मंगलवार, 21 मई 2013

कहानी:: थाली


कहानी:: थाली
कल की गेट टूगेदर पार्टी का असर आज अभी भी मेरे दिलो दिमाग में था.पहली बार अपने ससुराल वालों के साथ गेट टूगेदर हो रहा था. मेरी पार्टनर के साथ और भी मेरे सभी रिस्तेदार थे.पार्टी तो वैसे बहुत अच्छी रही पर एक बात आज भी मेरे कानों में गूँज रही है.जो मेरी पार्टनर ने मुझसे कहा कि हम एक ही थाली में खाना नहीं खायेंगे. किसी को दिखाने की जरूरत है कि हम एक ही थाली में खाना खाते है. मैने उसे पार्टी के दौरान भी बहुत समझाया ये कोई पाश्चात सभ्यता की निशानी नहीं है जिस तरह अलग थाली में खायेंगे उसी तरह एक थाली में खाया जा सकता है. पर मेरी पार्टनर का तो यही था की नहीं हम अलग अलग थाली में ही खायेंगें चाहे कुछ भी हो जाये.
  आज भी ध्यान है कि शादी के पहले जब हमारी पहली मुलाकात हुयी थी तो मैने अलग अलग थाली में ही अपना खाना सर्व किया था उस दिन उसने मुझे सिर्फ यही कहकर टोक दिया था कि एक ही थाली में भी हम दोनो खा सकते है. तब से आज तक हम कभी भी कहीं भी गये पर खाना एक साथ ही ,एक ही थाली में खाते थे. यहाँ तक की घर में कभी कभी जब सभी खाना खा लेते थे तो मै उसके साथ ,उसका साथ देने के लिये एक ही थाली में खाना खाते थे.मेरा बचपन से मानना था कि एक वक्त ऐसा जरूर आयेगा जब मै और मेरी पार्टनर एक साथ ,एक ही थाली मे हमेशा खाना खायेंगें. इससे हमारे बीच में खाने के साथ साथ बातें भी होती जाती थी. और खाना खाने के बहाने एक अच्छी बातचीत का मौका भी मिल जाता था. मैने अपने अनुसार इस माहौल को भी बदल लिया था. पर अफसोस तो तब हुआ जब मेरी पार्टनर ने कल यह कह दिया कि एक ही थाली में खाना खाना सिर्फ एक दिखावा है और कुछ नहीं.और वह अपने घर वालों के सामने इस तरह का दिखावा नहीं करेगी.
कल भी मैने उसे बहुत सारी बातें बतायी. यह तो झूँठी संस्कॄति का नकाब है तुमने मेरे साथ इसे ओढ लिया और अपने घर वालों के सामने उनकी तरह होकर पेश आने लगी. आज भी उसका यही मानना है कि एक साथ थाली मे मेरा उसके साथ खाना खाना सिर्फ एक दिखावा है.इससे अपनापन, प्यार और नजदीकी बढने जैसी कोई चीज नहीं है. चलो कल उसने इस बात का एहसास करवा ही दिया कि वो मेरी नजदीकी, मेरे प्यार, और मेरे अपनेपन को जो कहीं ना कहीं एक थाली में खाना खाने से बढने लगा था और इस समय पर ही सही  अपनी प्रोफेसनल जिंदगी से हम दोनो एक दूसरे को खाने के बहाने ज्यादा वख्त देने लगे थे वह सिर्फ उसकी नजर में एक दिखावा है क्योंकी मेरी ससुराल में यह परंपरा नहीं है पति और पत्नी एक साथ एक ही थाली में खाना खाकर कुछ समय एक साथ व्यतीत करें.मै ही पागल था जो उसे नजदीक लाने का यह बहाना उसे देने की असफल कोशिश करता रहा.

