रविवार, 8 जून 2014

कहानी: एक बांसुरी की बेदर्द तान

कहानी: एक बांसुरी की बेदर्द तान
जैसे से ही स्निग्धा अपने केबिन में पहुँची ,उसे अपनी टॆबल में एक खत दिखाई दिया. या यह कहें की अंतर्देशीय पत्र. जो आज कल चलन में कम हो चुका था. पत्र भेजने वाले का नाम था शिव कुमार, प्यार से सब उसे छोटू बुलाते थे जगह थी वही उसकी सबसे पसंदीदा अल्मोडा जहाँ पर उसकी दिल और जान बसा करती थी. आज इतने साल हो गए पुलिस की नौकरी किये हुये.उसे ना अल्मोडा भूला था और ना वह पहाडी माहौल,सब जैसे यादों के झरोखें में कैद उसके दिल में समाया हुआ था.बस झरोखा खोलना होता और हर याद उसके सामने आने लगती.
      पुलिस में एस.आई की परीक्षा पास करने के बाद आज उसके पास जेल विभाग ही है. उसने पहले एन.सी.सी किया.और फिर पुलिस की नौकरी की तैयारी की.अपराधियों पर उसकी विशेष रुचि थी.वह उनके जीवन और अपराध के बारे में जानना चाहती थी. इस सब के चलते उसने कई किताबें भी लिखी अपने अनुभवों को जोडकर.आज वह भोपाल के पास केंद्रीय जेल में पदस्थ है जहाँ पर म.प्र और आसपास के राज्य के वो अपराधी रखे जाते है जिनको आजीवन कारावास की सजा मिली हुई है. कई अपराधी तो आतंकी घटनाओं में शामिल होने की वजह से जेल में कैद है क्योंकि उनका केस आज अदालत की फाइलों में कैद है.इस जेल की वो अभिवावक की तरह है कई प्रमोशन आये,कई आफर आये. पर उसे इस जेल से जैसे बहुत प्रेम हो गया था. आज तीस साल की उम्र में जब उसके परिवार में कोई नहीं तो सिर्फ यह एक माध्यम है अपने को व्यस्त रखने में.
      स्निग्धा ने खत को बिना खोले अपनी पाकेट में रख लिया और काम में व्यस्त हो गयी.शाम को जब ड्यूटी से फुरसत होकर घर पहुची तो.उसे ध्यान आया कि उसे तो अभी वो खत भी पढना है जो अल्मोडा से भेजा गया था. वह अपने बगले के बगीचे में बैठ कर चाय की चुस्की लेते हुये खत पढना शुरू किया.दिनांक देख कर पता चला कि खत १५ दिन पहले भेजा गया था. और भेजने वाला छोटू था.उसका बहुत पक्का दोस्त.खत को पढने का मन ही नहीं हो रहा था.परन्तु बिना खत पढे यह भी पता नहीं चलता कि छोटू ने इतने सालों के बाद स्निग्धा को याद क्यों किया था.वह अपने दिल को सम्हालते हुये पढना शुरू किया.
      बडी मैडम जी,
      नमस्ते
            कैसी है आप,इधर कई सालों से आपका अल्मोडा आना ही नहीं हुआ.पहले तो आप हर साल गर्मी की छुट्टियों में यहाँ आती थी. मैने इस साल बी.ए.पास कर लिया है. मै भी पुलिस में भर्ती होना चाहता हूँ.आप यदि नहीं होती मुझ जैसे पहाडी अनपढ को कौन इतना पढाता.और पढाई का महत्व बताता.आपने जो जो प्रस्ताव मेरे सामने रखा उसके लायक मै नहीं हूँ.लेकिन अब मै इस बारे में सोच सकता हूँ.समझ सकता हूँ.मुझे माफ करियेगा मैडम जी मै आपके किसी काम ना आ सका. आपने मुझसे जो कुछ माँगा वह कुछ ना दे सका मै आपको. पर मैडम जी बहुत बडा एहसान किया है आपने मुझपर मेरे बापू को वापिस मुझसे मिलवाकर.मेरा उनके सिवाय कोई नहीं है इस दुनिया में.बापू के कहने पर ही मैने आपको यह खत लिखने की जुर्रत की .वरना मेरी कहाँ हिम्मत थी कि आपको इंकार करने के बाद आपसे कुछ कह पाता. बापू आपको बहुत याद करता है और बहुत सा आशीर्वाद भी देता है.आप हमेंशा खुश रहें. मैडम जी एक बात कहूँ. याद तो मुझे भी बहुत आती है आपकी. कई बार याद करते करते आखें भी भर आती है. पर मेरा और आपका कोई मिलान नहीं है. मुझे हो सके तो माफी दे दीजियेगा.
                                                                                          आपका प्यारा छोटू.
      खत बहुत बडा नहीं था पर दिल के तारों को हिलाकर झंकार उत्पन्न करने वाला था.जैसे किसी ने हाथ पकड कर अतीत के दरवाजों को खोल कर पुराने दृश्य दिखा दिया हो. स्निग्धा ने चाय खत्म करके आयी और अपनी पुरानी डायरी के पन्नों को पलट रही थी.
