कहानी: कोहरे में
कैद जिंदगी
जिंदगी के २५ साल और हर पल एक बोझ की तरह
लग रही थी उसे,जैसे किसी ने उसकी जिंदगी का एक पडाव उससे बहुत ही बेरहमी से छीन कर
ले गया हो.और उसने उस पडाव तक पहुँचने में ना जाने कितने प्रयास किये परन्तु आज भी
वह असफल रहते हुये अपनी जिंदगी को जीने के लिये मजबूर है.डां नलिन पेशे से जूनियर डाक्टर
है अभी एक साल हुये दिल्ली के मेडिकल कालेज से अपनी डाक्टरी की पढाई पूरी करके भोपाल
में पहली पोस्टिंग हुई थी. डाँक्टरी जैसे उन्हें अपनी विरासत में मिली थी. शुरुआत से
माँ और नाना नानी के साथ पले बढे,और माँ का सपना था कि वो अपने बेटे को डाक्टर बनायें.नाना
नानी ने यही सपना जो माँ के लिये भी देखा था. नलिन की माँ डाँ.नीरा भोपाल की नामवर
हृदय रोग विशेषज्ञ थी. उनका खुद का नर्सिंग होम भी था. शुरू से ही नलिन जब भी अकेला
होता तो उसके मन में अपने पापा के बारे में जानने की जिज्ञासा जरूर रहती थी. पर माँ
का अजीब घर था. पापा के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. सब कुछ छोडो यहाँ तक
की कोई तस्वीर तक उपलब्ध नहीं थी.
बचपन
तो किसी तरह गुजर गया था.पर जब नलिन बडा होने लगा तो सीनियर क्लासेस में उससे उसके
सभी दोस्त उसके पापा के बारे में पूँछते थे.उसकी खामोशी उसके विरोध में सभी दोस्तों
को खडा कर देती थी. अजीब सी परिस्थितियाँ थी नलिन के लिए अपनी माँ से जब भी अपने पापा
के बारे में पूँछता तो डाँ नीरा इतनी गंभीर हो जाती की उनके मुँह से सिर्फ इतना निकलता"
किस बात की कमी है यहाँ,परेशान मत हो जब बडे हो जाओगे तो खुद बखुद मिलवा दूँगी. दुनिया
का क्या है हर तरह की बातें करती रहती है.क्या मैने तुम्हें अपने पिता की कमी महसूस
होने दी है. तो क्यों परेशान होते हो. पढाई में मन लगाओ.अजीब सी कसमकस में था नलिन
एक सवाल जो उसे कभी लावरिस कभी नाजायज औलाद तक के खयालात तक सोचने को मजबूर कर देता.
माँ के कमरे में माँ से मुलाकात करना बहुत कठिन होता था. अपना कमरा उसे खाने के लिये
दौडता था.सवालात उसे चैन से जीने नहीं देते थे. उसके पास सिर्फ यादें ही रह गई थी.
मेडिकल
की तैयारी में एक साल और फिर मेडिकल कालेज में एम.बी.बी.एस. करने में लगभग चार साल
का समय यूँ ही निकल गया.इस व्यस्तता के दौर ने उसे अपनी माँ,और ननिहाल से बहुत दूर
कर दिया था.अपने शहर में वापस लौटने के बाद उसके सवालात फिर उसका पीछा करना शुरू कर
दिये.ड्यूटी रूम में बैठे इन सब खयालों में खोया ही हुआ था कि तभी कम्पाउंडर उसके पास
भागते भागते आया और बोला" डाँ साहब,आई.सी.यू. में दिल्ली के कोई बुजुर्ग मरीज
है उनका अंतिम समय चल रहा है. वो आपसे मिलना चाहते हैं. जल्दी चलिये." डा नलिन
परेशान सा सोचता रहा कि कोई व्यक्ति उससे क्यों मिलना चाहेगा.आज तक उसकी माँ और नाना
नानी के अलावा कोई उससे मिलने नहीं आया.वो जल्दी जल्दी आई.सी.यू में गया तो देखा कि
एक बुजुर्ग मरणासन्न अवस्था में लेटे हुये है लगभग ६५ साल उम्र होगी,बगल में उनकी पत्नी
और एक बेटी है जिनके पलकों से आँसू रुकने का नाम भी नहीं ले रहे थे. उस बुजुर्ग ने
नलिन की तरफ बहुत ध्यान से देखा, चेहरा अधीर हो उठा " बिट्टू पहचाना मुझे मै तेरा
पापा,कैसे ध्यान होगा तुझे तू उस समय तीन साल का था." नलिन उनके पास गया और उनको
गले लगा कर उनके द्वारा अपने बिछडे बेटे को बाहों में भरने की कोशिश को कामयाब कर उनकी
बात सुनने लगा.
"कितना बडा हो गया है.डाक्टर भी बनगया."आखों
से आँसू और हलक से लफ्ज दोनो एक साथ बाहर निकल रहें थे.