सोमवार, 4 मार्च 2013

:स्वीटू



कहानी:स्वीटू
शादी को कुछ महीने ही गुजरे थे एक दिन अचानक स्वीटू ने आकाश से चाय की टेबल पर कहा"दिन भर मै यहां इस घर मे ऊब जाती हूं प्लीज मेरी जोब की बात कहीं करो ना. मै भी स्कूल मे पढाना चाहती हूं"
"घर मे ट्यूशन कर लो. वक्त भी गुजर जायेगा और तुम्हे बोरियत भी महसूस नहीं होगी." आकाश ने जवाब दिया. और चुप चाप अपनी बाइक से स्कूल की ओर तेज गति से चला गया. स्वीटू उसकी तरफ़  एक उम्मीद से देखती रही और उसके व्यवहार को समझने की कोशिश करती रही.
 आकाश अपने घर से १५ किलोमीटर दूर एक क्रिश्चियन स्कूल मे बायो लेक्चरर है आज शायद उसके स्कूल मे यूनिट टेस्ट थे. टेस्ट के बाद वो स्टाफ़ रूम मे आकर देखा तो सब अपनी ड्यूटी से वापिस नहीं लौटे है वो चुपचाप अपनी सीट मे बैठ गया और सुबह सुबह अपनी लाइफ़ पार्टनर स्वीटू की सुबह की बात पर सोचने लगा. उसे आज वह शाम याद आगयी  जब वो शादी के एक महीने पहले स्वीटू से रूटीन फ़ोन से बात कर रहा था और स्वीटू ने अपनी बात उसके सामने रखी थी.
"मैने सोच लिया है शादी के पहले स्कूल पढाने नहीं जाउँगी, एक तो इतना दूर. और दूसरी सबसे बडी बात कि मुझे और अपने मम्मी पापा के साथ रहना शादी के पहले कुछ दिन और रहना है."- स्वीटू ने फ़िर से एक बार अपने विचार आकाश के सामने रख दिये.
 आकाश और स्वीटू लगभग सात सालों से एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते है दोनो की सहमति से और दोनो परिवारों की सहमति से शादी भी बहुत जल्द करने वाले है. दोनो एक दूसरे से प्यार कितना करते है इस बात का अभास आकाश को बखूबी है पर स्वीटू इस बात को जान बूझ कर अनदेखा कर मन ही मन मुस्काती है. दोनो पेशे से शिक्षक है अभी तक अलग स्कूल मे अपनी सेवाएँ देरहे थे. आकाश ने कोशिश करके अपने स्कूल मे फ़ादर से कहकर आर्ट और म्युजिक के लिये स्वीटू की नौकरी भी लगवा दी थी.
     दोनो का परिवार मध्यम वर्ग से ताल्लुकात रखता है. आकाश का फ़क्कडपन और शेरो शायरी मे रुचि ने उसे विज्ञान के क्षेत्र से साहित्य की जमीन मे खडा कर दिया. इस दरमियाँ एक मुशायरे मे उसकी मुलाकात स्वीटू के पिता जी से हो गयी. दोनो की उमर मे काफ़ी अंतर जरूर था .दोनो को एक ही डोर जोडती थी. और वो थी शेरो शायरी. एक लम्बा वक्त गुजर गया साथ साथ मे इस्लाह करते हुये
जब कुछ आकाश के द्वारा लिखा जाता तो  स्वीटू के पिता जी को जरूर दिखाया जाता, इस तरह एक तरह से स्वीटू के यहां आना जाना भी शुरू हुआ. एक दिन की बात है आकाश भी शादी के बारे मे सोच रहा था  उसे महसूस होने लगा था कि स्वीटू उसके जीवन के लिये सही चयन है. साहित्यिक रिस्ते पारिवारिक रिस्तों मे बदले जा सकते है. उसने तुरंत ही स्वीटू के पिता जी को फ़ोन लगाया और अपने मन की सारी बात कह दी. उन्हे इस बात की खुशी थी कि आकाश ने इतनी बेबाकी से सारी बात कही थी कि उसकी ईमानदारी पे संदेह तक नहीं किया जा सकता था, और उसने यहां तक कहा कि इस बात के बारे मे वो स्वीटू से भी पूँछ ले. अंतत: दोनो परिवारों के बीच रिस्ते की बात हुयी और आकाश और स्वीटू की शादी की डेट भी तय हो गयी. आकाश और स्वीटू  ने यह भी तय किया कि साथ मे नौकरी करेगे तो सही रहेगा. इसी वजह से आकाश ने बाहर की नौकरी को समय से पहले छोडकर अपने शहर के अपने पुराने स्कूल मे दोनो की नौकरी तय करवाई.दोनो की सगाई जो स्कूल शुरू होने के पहले होनी थी वो आकाश के बाबा जी के स्वर्ग सिधार जाने की वजह् उस वक्त नहीं हो पायी.