      उसे याद है कि जब माँ की कैंसर से मौत हुई तो पापाजी ने उसे अल्मोडा ताऊ जी के यहाँ दो महीने के लिये भेज दिया था. ताकि वह इस सदमें से उबर सके उस साल वह कक्षा नौंवी में थी. एकलौती बेटी और अपनी माँ को खोने का गम. ताऊ जी अल्मोडा के जमीदार आदमी उनकी हवेली में यूँ बहुत से नौकर चाकर थे. पर ताई जी का सबसे पसंदीदा नौकर था छोटू. पाँचवी पास करने के बाद वह पढना बंद कर दिया था.उसकी रही होगी कोई मजबूरी. वह नहीं जानती थी. ताई जी ने छॊटू को उसकी देखभाल करने के लिये नियुक्त किया था. छॊटू उससे चाल पाँच साल छोटा रहा होगा. उसे ध्यान है कि एक बार खाना खाने की जिद में उसने छोटू के ऊपर खाने की थाली फेंक दी थी. और उसके माथे में गहरी चोंट लगी थी. और कुछ दिनों के बाद वो खुद छॊटू को अपने साथ लेने उसकी झोपडी में गई थी.
      हर साल उसका जाना होता था. गर्मी में वह छोटू को खूब पढाती थी. और उसके साथ वह पहाडो की सैर किया करती थी. सुबह पहर और शाम पहर उसका घूमना छॊटू के साथ ही हुआ करता था. जब वह बारहवीं में थी तो उसने छोटू को इंगलिश बोलना भी सिखा दिया था. उसने पहाडी की ढलान में बैठे हुये अपनी दोस्ती का इजहार भी किया था. पर छॊटू की छोटी बुद्धि में यह सब समझ में नहीं आया. जब वह कालेज खत्म कर पुलिस की तैयारी करने जाने वाली थी तो उसका पंद्रह दिन के लिये अल्मोडा जाना हुआ था.अब तो पिता जी नहीं रहे रोड एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी.अब तो ताऊ जी ही उसका सहारा था. हवेली जाते ही उसने अपना सामान रखा और ताई जी से छॊटू के बारे में पूँछा. पता चला कि इस समय वह चौराहे में बाँसुरी बजाता है सप्ताह में एक बार आता है.स्निग्धा उसे ना पाकर बेचैन सी हो गई.वह सीधे छॊटू की झोपडी गयी. दादी से पता चला कि वह कही अपनी बाँसुरी लेकर गया है. इस समय हर शाम वह चौराहे में बांसुरी बजाता है और जो पैसे मिलते है उससे वह अपनी पढाई करता है और घर का खर्चा चलाता है. वह चौराहे तरफ गई तो देखी एक चबूतरे में वह ध्यान मग्न होकर बांसुरी बजाने में लीन था. कई लोग उसे अपनी हैसियत के अनुसार रुपये दिये और सैलानियों ने भी उसके फोटो और वीडियो बना कर उसे खूब सारा पैसा देगये. उसने जैसे ही देखा कि स्निग्धा उसको दूर खडे सुन रही है वह अपनी बांसुरी लेकर उसकी तरफ दौड गया.
      क्यों रे छॊटू इस समय कहाँ रहता है पता ही नही चलता. तू बांसुरी कब से बजाने लगा है. मुझे तो बताया ही नहीं.-स्निग्धा ने बहुत खुश होकर पूछा.
कहाँ मैडम जी इस समय धंधा मंदा है.चलिये आज मै आपको इसकी पार्टी देता हूँ.आप ही इस समय बहुत दिनों के बाद य यहा आती है. यहाँ से पास के गांव में मेला लगा है चलिये आपको घुमा कर लाता हूँ.-छोटू ने मुस्कुराते हुये उसके सामने प्रस्ताव रहा.
क्यों नहीं अब तो अपने प्यारे छोटू की मेहनत से कमाये पैसे से चाय पियूँगी.ठंड भी बढ रही है.-स्निग्धा ने छॊटू के गाल खींचते हुए बोली
अच्छा यह तो बता यह बांसुरी की क्या कहानी है पहले तू तो यह नहीं बजाता था और पढाई का क्या हुआ. तेरी पढाई बंद हो गई क्या.
चलिये मैडम जी बताता हूँ. मैने इस साल इंटर परीक्षा पास की है. आपकी मेहनत यूँ ही बर्बाद नहीं होने दूंगा.पुलिस में भर्ती होकर अपने बापू को जरूर खोजूगा.यह बांसुरी उन्हीं की है.मै तो इसी के सहारे अपना घर चलाता हूँ.
एक मिनट क्या हुआ तुम्हारे बापू को. स्निग्धा से पूँछा.
मैडम जी बहुत साल पहले उन्हें पुलिस पकडकर लेगई.क्योंकि पुलिसवालों को यह लग रहा था कि वो उग्रवादियों मदद कर रहे थे. हमेशा से ही वो बांसुरी बजाकर अपना घर चला रहे थे. एक शाम को वो इसी चौराहे में बांसुरी बजारहे थे. कई सैलानी आये और बापू के पास बैठ कर बांसुरी की धुन सुनने लगे. तभी पुलिस का छापा पडगया .उनके पास से हथगोले बरामद हो गये. और इसी की शंका में बापू को मारे पीटे और जेल में बंद कर दिया गया. वो गिडगिडाते रहे पर कोई सुनवाई नहीं हुई. कुछ साल पहले मैने पता किया तो पता चला कि वह किसी शहर की जेल में आतंकी होने की सजा भुगत रहें है और उसकी आंखे नम हो गई.