अपने
मन की बात जब खत्म हुई तो बुजुर्ग का संतृप्त शरीर मौन हो गया.कमरे में उपस्थित हर
व्यक्ति की आँखों में आँसू थे. नलिन ने उनके शरीर को बिस्तर पर लिटाया और नाडी देखी
तो वो मर चुके थे. बुजुर्ग की पत्नी और बेटी तो उनके शरीर से लिपट कर रोये जा रहीं
थी. नलिन ने उनके पास जाकर ढाँढस बधाया.कुछ समय बीतने के बाद उनके बारे में जानना चाहा.उनकी
बेटी ने बताया कि ये दिल्ली के मशहूर चित्रकार आनंद शेखर है. हमेशा डाँ नीरा और आपका
जिक्र किया करते थे. और जब इनको हार्ट अटैक आया तो इनकी अंतिम इच्छा यही थी कि ये आपकी
बाँहों में दम तोडे.
इनका अंतिम संस्कार आप ही करें.नलिन के
लिये ये सब बहुत जल्दी हो गया था. इतना जल्दी हो गया की समझने में उसको बहुत समय लगने
वाला था. नलिन ने आनंद शेखर के परिवार को अपना नंबर दिया और उन्हें एयरपोर्ट में फ्लाइट
पकडाकर सीधे अपने घर की ओर रवाना हुआ.
घर
में पता चला कि नाना और नानी दो चार दिन के लिये अपने फार्म हाउस गये है.और माँ अपने
रिसर्च पेपर प्रजेंटेशन के लिये मुम्बई गई है पाँच दिन के बाद लौटेंगी. माँ के कमरे
में गया तो देखा तो उनकी स्टडी टेबल में एक बहुत पुरानी डायरी थी. जिसके कुछ पन्ने
ही बचे हुये थे. नलिन को माँ की डायरी के पन्ने पलटने में संकोच लगा.ऐसा लगा कि वो
बहुत बडा गुनाह करने जा रहा है. पर वह यह अच्छी तरह जानता था कि उसके हर सवाल का जवाब
इसी डायरी में था.वह अपने दिल में पत्थर रख कर उस डायरी के पचीस साल से भी पहले के
पन्ने पढना शुरू किया.
"
आज बहुत ही अच्छा लगा अपनी सहेलियों के साथ जब मै आर्ट गैलेरी में गई तो मुझसे मुलाकाल
एक स्मार्ट चित्रकार से हुई नाम था आनंद शेखर, पहली नजर में मुझे उससे प्यार हो गया
है.- नीरा
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१५ दिन बाद
लगातार
कई दिनों से आनंद से मिलना हो रहा है.उसकी तस्वीरों मे प्यार का असर दिखता है.आज तो
उसने मेरी भी एक पेंटिंग बनाई. हमारे बीच में नजदीकियाँ बढ रहीं है.
आज
कालेज के चार सेमेस्टर पूरे हो गये है. आनंद से मिले बिना अब मन ही नहीं मानता.लगता
है कि हम दोनों को एक साथ रहना शुरू कर देना चाहिये. आज शाम को मै आनंद के परिवार से
मिली. आनंद शादी के लिये राजी है. अब मुझे मम्मी पापा से बात करनी है.-नीरा
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महीने बाद
आज हम दोनो ने कोर्ट मैरिज कर ली है आनंद
के परिवार के सभी लोग और मेरी सभी सहेलियाँ साथ थी. मेरा मेडिकल भी पूरा होने को है
पर मेरे घर वालों को यह पता ही नहीं कि मैने उन्हें बिना बताये यहाँ शादी कर चुकी हूँ.
आनंद को यह पता है कि मेरे घर की भी इस बात पर सहमत थी.-नीरा
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१० महीने बाद
इस वक्त हम दोनो खुश है. पापा को यह लगता
है कि मै अभी डाक्टर हूँ .वो मुझे अपना नर्सिंग
होम देखने के लिये भोपाल बुला रहें है. अब हमारे परिवार में बिट्टू आगया है. इसका नाम
हमने नलिन रखा है. माँ को मैने अपनी शादी की बात बताई है पर पिता जी ने मुझे जान से
मारने की धमकी दी और पूरे परिवार को खत्म करने का निर्णय लिया है. या तो मै अपने बेटे
के साथ भोपाल लौट आऊँ.बाकी सब वह देख लेंगें. -नीरा
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५ दिन बाद
आज आनंद को हर बात मैने बताई.वो सिर्फ इतना
कहता रहा कि वो उसके और बच्चे के बिना नहीं रह पायेगा.रोता रहा गिडगिडाता रहा. पर मैने
अपने दिल में पत्थर रखकर उससे कसम ले ली कि यदि वो मुझसे कभी भी सच्चा प्यार किया हो
और मै यदि उससे सच्चा प्यार की होऊगी तो कभी एक दूसरे से नहीं मिलेंगें ना ही जानने
की कोशिश करेंगें. यही हमारे जिंदा रहने के लिये जरूरी था.