जिस दिन इस सगाई की डेट निरस्त की गई थी उसी दिन आकाश को लगने लगा था की अब शायद स्वीटू के परिवार के लोग उसे स्कूल नहीं जाने देगे वो भी शादी के पहले. और जब शादी भी तय हुयी तो वो भी नये सत्र के अंतिम सप्ताह मे .बहुत बडी दुविधा थी. सब अपनी जगह सही थे.स्कूल के फ़ादर से बात करने पर यह परिणाम निकला कि नये सत्र मे १०-१५ दिन आकर स्वीटू स्कूल के महौल को देख ले सभी के साथ फ़ेमीलियर हो जाये उसक बाद वो समर वेकेशन के बाद कान्टीन्यू कर लेगी.वरना फ़िर जून और जुलाई मे ज्वाइनिंग मुश्किल हो जायेगी.और पूरा सत्र बरबाद हो जायेगा,
 जब से नई शादी की डेट आई थी तभी से आकाश स्वीटू आपस  मे बात करते थे. जब भी स्कूल का मुद्दा आता तो स्वीटू हँसते हँसते आकाश के साथ नये सत्र मे स्कूल चलने की बात करती. इसी बहाने दोनो को कुछ सुकून मिल जाता था. धीरे धीरे वक्त गुजरने के साथ ही स्वीटू के घर का माहौल बदलने लगा. वो स्कूल भेजने के विरोध मे स्वीटू के ऊपर दबाव बनाने लगे. जब यह बात आकाश को पता चली. तो आकाश ने स्वीटू को फ़ादर से हुये डिस्कशन के बारे मे विस्तार से बताया. और यह भी सुझाव दिया कि १५ दिन की बात है उसके बाद तो सब सही हो जायेगा. इस मामले को लेकर आकाश ने अपने घर .. और स्वीटू के घर  के सभी सदस्यों को हर तथ्य और मजबूरियॊं को समझाया.
किसी तरह अपने घर की सहमति के बाद ,आकाश को आभास हुआ की स्वीटू की माँ की सबसे बडी समस्या है वो समाज को ज्यादा ही तवज्जो देती है और उनके रूखे व्यव्हार का प्रभाव स्वीटू के बात करने मे साफ़ दिखाई देने लगा था.स्वीटू की माँ का मानना था "इतना दूर शादी के कुछ दिन पहले कैसे जायेगी मेरी फ़ूल से बच्ची. समाज क्या सोचेगा. हमे भी तो इसी समाज मे रहना है" शादी के बाद जाती तो सब सही होता, ठीक है,आकाश है साथ मे पर कैसे भरोसा हो इस जालिम समाज मे"
  आकाश को जब यह बात पता चली तो वो एक दिन स्वीटू के घर उसके माँ और पापा से मिलने गया. वहाँ पर स्वीटू की माँ को अपने मन की बात बताई"देखिये मैम, मैने आप सब के यकीन के चलते स्कूल मे किसी तरह स्वीटू के जाब की बात की आप इस तरह दकिया नूसी विचारों के चलते क्यों उसका भविष्य बरबाद कर रहीं है. यदि मै आपसबके यकीन के चलते स्वीटू को अपनी मंगेतर के रूप मे मान चुका हूं और स्कूल  मे सभी से मिलवाया. और शादी भी उसी से करूंगा. तो १५दिन की ही बात हैसिर्फ़. मै हूं ना. अब वो मेरी भी जिम्मेवारी हैआप कम से कम मेरे यकीन के बारे मे भी सोचिये. और फ़िर समाज के बारे मे सोचिये. मेरी स्वीटू से कोई सगाई नहीं हुयी फ़िर भी अपने यकीन के चलते मै उसको अपनी मंगेतर बता सकता हूं ,और आप मुझ पर इतना यकीन नहीं कर सकती हैं"
. लेकिन वो महिला टस से मस नहीं हुई. आकाश चिरौरी करके हारगया पर. परिणाम शून्य आया,और आखिरकार घर के दबाव के चलते
एक शाम स्वीटू ने कह ही दिया कि  वो शादी के पहले स्कूल नही जा पायेगी. वजह कुछ भी रही हो पर आकाश भी जान गया कि माँ का असर स्वीटू की बातचीत से दिखने लगा. वो भी क्या करती आकाश को दिलाये गये सारे यकीन. आकाश के साथ किये गये सारे वादे एक तरफ़ थे और अपनी माँ की खुशी एक तरफ़ थी. वो आकाश के लिये अपनी माँ को दुःख नहीं देसकती थी. उसने अपने कैरियर को अपनी माँ की खुशी के लिये बलिदान कर दिया.
