बुधवार, 16 मई 2012

लावारिश

कहानी ०१-                                      लावारिश
                                                                                                                          - अनिल अयान,सतना म.प्र.

सड़क के किनारे एक बेजान शरीर बोरे की फट्टी लपेटे हुए पड़ा हुआ था. सभी लोग उसे देखते हुए अनजाना सा भाव लिए हुए. आगे बढ़ रहे थे एक व्यक्ति की नजर उस पे पड़ी
उसे उसने ध्यान से देखा और यह सोचने लगा की क्या हुआ होगा इसे, कही ये मर तो नहीं गया. सूरज सर के ऊपर आने के लिए हो चला और ये अब तक सोया हुआ है. उसने फट्टी को जैसे उठाया तो पाया की एक बुढ्डा मृत अवस्था में बेजान हो चूका है.उसने आज के तिकड़मी माहोल को देखते हुए चुपचाप उसे वैसे ही छोड़ कर चल दिया
                        दोपहर के बारह बजने को थे, वो लाश उसी तरह वहा पड़ी हुयी थी. अचानक वहा से एक कार गुजरी जिसमे दो नौजवान एक मीटिंग के लिए जा रहे थे.
आगे की सीट में बैठे नौजवान की नजर उस लाश में पड़ी.
उसने दुसरे से कहा."जरा गाड़ी तो रोको देखो कोई मरा पड़ा है. चलो चलकर देखा जाये.... दो मिनट गाड़ी तो रोको."
उसे सुनकर दुसरे ने तपाक से उसे झिड़क दिया
"तुम्हे मीटिंग में नहीं जाना है क्या ज्यादा ही परोपकारिता में पड़े रहते हो."
                    इसके बाद शाम का वक्त भी आगया. सूरज अलविदा कहने के लिए अंतिम कदम चल रहा थ, अब लाश के पास कई लोग आये. उसे देखा कई लोग तो उसके अंतिम संस्कार कइ बात कह ने लगे. कुछ लोगो ने उसकी तलाशी ली और उसका परश देख उसमे सिर्फ एक तस्वीर के अलावा कुछ नहीं मिला तो परश को उसी के जेब में रख कर उस लाश को लावारिश समझ कर चल दिए अपने घर की और.
            अँधियारा होने को था., तभी संयोग से वाही कार निकली जिसमे सुबह सुबह दो नवयुवक मीटिंग के लिए जा रहे थे. और उसी जगह पे वो कार ख़राब हुयी जहा पे वो लाश पड़ी हुयी थी.
             एक तो दोनों पैक पे पैक लगा रखे थे. क्योकि मीटिंग सफल रही थी. उनमे से एक कार बनाने में लग गया. और दूसरा घूम्ते घूम्ते उस लाश के करीब पहुच गया. उसने नशे ,में बोरे की फट्टी हटाई.

और देखा ओ उसका सारा नशा चकना चूर हो गया. ये लाश जो अब तक वो दोनों लावारिश समझ रहे थे. वो पंद्रह वर्ष पहले लापता हुए उनके पिता जी की थी.... ......
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