और अपना सामान लेकर हमेशा हमेशा के लिये
दिल्ली से भोपाल आगई. एक नई जिंदगी शुरू करने के लिये. -नीरा
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३ महीने बाद
पिता जी ने मेरी दोबारा शादी की बात की मैने अपनी
जान देने की धमकी देकर इस विषय को उमर भर के लिये बंद कर दिया अब मै और मेरा बिटटू
ही मेरे जीने का सहारा था. आनंद की याद तो बहुत आती थी पर अपने बच्चे और उसकी जिंदगी
के लिये यह वन वास भी भोगना हीहै.- नीरा
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डायरी
के इतने पन्ने काफी थे अतीत के गर्भ में छिपे प्रश्नों को खोजने में.और वह काफी हद
तक सफल भी रहा.अपनी माँ की बेबसी और उनकी संजीदगी की इतनी बडी वजह जानकर.उसको समझ में
आगया कि इस बेबसी ने उसकी और उसके पापा की जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिये माँ की
जिंदगी कोहरे में कैद करके रख दी.वह पूरी तरह से एक बुत की तरह से हो चुका था. नहीं
समझ में आरहा था कि वो क्या करे तभी आनंद शेखर की बेटी का फोन आया वो उसको अंतिम संस्कार
के लिये याद दिलायी और अंतिम इच्छा पूरी करने की गुजारिश की. नलिन ने उसे आने का वादा
किया और फोन रख कर जाने की तैयारी करने लगा.
उसने
काका को एक पत्र दिया जो उसने अपनी माँ के नाम लिखा था.
"
माँ,
मेरे
पापा श्री आनंद शेखर नहीं रहे.मै उनके अंतिम संस्कार के लिये जा रहा हूँ.दो दिन के
बाद लौटूँगा.यह बात मै आपको फोन में इस लिये नहीं बता रहा हूँ क्योंकि आपके सेमीनार
में कहीं डिस्टर्ब ना हो.
आपका
बेटा
नलिन
इधर
अगले दिन डा नीरा जैसे भोपाल लौटी और काका ने जैसे ही उन्हें नलिन का खत दिया. वो उसे
पढते ही सोफे बैठ गई. बिना कुछ कहे जैसे उनके मन में बहुत से सवाल गूँज रहे थे.यह सब
इस तरह इतनी जल्दी कैसे हो गया.जैसे पल भर में सब खत्म हो चुका था.
जिस बेटे को पिता के बारे में बताने में इतने साल
लग गये.उसने एक पत्र में अपने पिता का नाम मेरे सामने ऐसे लिख गया जैसे मुझसे ज्यादा
वो उन्हे जानता है. अजीब से हालात थे मन के. वो चुप चाप अपने कमरे में गई. और जैसे
ही उन्हें अपनी डायरी के खुले हुये पन्ने स्टडी टेबल में मिले वो पूरे हालात को समझ
चुकी थी. एक माँ के लिये पिता का नाम बेटे के सामने उजागर करना जितना कठिन था उतना
ही आसान था एक बेटे के लिये अनजाने ही ये बता देना कि वो अपने पापा का नाम ही नहीं
जान चुका है बल्कि मिल भी चुका है जो अंतिम मुलाकात थी.
नीरा
अब पूरी तरह से शून्य अवस्था में लेट गई. बिना खाना खाये. रात हुई. पूरा घर जैसे खामोशी
से घिर चुका था. खामोशी का अंधेरा रोशनी को रोके हुआ था.काका ने खाने के लिये नीरा
से पूँछा पर उसने कोई जवाब नहीं दिया.
सुबह
नलिन की दिल्ली से वापसी हुई उसने काका से अपनी माँ के बारे मे पूँछा. काका ने जब बेडरूम
की तरफ इशारा किया,नलिन तुरंत उस ओर बढा जहाँ माँ रात में सोई हुई थी. कमरे के हालात
देख कर नलिन चकित रह गया. बिस्तर में माँ दीवाल का सहारा लेकर आँख बंद करके मुस्कुरा
रही है.सीने से एक फोटो है.चारो तरफ पीले पड चुके खत है. माँ को देख कर नलिन जैसे ही
उनके पास गया और फोटो देखने के लिये जैसे ही उसने हाथ में लिया माँ का हाँथ फोटो से छूट कर बिस्तर पर गिर. फोटो में माँ
पापा और वो था.नलिन की खामोशी और पलकों से बहता खारा पानी जिंदगी के खारे पन को दूर
कर रहे थे. वो इस कोहरे में सब कुछ खो चुका था. पहले पापा को और अब मा को भी.इतने सालो से कोहरे में कैद होने के बाद
जिंदगी से इसके अलावा और कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी.
अनिल श्रीवास्तव "अयान",सतना
दीपशिखा स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर,सतना
संपादक "शब्द शिल्पी ,सतना"
शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन ,सतना
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०
email; ayaananil@gmail.com
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