 स्वीटू ने आकाश के सारे प्रयासों और सारी कोशिशो को बिना समझे इस मामले मे उसका साथ नहीं दिया और सभी के सामने वो आकाश को बुरा बना ही चुकी थी, जिस स्वीटू के लिये आकाश ने बिना किसी रस्म के अपनी मंगेतर मान लिया था उसी ने उसका ऐन वक्त पे साथ छोड दिया, आकाश ने सारी बातॊं को एक ही पल मे भांफ़ लिया. उसने स्वीटू को अन्तिम बार शादी के पहले फ़ोन किया और कहा "स्वीटू,मैने बहुत सोचकर यह परिणाम निकाला है कि यदि तुम सत्र की शुरुआत मे स्कूल नहीं जाओगी तो शादी के बाद तुम नौकरी नहीं करोगी.बाद मे देखेगे’ और यही बात उसने स्वीटू के पिता जी से भी कह दिया,
 और तब से आज तक कई महीने बीत गए. आज  स्वीटू घर मे रहती है.इस पूरे घटना चक्र मे सब बिखर गया. वो आज भी नहीं समझ पायी की उसका स्कूल ना जाने का निर्णय कितना सही था.

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

कहानी: समझौता.


कहानी: समझौता. - अनिल अयान

"क्या मै अंदर आ सकता हूं" तेजस ने नीले रंग की ड्रेस पहने हुये दरवाजा खोलकर कहा.
"यस कम इन"मैनेजर ने तेजस की ओर बिना देखे उत्तर दिया.
तेजस ने मैनेजर का उत्तर सुनकर अंदर आ गया. नीली ड्रेस पहने और माथे पर बहुत थोडे से बाल बिल्कुल आज की उमर का नौजवान की तरह था तेजस. मैनेजर की टेबल के नजदीक पहुंचते ही मैनेजर ने बैठने के लिये  कह दिया.
चेंबर का माहौल शांत था. मशीनों की आवाज तक नहीं आरही थी. तेजस को पता था की मैनेजर ने उसे क्यों बुलाया है.
वह यह भी जानता था कि तेजस की ओर घुमायी. तेजस की ओर मुंह करते हुये बोला.
  "इस हडताल का नोटिश तुमने साइन किया है."
"हां !तो" मुझे कोई आपत्ति नहीं है कि हडताल  के नोटिस पर किसके शाइन किया है. इसकी भी ज्यादा परवाह नहीं है कि कितना और किसका नुकसान होगा.पर तुम्हारी चिंता है." मैनेजर ने तेजस की अपना इशारा करते हुये कहा.
तेजस ने कहा :"आप मेरी चिंता मत करिये. हमारी मांग मालिकों तक पहुंचाइये और बता दीजिये यदि मांगे नहीं मांगी गयी तो सारे मजदूर ८ तारीख को ह्डताल मे चले जायेंगे.
मैनेजर उसकी बातों को सुना और सामान्य लहजे से पूंछा
"तुम्हारी क्या उमर है तेजस"
"२४ साल" तेजस ने जवाब दिया.