      स्निग्धा ने उसकी दर्दनाक दास्तां सुनकर उसको गले लगा लिया. और उसके गालों को चूम कर उसके आंसू पोछे. उसने छोटू से वादा किया कि वो पुलिस में जाकर उसके बापू को ढूढने में उसकी जरूर मदद करेगी.उसके बाद वो मेला गये.वापस लौटते समय उसने छॊटू से एक जगह रुकने के लिये कहा.
      छॊटू रुक थोडा मुझे कुछ कहना है.
      क्या मैडम जी बताइये
      मै अब पुलिस की तैयारी के लिये बाहर जा रही हूँ. शायद मै पुलिस में सेलेक्ट भी हो जाऊँ. यार छॊटू मै अकेली हूँ इस समय. कोई नहीं है मेरे साथ. चल ना हम दोनो शादी कर लें. देख तू भी पढ लिख रहा है. इंगलिश भी बोल लेता है. चल मेरे साथ तू भी पढाई के साथ पुलिस की तैयारी करना,और बाद में दोनो शादी कर लेंगें. क्या कमीं है मुझमें. हाँ मै तुझसे तीन चार साल बडी हूँ पर क्या फर्क पडता है. चल ना.क्या तू मुझसे प्यार नहीं करता.मै तुझसे दिलो जान से प्यार करती हूँ.
      पर मैडम जी मेरी दादी उनका क्या. मै भी आपको बहुत चाहता हूँ.पर यह रिस्ता मेरे समझ में नहीं आता. यदि आपके ताऊ जी को पता चला तो वो हम दोनो और मेरी दादी को कब्र में जिंदा गाड देगें. मैडम जी मै आपके लायक नहीं हूँ. रुपये पैसे में भी नहीं और दुनिया दारी में भी नहीं.
      दोनो खामोश हो गये.
      छोटू मै कल जा रही हूँ. इसके बाद शायद ही हमारी मुलाकात होगी.पर तू मुझे बहुत याद आयेगा. मै अब भी तुझसे कह रहीं हूँ चल मेरे साथ दोनो साथमें किसी और शहर मे रहेंगें. किसी को कुछ नहीं पता चलेगा.
      मैडम जी मुझे माफ कर दो. मै आपके परिवार से बेइमानी नहीं कर सकता.मै जानता हूँ आप भी सही हो. पर मै भी मजबूर हूँ.
स्निग्धा आंखों में आंसू लिये अपनी हवेली की ओर चल दी. चलने से पहले एक बार वो छॊटू को बांहो में भरकर खूब रोई थी. हवेली की तरफ जाते जाते उसने एक बार पीछे मुडकर देखा ,तब भी छॊटू अपनी भीगी पलकों से उसकी ओर हाथ हिला रहा था
 इधर पुलिस में उसका सेलेक्शन हो गया.और पहली पोस्टिंग जिस जेल में हुई. उसमें एक से एक खूँखार अपराधी थे. पर वह जब अपराधियों से मिलती थी. तो जेल में एक कोने मे बरगद के चबूतरें मे एक पहाडी वेशभूषा पहने एक बुजुर्ग बैठा मिलता था. उसे आज तक किसी ने लडते झगडते और चिल्लाते नहीं देखा. इस बार के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम के अंतिम कडी में हर साल की तरह उसकी बांसुरी की तान  सुनाई पडी. वह धुन जानी पहचानी थी. शायद जिस बांसुरी वाले छोटू को वह छोड आई थी अल्मोडा में उससे मिलती जुलती तान थी. उसको छॊटू से  किया अपना वादा याद आगया. अगले दिन वह उस पहाडी बाबा की फाइल से उसका केस जानने की कोशिश की. तब पता चला कि वो छोटू के बापू ही है. फिर क्या उसने सिफारिस,सजा माफी, और अच्छे व्यवहार के दम पे उसकी रिहाई के लिये आवेदन किया ,और उसे इस काम में सफलता भी मिल गई. २६ जनवरी को जब पहाडी बाबा रिहा हुये तो स्निग्धा उन्हें अपने घर ले आई और उन्हे कुछ रुपये ,नये कपडे दिलवाए,साथ में एक चिट्ठी छोटू के लिये दी और उन्हें अल्मोडा के लिये अलविदा किया. और यह भी कहा कि जब वो अल्मोडा पहुचें तो छोटू से कहें कि वो मुझे पत्र लिख कर सूचित करे.
      आज काफी समय गुजर चुका था.स्निग्धा ने अपनी यादों पर वक्त और व्यस्तता की धूल जमा कर ली थी. आज उसे यह लगता है कि सबको अपना सब कुछ मिल गया सिर्फ वो ही अकेली की अकेली रह गई एक उम्मीद के साथ. कि कभी छॊटू पुलिस में आयेगा और फिर से उसकी वीरान दुनिया आबाद हो जायेगी. पर इस खत ने थोडा ही सही पर कुछ धूल साफ तो की.वादे कुछ प्यार के लिये पूरे किये गये.और वादे कुछ मजबूरियों के लिये पूरे नहीं हो सके.जैसे बाँसुरी की तान  भी किसी ना किसी वादे को याद दिलाने में मन को कभी बहलाती है या कभी रुलाती है.यही उम्मीद उसे आज भी एक तान  को सुनने के लिये बेकरार करती है और वह धुन थी प्यार की धुन.

