कमजोर बना सकते है. हां मै मंगली हूं पर आप के यहां मुझे गिरवी रखने के लिये मेरे माता पिता ने इस लायक नहीं बनाया है."
इतना खतरनाक लेक्चर सुनने के बाद शर्मा जी पत्नी से नहीं रहा गया. वो तपाक से बोली. "अब चलो जी . अब क्या सुनने के लिये बचा है यहां. इस तरह की तेज तर्रार लडकी से नहीं करनी अपने बेटे की शादी.ये तो हमारा जीना दुशवार कर देगी.मै इसके मामा जी से कह दूंगी तो वही रिस्ता इसके लिये सही रहेगा."
और शर्मा जी , उनकी पत्नी और बेटा उठ कर चल दिये. इधर रमाशंकर जि को स्वाती की यह बेहूदगी पसंद नही आयी. उन्होने उसके गाल मे एक जोर का तमाचा जडा. उनकी इज्जत पूरी तरह से नीलाम हो चुकी थी अब शर्मा जी इस किस्से को पूरी सोशायटी मे गायेगे. इस सदमे को बर्दास्त ना कर पाने कि वहज से उन्हे बहुत जोर का दर्द सीने मे उठा. और इसके बाद उन्होने बिस्तर पकड लिया. नियति को कुछ और ही मंजूर था, शादी का टूट जाना रमाशंकर जी के लिये काल का योग बन गया. और एक दिन सुबह सुबह उनके प्राण पखेरू उड गये. यह सब इतना जल्दी घटित हुआ कि किसी को कानों कान खबर नहीं हुयी, सारी जमा पूंजी कितने दिन चलती. आखिरकार गरीबी भी जल्द ही स्वाती के घर की बिन बुलायी मेहमान बन गयी.
धीरे धीरे स्वाती को घर चलाने के लिये नौकरी की जरूरत महसूस हुयी. बहुत मसक्कत करने के बाद एक इंटरनेशनल कंपनी मे नौकरी भी लग गयी. अब तो उसकी मां भी बहुत खुश थी. नौकरी को अभी कुछ ही महीने हुये थे कि अचानक एक दिन उसके उम्र दराज बोस ने एक दिन ओवर टाइम के बहाने रोक लिया. स्वाती की मजबूरी कि वह ना नहीं कह सकी.
स्वाती को उस रात वापिस लौटते हुये महसूस हुआ कि दुनिया सिर्फ़ व्यवहारिक नहीं बल्कि अपना दैहिक स्वार्थ भी बेबस ळडकियों से सिद्ध करना बखूबी जानती है. अपनी उमर के बराबर लडकी का पिता जो उसका बोस था उसे एक भी शर्म नहींआयी अस्लील हरकतें करने हुये. दूसरे ही दिन सुबह उसने अपना रिजाइन लेटर उसके मुंह मे फ़ेंक कर चली आयी. इस घटना ने उसे जिंदगी का नया सबक दिया. वो मां को बिन बताये एक नई जाब की तलाश करने लगी. और उसकी मेहनत और बगल की एक आंटी के सहयोग से उसे एक स्कूल मे टीचर की नौकरी मिल ही गयी. मजबूरी ने उसे एक इंजीनियर से टीचर बन दिया. अब वो अपने विद्यार्थियों को इंजीनियर बनाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिये मेहनत कर रही थी. उसका इस साल का जन्मदिन भी फ़ीका ही रहा.
स्कूल की सारी व्यव्स्थायें भी उसकी अनुकूल थी, और इस काम मे उसका मन भी लगने लगा था. और धीरे धीरे उसके मन को भाने लगा उसके हि साथ का एक नौजवान टीचर जिसका नाम था नीरज. कई मुश्किल भरे कामों मे और हर मुसीबतों से वो ही स्वाती को बाहर निकालने लगा. यही उसकी फ़ितरत भी थी, कभी कभी तो स्वाती को उसकी नसीहतें डांट की तरह महसूस हुआ करती थी. जो स्वाती के बर्दास्त के बाहर थी. पर कुछ भी हो नीरज स्वाती की आदत मे सुमार हो गया था. अब उसकी डांट मे भी स्वाती खुश हो लेती थी. और इस तरह स्वाती अपने अतीत को भुला कर वर्तमान को जीने लगी थी.नीरज भी स्वाती की खुशियों को अपनी खुशियों से जोड कर धीरे धीरे प्यार करने लगा था.
एक दिन जब प्रिंसिपल ने कहा."आज स्वाती तुम्हे पूरी कापी जांच करके ही स्कूल जाना है."
इतना सुन कर उसके होश उड गये. उसे अपने बोस के साथ बिताये मजबूरी के वो पल याद आ गये . पर नीरज ने उसकी कापी चेक भी कराया और अपने बेस्ट फ़्रैण्ड की पार्टी छोड कर वो स्वाती को घर भी छोडने गया. और तब से स्वाती का नीरज के लिये देखने का नजरिया भी बदल गया.
एक दिन नीरज जैसे ही स्टाफ़ रूम मे आया. और नजर दौडाई तो देखा की स्वाती खिडकी के पास खडी अपने दुपट्टे से आंशू पोंछ रही थी. नीरज जैसे ही पीछे से उसकी आंखे अपने हाथों से बंद किया तो उसे हाथों मे गीलापन मह्सूस हुआ. नीरज को देखते ही स्वाती उसकी बांहों मे जा समायी. नीरज ने उसे कुरसी मे बिठाया. और इस दुःख का कारण पूंछा. स्वाती ने उसे बताया कि उसकी वहज से ही उसके पिता जी का देहांत हो गया था. और इसकी प्रमुख वजह उसकी शादी टूटना था क्योंकी वह एक मंगली है.
नीरज ने उसे मजाक के अंदाज मे बोला-"क्या मैडम आप भी पागल पन वाली बातें करती रहती है.ये सब दकियानूशी विचारधाराओ को लेकर रोती रहती है. चलिये मै आपको एक आप्शन देता हूं, आप मुझसे शादी करलीजिये. मेरे घर मे कोई नहीं है चाचा जी ने मुझे पाला पोशा बडा किया. खुश रहेंगी. इसतरह से आपको आंशू तो बहाना नहीं पडेगा. नहीं तो यदि मै चला गया तो फ़िर किस से लिपट कर रोयेंगी."
स्वाती के लबों मे मंद मंद मुस्कान आगई. फ़िर क्या था . वो अपना पीरियड लेकर आयी. फ़िर दोनो स्वाती के घर की ओर चल पडे.स्वाती ने सिर्फ़ इतना ही नीरज से कहा."सर आप को कौन सी बात कब कहनी है ,कुछ समझ मे आता भी है या नहीं कहां से बात शुरू करते है और कहां पर खत्म कुछ नहीं पता होता है आपको."
अगले रविवार को स्वाती को बिन बताये नीरज अपने चाचा और चाची जी के साथ उसके घर पहुंच गया. उसके चाचा और चाची ने स्वाती की मां से बात की. और आने वाला समय भी स्वाती और नीरज की शादी का गवाह बना. लिखा जो होता है वही व्यक्ति को मिलता है. आज तीन साल गुजर चुके है. नीरज और स्वाती एक प्राईवेट कालेज मे प्राध्यापक है और एक नन्ही सी बेटी है जिसका नाम है नीरजा. खुशी सिर्फ़ इस बात की है की वो मंगली नहीं है.
अनिल अयान
bhai chha gaye aaj mene time nikal kar kahani padhi really dil ko chhu gai.
जवाब देंहटाएंshukriya aniket j..... bahut bahut aabhar...
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