"तुम जानते हो, यह कंपनी ४८ साल से भी ज्यादा पुरानी है, और आज तक यहां कोई हडताल सफ़ल नहीं हुई" मैनेजर ने पूर्ण विश्वास के साथ अपनी बात रखी.
"मैनेजर साहब! पहले क्या हुआ ,इससे मुझे कोई सरोकार नहीं है बल्कि मै तो मजदूरों का भविष्य देखता हूं"
- तेजस ने जवाब दिया.
" मै भी तुम्हे यही कहता हूं कि तुम लोग आंगे की देखो. अभी एक साल भी नहीं हुआ तुम्हारी नौकरी लगे. यदि कम्पनी चाहे तो रेडमार्क लगा कर तुम्हे निकाल दे तो तुम किसी लायक नहीं बचोगे." समझदारी से काम लो तेजस." मैनेजर ने उसे समझाया.
मैनेजर की बात सुनकर तेजस कुरसी से  खडा हुआ. और खिडकी को खोलकर देखने लगा. खिडकी खुलते ही मशीनों कीआवाज आने लगी . तब तेजस ने वहीं से मैनेजर को कहा: " साहब ! साउण्ड प्रूफ़ कमरों मे भले  ही  यह आवाज आपको डिस्टर्ब करे पर मेरे लिये यह आवाज जीवन का संगीत है. इसी आवाज से मजदूरों का घर चलता है और उन मजदूरों  के भविष्य से ज्यादा मेरा भविष्य महत्व्पूर्ण नहीं है."
तेजस यदि तुम हमारा साथ दो तो मिल की हिस्सेदारी भी तुम्हे भविष्य मे मिल सकती है. एक बार सोच लो" मैनेजर ने बात को बनाने की कोशिश की.तभी रामू काका भी तेजस के पास आगये. रामू काका आफ़िस के चपरासी थे.
"बेटा तुम्हारा भविष्य महत्व्पूर्ण है यदि तुम ही चले जाओगे तो हमारा रखवाला कौन होगा." रामू काका ने तेजस से कहा.
समय गुजरता जा रहा था. पूरी फ़ैक्टरी मे हलचल थी. सभी मजदूरों के दिमाग मे यही चल रहा था कि ८ तारीख को क्या होगा. तेजस को सुनने के लिये सभी लोग एकत्र हुये. तेजस ज्यों ही मंच मे पहुंचा तभी मैनेजर का चपरासी जयदीप दौडते हुये आया और बोला." तेजस भैया! आपको बडे साहब बुला रहे है."
तेजस ने बहुत ही आश्चर्य मे आकर कहा" तुम चलो मै आता हूं."
वह मंच से नीचे उतरा और सीधे मालिक के चेंबर की ओर गया.
जैसे ही स्वागत कक्ष की ओर गया तेजस गया तो कंपनी के मालिक की गाडी खडी हुयी थी. मालिक शांति लाल जी स्वागत कक्ष मे बैठे जैसे उसी का इंतजार कर रहे थे.
"आओ तेजस! बैठो आखिर तुमने यहां पर हमे बुला ही लिया" शान्तिलाल जी  ने इतना कहते हुये बैठने का इशारा किया. तेजस उनके सामने बैठ गया. उन्होने फ़ाइल खोली और बोले " अच्छा तेजस तुम तो बहुत पढे लिखे हो. सुपरवाइजर लायक तो नहीं लगते, बल्कि मैनेजर लायक लगते हो. मुझे लगता है कि इतना होनहार नवयुवक मजदूरों के चक्कर मे बेकार को ही पडा है."
उनकी बात सुनकर तेजस परेशान सा हो गया. उसने अपने आप मे काबू करते हुये कहा " सर मै वर्तमान मे विश्वास करता हूं. वर्तमान मे मै सुपरवाइजर हूं और मजदूरों के साथ अन्याय नहीं देख सकता हूं."
" मजदूरों का न्याय और अन्याय देखने के लिये हम है, तुम तो अपना कैरियर देखो. मजदूर और हडताल यह सब बात नौजवानों के लिये ठीक नहीं. तुम तो अपना कैरियर बनाओ" शांतिलाल जी ने कहा.