अनिल श्रीवास्तव "अयान",सतना
दीपशिखा स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर,सतना

संपादक "शब्द शिल्पी ,सतना"
शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन ,सतना
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०
email; ayaananil@gmail.com

      

कहानी: कोहरे में कैद जिंदगी

कहानी: कोहरे में कैद जिंदगी  
जिंदगी के २५ साल और हर पल एक बोझ की तरह लग रही थी उसे,जैसे किसी ने उसकी जिंदगी का एक पडाव उससे बहुत ही बेरहमी से छीन कर ले गया हो.और उसने उस पडाव तक पहुँचने में ना जाने कितने प्रयास किये परन्तु आज भी वह असफल रहते हुये अपनी जिंदगी को जीने के लिये मजबूर है.डां नलिन पेशे से जूनियर डाक्टर है अभी एक साल हुये दिल्ली के मेडिकल कालेज से अपनी डाक्टरी की पढाई पूरी करके भोपाल में पहली पोस्टिंग हुई थी. डाँक्टरी जैसे उन्हें अपनी विरासत में मिली थी. शुरुआत से माँ और नाना नानी के साथ पले बढे,और माँ का सपना था कि वो अपने बेटे को डाक्टर बनायें.नाना नानी ने यही सपना जो माँ के लिये भी देखा था. नलिन की माँ डाँ.नीरा भोपाल की नामवर हृदय रोग विशेषज्ञ थी. उनका खुद का नर्सिंग होम भी था. शुरू से ही नलिन जब भी अकेला होता तो उसके मन में अपने पापा के बारे में जानने की जिज्ञासा जरूर रहती थी. पर माँ का अजीब घर था. पापा के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. सब कुछ छोडो यहाँ तक की कोई तस्वीर तक उपलब्ध नहीं थी.
      बचपन तो किसी तरह गुजर गया था.पर जब नलिन बडा होने लगा तो सीनियर क्लासेस में उससे उसके सभी दोस्त उसके पापा के बारे में पूँछते थे.उसकी खामोशी उसके विरोध में सभी दोस्तों को खडा कर देती थी. अजीब सी परिस्थितियाँ थी नलिन के लिए अपनी माँ से जब भी अपने पापा के बारे में पूँछता तो डाँ नीरा इतनी गंभीर हो जाती की उनके मुँह से सिर्फ इतना निकलता" किस बात की कमी है यहाँ,परेशान मत हो जब बडे हो जाओगे तो खुद बखुद मिलवा दूँगी. दुनिया का क्या है हर तरह की बातें करती रहती है.क्या मैने तुम्हें अपने पिता की कमी महसूस होने दी है. तो क्यों परेशान होते हो. पढाई में मन लगाओ.अजीब सी कसमकस में था नलिन एक सवाल जो उसे कभी लावरिस कभी नाजायज औलाद तक के खयालात तक सोचने को मजबूर कर देता. माँ के कमरे में माँ से मुलाकात करना बहुत कठिन होता था. अपना कमरा उसे खाने के लिये दौडता था.सवालात उसे चैन से जीने नहीं देते थे. उसके पास सिर्फ यादें ही रह गई थी.
      मेडिकल की तैयारी में एक साल और फिर मेडिकल कालेज में एम.बी.बी.एस. करने में लगभग चार साल का समय यूँ ही निकल गया.इस व्यस्तता के दौर ने उसे अपनी माँ,और ननिहाल से बहुत दूर कर दिया था.अपने शहर में वापस लौटने के बाद उसके सवालात फिर उसका पीछा करना शुरू कर दिये.ड्यूटी रूम में बैठे इन सब खयालों में खोया ही हुआ था कि तभी कम्पाउंडर उसके पास भागते भागते आया और बोला" डाँ साहब,आई.सी.यू. में दिल्ली के कोई बुजुर्ग मरीज है उनका अंतिम समय चल रहा है. वो आपसे मिलना चाहते हैं. जल्दी चलिये." डा नलिन परेशान सा सोचता रहा कि कोई व्यक्ति उससे क्यों मिलना चाहेगा.आज तक उसकी माँ और नाना नानी के अलावा कोई उससे मिलने नहीं आया.वो जल्दी जल्दी आई.सी.यू में गया तो देखा कि एक बुजुर्ग मरणासन्न अवस्था में लेटे हुये है लगभग ६५ साल उम्र होगी,बगल में उनकी पत्नी और एक बेटी है जिनके पलकों से आँसू रुकने का नाम भी नहीं ले रहे थे. उस बुजुर्ग ने नलिन की तरफ बहुत ध्यान से देखा, चेहरा अधीर हो उठा " बिट्टू पहचाना मुझे मै तेरा पापा,कैसे ध्यान होगा तुझे तू उस समय तीन साल का था." नलिन उनके पास गया और उनको गले लगा कर उनके द्वारा अपने बिछडे बेटे को बाहों में भरने की कोशिश को कामयाब कर उनकी बात सुनने लगा.
"कितना बडा हो गया है.डाक्टर भी बनगया."आखों से आँसू और हलक से लफ्ज दोनो एक साथ बाहर निकल रहें थे.
      अपने मन की बात जब खत्म हुई तो बुजुर्ग का संतृप्त शरीर मौन हो गया.कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति की आँखों में आँसू थे. नलिन ने उनके शरीर को बिस्तर पर लिटाया और नाडी देखी तो वो मर चुके थे. बुजुर्ग की पत्नी और बेटी तो उनके शरीर से लिपट कर रोये जा रहीं थी. नलिन ने उनके पास जाकर ढाँढस बधाया.कुछ समय बीतने के बाद उनके बारे में जानना चाहा.उनकी बेटी ने बताया कि ये दिल्ली के मशहूर चित्रकार आनंद शेखर है. हमेशा डाँ नीरा और आपका जिक्र किया करते थे. और जब इनको हार्ट अटैक आया तो इनकी अंतिम इच्छा यही थी कि ये आपकी बाँहों में दम तोडे.
इनका अंतिम संस्कार आप ही करें.नलिन के लिये ये सब बहुत जल्दी हो गया था. इतना जल्दी हो गया की समझने में उसको बहुत समय लगने वाला था. नलिन ने आनंद शेखर के परिवार को अपना नंबर दिया और उन्हें एयरपोर्ट में फ्लाइट पकडाकर सीधे अपने घर की ओर रवाना हुआ.
      घर में पता चला कि नाना और नानी दो चार दिन के लिये अपने फार्म हाउस गये है.और माँ अपने रिसर्च पेपर प्रजेंटेशन के लिये मुम्बई गई है पाँच दिन के बाद लौटेंगी. माँ के कमरे में गया तो देखा तो उनकी स्टडी टेबल में एक बहुत पुरानी डायरी थी. जिसके कुछ पन्ने ही बचे हुये थे. नलिन को माँ की डायरी के पन्ने पलटने में संकोच लगा.ऐसा लगा कि वो बहुत बडा गुनाह करने जा रहा है. पर वह यह अच्छी तरह जानता था कि उसके हर सवाल का जवाब इसी डायरी में था.वह अपने दिल में पत्थर रख कर उस डायरी के पचीस साल से भी पहले के पन्ने पढना शुरू किया.
      " आज बहुत ही अच्छा लगा अपनी सहेलियों के साथ जब मै आर्ट गैलेरी में गई तो मुझसे मुलाकाल एक स्मार्ट चित्रकार से हुई नाम था आनंद शेखर, पहली नजर में मुझे उससे प्यार हो गया है.- नीरा
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१५ दिन बाद
      लगातार कई दिनों से आनंद से मिलना हो रहा है.उसकी तस्वीरों मे प्यार का असर दिखता है.आज तो उसने मेरी भी एक पेंटिंग बनाई. हमारे बीच में नजदीकियाँ बढ रहीं है.
      आज कालेज के चार सेमेस्टर पूरे हो गये है. आनंद से मिले बिना अब मन ही नहीं मानता.लगता है कि हम दोनों को एक साथ रहना शुरू कर देना चाहिये. आज शाम को मै आनंद के परिवार से मिली. आनंद शादी के लिये राजी है. अब मुझे मम्मी पापा से बात करनी है.-नीरा
------------------------------------------------------------------------------------------------------१ महीने बाद
आज हम दोनो ने कोर्ट मैरिज कर ली है आनंद के परिवार के सभी लोग और मेरी सभी सहेलियाँ साथ थी. मेरा मेडिकल भी पूरा होने को है पर मेरे घर वालों को यह पता ही नहीं कि मैने उन्हें बिना बताये यहाँ शादी कर चुकी हूँ. आनंद को यह पता है कि मेरे घर की भी इस बात पर सहमत थी.-नीरा
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१० महीने बाद
इस वक्त हम दोनो खुश है. पापा को यह लगता है कि  मै अभी डाक्टर हूँ .वो मुझे अपना नर्सिंग होम देखने के लिये भोपाल बुला रहें है. अब हमारे परिवार में बिट्टू आगया है. इसका नाम हमने नलिन रखा है. माँ को मैने अपनी शादी की बात बताई है पर पिता जी ने मुझे जान से मारने की धमकी दी और पूरे परिवार को खत्म करने का निर्णय लिया है. या तो मै अपने बेटे के साथ भोपाल लौट आऊँ.बाकी सब वह देख लेंगें. -नीरा
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५ दिन बाद
आज आनंद को हर बात मैने बताई.वो सिर्फ इतना कहता रहा कि वो उसके और बच्चे के बिना नहीं रह पायेगा.रोता रहा गिडगिडाता रहा. पर मैने अपने दिल में पत्थर रखकर उससे कसम ले ली कि यदि वो मुझसे कभी भी सच्चा प्यार किया हो और मै यदि उससे सच्चा प्यार की होऊगी तो कभी एक दूसरे से नहीं मिलेंगें ना ही जानने की कोशिश करेंगें. यही हमारे जिंदा रहने के लिये जरूरी था.
और अपना सामान लेकर हमेशा हमेशा के लिये दिल्ली से भोपाल आगई. एक नई जिंदगी शुरू करने के लिये. -नीरा
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३ महीने बाद
 पिता जी ने मेरी दोबारा शादी की बात की मैने अपनी जान देने की धमकी देकर इस विषय को उमर भर के लिये बंद कर दिया अब मै और मेरा बिटटू ही मेरे जीने का सहारा था. आनंद की याद तो बहुत आती थी पर अपने बच्चे और उसकी जिंदगी के लिये यह वन वास भी भोगना हीहै.- नीरा
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      डायरी के इतने पन्ने काफी थे अतीत के गर्भ में छिपे प्रश्नों को खोजने में.और वह काफी हद तक सफल भी रहा.अपनी माँ की बेबसी और उनकी संजीदगी की इतनी बडी वजह जानकर.उसको समझ में आगया कि इस बेबसी ने उसकी और उसके पापा की जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिये माँ की जिंदगी कोहरे में कैद करके रख दी.वह पूरी तरह से एक बुत की तरह से हो चुका था. नहीं समझ में आरहा था कि वो क्या करे तभी आनंद शेखर की बेटी का फोन आया वो उसको अंतिम संस्कार के लिये याद दिलायी और अंतिम इच्छा पूरी करने की गुजारिश की. नलिन ने उसे आने का वादा किया और फोन रख कर जाने की तैयारी करने लगा.
      उसने काका को एक पत्र दिया जो उसने अपनी माँ के नाम लिखा था.