"सर धन्यवाद आप मेरी चिंता न करें आप तो ह्डताल और नुकशान की चिंता कीजिये. मै अपने फ़र्ज से पीछे नहीं हट सकता. आप तो ये बताइये कि मजदूरों के हक  मे फ़ैसला करते है या नही." तेजस ने स्वर ऊंचा करते हुये जवाब दिया.
 तेजस की तीव्रता को भांफ़ते हुये गुस्से मे शांतिलाल जी बोले "बेटा!नेतागिरी का भूत उतार फ़ेंको. वरना यह तुम्हे बरबाद कर देगा. कल शाम तक मजदूरों को समझाओ और खुद भी समझ जाओ नहीं तो मै तुम लोगो को देख लूंगा. अब तुम जा सकते हो."
शांतिलाल जी ने गुस्से मे आकर धमकी दी. और दोनो लोग मजदूरों की तरफ़ चल दिये.
आज वो दिन भी आगया सभी परन्तु अपना काम कर रहे थे. तेजस भी मजदूरों के बीच सुपरवाइजर का काम कर रहा था. दोपहर मे शांतिलाल जी की गाडी फ़िर आकर खडी हुयी. उनके साथ मैनेजर भी था.
"तेजस की फ़ाइल लाओ और मै जैसा बता रहा हूं उसे यहां से धक्के मार कर बाहर निकाल दो वह हमारे लिये मुसीबत बन रहा है." उन्होने मैनेजर से कहा.
तभी उनके कानों मे मशीनों की आवाज पडी. समय देखा तो रात होने वाली थी. उन्होने तुरंत मैनेजर को बुलाया और कहा जाकर देखो इतनी रात को यह आवाज कैसे आरही है"
मैनेजर की ओर गया और शांतिलाल जी अपने कक्ष मे चले गये उन्होने अखबार देखना शुरू किया ही था कि मैनेजर ने बोला " तेजस ने कहा है कि जाइये हम सब हडताल मे है जब तक हमारी मांगे नही मानी जायेगी तब तक हम मशीनों को बिना रुके चलाते रहेगे."
शांतिलाल जी ने कहा " यह कैसी हडताल है मैनेजर साहब."
"शायद नये जमाने की हडताल हो तेजस का दिमाग है इसलिये कह रहा हूं" मैनेजर ने जवाब दिया.
शांतिलाल जी खिडकी से मशीनों की आवाजों मे परिवर्तन महसूस किया और बोले "यदि हम बात नहीं मानेगे तो ये सभी मजदूर हमारी करोडो की मशीनों को कबाड बना देंगे मैनेजर साहब."
आप जाकर उनसे कहिये कि हमने उनकी शर्तों से समझौता कर लिया है वो अपने ड्यूटी समय मे ही काम करें.उन्हे नया वेतनमान और सुविधाये मिलेंगी".
और हां तेजस को अब मै सुपरवाइजर से असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट दी गयी है इस समझौते मे यह भी बता दीजिये उन लोगो को."
शांतिलाल जी कार मे बैठ कर वापस चले जाते है. मैनेजर का संदेश मिलते ही सारे मजदूर इस समझौते के अवसर पर तेजस और रामू काका के साथ जश्न मनाते है.
....................................................................................................................... - अनिल अयान

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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कहानी: मंगली....


अनिल अयान श्रीवास्तव                                                                        
संपादक : शब्द शिल्पी,सतना
कवि और कहानी कार
दीपशिख स्कूल से तीसरी गली
मारुति नगर सतना पिन ४८५००५
सम्पर्क:९४०६७८१०४०,९४०६७८१०७०
Email:ayaananil@gmail.com
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कहानी: मंगली....

"क्यों री तुझे कितनी बार कहा की पूजा के समय पर अपनी पढाई मत किय कर. दस मिनट के लिये बंद कर देगी तो कौन सा पहाड टूट पडेगा." स्वाती की मां ने पूजा घर से आवाज लगाई.