"
माँ,
      मेरे पापा श्री आनंद शेखर नहीं रहे.मै उनके अंतिम संस्कार के लिये जा रहा हूँ.दो दिन के बाद लौटूँगा.यह बात मै आपको फोन में इस लिये नहीं बता रहा हूँ क्योंकि आपके सेमीनार में कहीं डिस्टर्ब ना हो.
                                                            आपका बेटा
                                                            नलिन
      इधर अगले दिन डा नीरा जैसे भोपाल लौटी और काका ने जैसे ही उन्हें नलिन का खत दिया. वो उसे पढते ही सोफे बैठ गई. बिना कुछ कहे जैसे उनके मन में बहुत से सवाल गूँज रहे थे.यह सब इस तरह इतनी जल्दी कैसे हो गया.जैसे पल भर में सब खत्म हो चुका था.
       जिस बेटे को पिता के बारे में बताने में इतने साल लग गये.उसने एक पत्र में अपने पिता का नाम मेरे सामने ऐसे लिख गया जैसे मुझसे ज्यादा वो उन्हे जानता है. अजीब से हालात थे मन के. वो चुप चाप अपने कमरे में गई. और जैसे ही उन्हें अपनी डायरी के खुले हुये पन्ने स्टडी टेबल में मिले वो पूरे हालात को समझ चुकी थी. एक माँ के लिये पिता का नाम बेटे के सामने उजागर करना जितना कठिन था उतना ही आसान था एक बेटे के लिये अनजाने ही ये बता देना कि वो अपने पापा का नाम ही नहीं जान चुका है बल्कि मिल भी चुका है जो अंतिम मुलाकात थी.
      नीरा अब पूरी तरह से शून्य अवस्था में लेट गई. बिना खाना खाये. रात हुई. पूरा घर जैसे खामोशी से घिर चुका था. खामोशी का अंधेरा रोशनी को रोके हुआ था.काका ने खाने के लिये नीरा से पूँछा पर उसने कोई जवाब नहीं दिया.
      सुबह नलिन की दिल्ली से वापसी हुई उसने काका से अपनी माँ के बारे मे पूँछा. काका ने जब बेडरूम की तरफ इशारा किया,नलिन तुरंत उस ओर बढा जहाँ माँ रात में सोई हुई थी. कमरे के हालात देख कर नलिन चकित रह गया. बिस्तर में माँ दीवाल का सहारा लेकर आँख बंद करके मुस्कुरा रही है.सीने से एक फोटो है.चारो तरफ पीले पड चुके खत है. माँ को देख कर नलिन जैसे ही उनके पास गया और फोटो देखने के लिये जैसे ही उसने हाथ में लिया माँ का  हाँथ फोटो से छूट कर बिस्तर पर गिर. फोटो में माँ पापा और वो था.नलिन की खामोशी और पलकों से बहता खारा पानी जिंदगी के खारे पन को दूर कर रहे थे. वो इस कोहरे में सब कुछ खो चुका था. पहले पापा को और अब मा      को भी.इतने सालो से कोहरे में कैद होने के बाद जिंदगी से इसके अलावा और कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी.

अनिल श्रीवास्तव "अयान",सतना
दीपशिखा स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर,सतना

संपादक "शब्द शिल्पी ,सतना"
शब्द शिल्पी पत्रिका और प्रकाशन ,सतना
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०

email; ayaananil@gmail.com

सोमवार, 2 जून 2014

कहानी:- अनकही बेबसी


कहानी :- अनकही बेबसी 
आज उसे सिर्फ अपने ख़त्म होते भविष्य का इन्तजार था. आज उसने जिस काम को अंजाम दिया था उसके बारे में उसने कभी भी खयालो में भी नहीं सोचा था। आज वो बहुत ही कसमकस में था और उस दौरान उसने ऐसा कर ही दिया जिसके बारे में उसको और उसके किसी भी रिस्तेदार ने नहीं सोचा था 

 उसका भी खुशहाल परिवार था ,एक साल पहले उसने अपनी पसंद की शादी कर वो सब सपने सजाये थे जो हर युवा दिल में होते है. वह अपनी प्रेमिका से भी अधिक अपनी बीवी से प्यार करता था अपने व्यस्तम समय में भी अपनी बीवी का बहुत ज्यादा ध्यान रखता यह बात उसकी बीवी बहुत अच्छी तरह से जानती थी की वो उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता है। जब भी वो अपनी बीवी को मायके भेजता तो उसकी बीवी उसे वादा करके जाती थी की वह उसे अपनी कमी महसूस नहीं होने देगी. और उससे बात करती रहेगी एक ही शहर में रहने के बावजूद वो  अपनी बीवी से खूब बात करता था। एक बार उसने अपनी बीवी को एक महीने से ऊपर अपने से दूर उसके मायके भेजा उसी तरह उसकी बीवी ने उससे वादा किया की वो उससे बात करती रहेगी. समय गुजरने लगा वो सुबह और रात में बात करने लगा उसकी ससुराल में शादी का उत्सव होने की वजह से कई दिनों तक उसका फ़ोन उसकी बीवी ने नहीं उठाया वो अपने मन को समझाया। शादी हो चुकी वो फिर से उसे कई बार फ़ोन किया पर उसने कोई जवाब नहीं दिया. जब बात हुयी  तो उसकी बीवी ने यह कह कर किनारा कर लिया की वो बहुत व्यस्त है वो उससे इस तरह बात नहीं कर सकती उसके रिस्तेदार हसते है और मजाक उड़ाते है। जब उसे वक़्त होगा वो खुद उससे बात कर लेगी. ऐसा रवैया तीन चार दिन तक चलता रहा जब उसके फ़ोन का उसकी बीवी ने कोई जवाब नहीं दिया तब उसने अपने ससुर जी को और अन्य सदस्य को फोन लगाकर बात कराने की बात कही. अब की बार जब उसने बात की तो उसने अपनी बीवी से अपने दिल की बात बताया और यह भी कहा की उसके बिना उसका मन नहीं लगता और सिर्फ सुबह शाम वो यदि बात करेगी तो उसके दिल को सुकून मिल जाएगा. 