स्वाती कालेज मे अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रही है. चुपचाप मुंह बनाकर कम्प्यूटर मे बैठी और खेल खेलना शुरू कर दिया.मां ने पूजा करना शुरू ही किया था तभी स्वाती के पिता जी ने बाहर से आते हुये आवाज लगायी,
"स्वाती की मां सुनती हो, कहां हो ,,, इस रविवार को लड्के वाले आरहे है स्वाती को देखने. तैयारियां कर लेना और जब देखो तब पूजा करती रहती हो."
 स्वाती रमाशंकर जी की इकलौती बेटी बी,ई, कर रही है.अंतिम वर्ष है, होनी का लिखा कौन टाल सकता था, नक्षत्रों ने करवट बदला तो बेटी को मंगली होने का दंश झेलना पड रहा है.पूरा परिवार पढा लिखा है परन्तु इस समाज को कौन समझाये.वह तो मुंआ आज भी दकियानूसी विचारधाराओ और कलुषित मानसिकता के पीछे औंधे मुंह दौड रहा है बेटी की जिद थी तो रमाशंकर जी ने उसे बी.ई. करा दिया. अब वह जिद मे है कि अभी शादी नहीं करेगी , पी.एस.सी. के तैयारी करेगी. सरकारी नौकरी करेगी. इधर मां की जिद है की बेटी के हाथ पीले कर दो. पर मंगली नाम का धब्बा पांच रिस्तोंको घर के बाहर का रास्ता दिखा चुका है. ये रिस्ता बडी मुश्किल से आया है लडका सरकारी क्लर्क है और सबसे बडी बात मंगली भी.
 स्वाती के पेपर खत्म भी हो गये और कैम्पस भी आया, चयन भी हुआ. पर घर मे मां का रोन पिटना भी लग गया.वही पुराना राग ... बेटी जवान है कहीं इधर उधर ऊंच नींच हो गयी तो  लोगों को क्या मुंह दिखायेगे.रोज का यही मुद्दा होने की वजह से अंतत: स्वाती का बाहर जाकर नौकरी करना भी कैंसिल होगया.
 समय गुजरते देर नही लगी, रविवार का दिन भी आ गया,. लडके वाले शर्मा जी पहुंच गये आटो रिक्शा मे अपनी पत्नी बेटे और खुद तीन क्विंट्ल का वजन लेकर, और जाते ही धंस गये सोफ़े मे और कर भी क्या सकते थे. बात चीत का दौर शुरू हुआ, चाय नाश्ता कराया गया और फ़िर जब फ़ुरसत हुये तब....
 पान चबाते हुये शर्मा जी बोले
"अब रमाशंकर जी आपकी बेटी तो हमने देख ही ली. सुशील, पढी लिखी और सांस्कारिक भी है किन्तु.... आप तो सब जानते है आज कल दहेज के बिना भी कुछ होता है तो बताइये क्या देना चाहेगे आप अपनी बेटी को."
रमाशंकर जी चुपचाप सारी बाते शर्मा जी की सुनी और एक गहरी सांस लेकर ,हांथ जोड्कर विनती की"शर्मा जी हम तो गरीब है आपके देने लायक कहां. हमारी पगडी की लाज रख लीजिये"
इतना सुनते है शर्मा जी की घर वाली तपाक से बोली."हमे तो एक मारुति कार चाहिये ही. बाकी तो आप अपनी बेटी को फ़्रिज कूलर वाशिंग मशीन और सारा सामान देंगे ही भाई साहब."
"इसके मामा जी तो एक और मंगली लडकी के विवाह का रिश्ता लेकर आये थे वो तो हमारा घर तक बनवाने और एक बडी गाडी भी देने की बात कर रहे थे. आप इतना भी कर देगे तो हम यहीं शादी कर लेगे."