 उसने अपने प्यार के बदले सिर्फ अपनी बीवी से इतना ही माँगा था जब तक वह उसके पास नहीं थी इसकी जगह पर वो उसके घर में फोन नहीं करेगा इस बात का वादा किया. उसकी पत्नी दिल की बुरी नहीं थी पर अपने रिस्तेदारो के तानो से बचने के लिए बात नही कर रही थी पर वो इस बात से काफी नाराज और दुखी था की उसकी पत्नी' लोग क्या कहेंगे'इस बात को लेकर उसको इग्नोर कर रही थी वो काफी कसक से भर गया। उसने अपनी बीवी को बताया" देखो मै तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हु एक प्रेमिका से भी ज्यादा ,तुम्हारे बिना नहीं रह सकता हूँ अब मै तुमसे बात नहीं करूंगा तो किससे करूँगा. लोगो और रिस्तेदारो का क्या है वो मजाक करते है तो उनको जवाब भी दे सकती हो. पर उनके लिए मुझसे बात ना करना सही नहीं है. और यदि उनको यह बात नहीं पता तो उन्हें बताओ की मेरे तुम्हारे बीच में पति पत्नी से बढ़कर प्यार है जो तुम जानती हो या मै., तब शायद वो मजाक नहीं उड़ायेंगे। उसकी पत्नी ने वादा किया की वो उससे दिन भर में एक बार बात जरूर करेगी. उसको अपनी बीवी पर फिर यकीन हुआ. एक दिन गुजरा ही था की फिर वाही मजाक उड़ाने वाली बात उसको अपनी बीवी से पता चलीअब उसने आव देखा ताव अपने प्यार की बेइज्जती करने वाले रिस्तेदारो को समझाने की सोच कर अपनी ससुराल गया. रिस्तेदारो से सिर्फ एक सवाल किया की वो लोग पति पति को आपस में बात करने को क्यों गलत समझते है और मजाक बनाते है. वो सब उसे दुनियादारी और हिन्दू संस्कृति की दुहाई उसने अपने मन हर बात उन सब के रखी. और मजाक न बनाने की रिक्वेस्ट की उसने महसूस किया की अब उसकी बीवी और मायके वाले सब फिर से उसके प्यार का मजाक उड़ाकर हसने लगे. उसका सब्र अब टूट चूका था उसने पिस्टल निकाली  और एक   तरफ से सब को खत्म  कर दिया उसके सामने उसकी बीवी की लाश थी अब सब कुछ खो चूका था वह उसने पुलिस को फ़ोन किया।

नदी के किनारे पुलिस की गाड़ी और हथकड़ी उसका इंतजार कर रही थी. खत्म हो चुका था सब उसे अपनी प्रेमिका से बढ़कर प्यारी बीवी के जाने का गम भी था और अपने प्यार की बेइज्जती करने वालो से बदला लेने की मन में शांति भी थी। 

अनिल अयान,सतना 

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

अपने-अपने हिस्से की खुशी.

लघुकथायें

अपने-अपने हिस्से की खुशी.

आधे घंटे से कुछ अमीर घर की महिलायें कुछ दुसाले और स्वेटर के दाम कम
करवाने के लिये मोल भाव करने में लगी हुई थी. फेरी वाला इसी तरह दस हजार
रुपये से चार हजार तक पहुँचा था.महिलायें इस बात में खुश थी की काश्मीर
से आये फेरीवाले को वो अपने आलीसान महल नुमा घर में बेवकूफ बनाकर मोलभाव
करने में सफल हुई. और फेरीवाला वह काश्मीरी, इस मोलभाव से इस लिये खुश था
कि वह अपना दि हजार का माल चार हजार में बेंच कर दो गुना मुनाफा कमाने
में सफल हुआ.इस तरह मोलभाव खत्म हुआ और दोनो पक्ष अपने अपने हिस्से की
खुशी को लिये संतुष्ट हो गये थे.

अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना.
९४०६७८१०४०