रमाशंकर जी की आंखों से आंशू आगये. वो चुप चाप उठ कर स्वाती की मां से कुछ चर्चा करने के लिये अंदर गये. इधर स्वाती शांत भाव से सब सुन रही थी.अपने तेज तर्रार भाव को वो सिर्फ़ इस लिये दबाये हुये थी ताकि माता पिता के सम्मान को ठेस ना पहुचे. जैसे ही रमाशंकर जी वापिस लौटे तो शर्मा जी की नगद ५ लाख रुपये के दहेज की मांग सुनकर उसके होश उड गये. अब सारे निर्णय रमाशंकर जी को ही करना था, वो कुछ बोलते कि तभी  स्वाती बैठके मे आजाती है. अब उससे यह पंचायत बर्दास्त नहीं होती है. वो अपने ह्र्दय मे पत्थर रख कर उत्तर देने को आगे बढ्ती है.
"अंकल आप तो मेरे पिता जी के समान है इसी लिये मै आपका आदर और सम्मान भी करती हूं  मै आपके बारे मे बहुत अच्छा सोचती थी. पर मुझे नहीं पता था की आप इतने लालची और खुदगर्ज इंशान होंगे. आपको पांच लाख चाहिये ना , क्या कभी इतने रुपये एक साथ देखे भी है. आपका बेटा इतने सालो मे एक स्कूटर नहीं खरीद सका तो वो कार कैसे मैनेज करेगा. कहां से लायेगा पेट्रोल भराने का खर्च . अंकल आप देगे य आंटी आप देंगी बोलिये अब आप इतने शांत क्यों होगये. क्या आपके घर मे बहन बेटियों को डोळियों मे नहीं बिदा किया गया.आप कैसे एक लड्की के पिता को असहाय और कमजोर  बना सकते है. हां  मै मंगली हूं पर आप के यहां मुझे गिरवी रखने के लिये मेरे माता पिता ने इस लायक नहीं बनाया है."
 इतना खतरनाक लेक्चर सुनने के बाद शर्मा जी पत्नी से नहीं रहा गया. वो तपाक से बोली. "अब चलो जी . अब क्या सुनने के लिये बचा है यहां. इस तरह की तेज तर्रार लडकी से नहीं करनी अपने बेटे की शादी.ये तो हमारा जीना दुशवार कर देगी.मै इसके मामा जी से कह दूंगी तो वही रिस्ता इसके लिये सही रहेगा."
और शर्मा जी , उनकी पत्नी और बेटा उठ कर चल दिये. इधर रमाशंकर जि को स्वाती की यह बेहूदगी पसंद नही आयी. उन्होने उसके गाल मे एक जोर का तमाचा जडा. उनकी इज्जत पूरी तरह से नीलाम हो चुकी थी अब शर्मा जी इस किस्से को पूरी सोशायटी मे गायेगे. इस सदमे को बर्दास्त ना कर पाने कि वहज से उन्हे बहुत जोर का दर्द सीने मे उठा. और इसके बाद उन्होने बिस्तर पकड लिया. नियति को कुछ और ही मंजूर था, शादी का टूट जाना रमाशंकर जी के लिये काल का योग बन गया. और एक दिन सुबह सुबह उनके प्राण पखेरू उड गये. यह सब इतना जल्दी घटित हुआ कि किसी को कानों कान खबर नहीं हुयी, सारी जमा पूंजी कितने दिन चलती. आखिरकार गरीबी भी जल्द ही स्वाती के घर की बिन बुलायी मेहमान बन गयी.
धीरे धीरे स्वाती को घर चलाने के लिये नौकरी की जरूरत महसूस हुयी. बहुत मसक्कत करने के बाद एक इंटरनेशनल कंपनी मे नौकरी भी लग गयी. अब तो उसकी मां भी बहुत खुश थी. नौकरी को अभी कुछ ही महीने हुये थे कि अचानक   एक दिन उसके उम्र दराज बोस ने एक दिन ओवर टाइम के बहाने रोक लिया. स्वाती की मजबूरी कि वह ना नहीं कह सकी.
 स्वाती को उस रात वापिस लौटते हुये महसूस हुआ कि दुनिया सिर्फ़ व्यवहारिक नहीं बल्कि अपना दैहिक स्वार्थ भी बेबस ळडकियों से सिद्ध करना बखूबी जानती है. अपनी उमर के बराबर लडकी का पिता जो उसका बोस था उसे एक भी शर्म नहींआयी अस्लील हरकतें करने हुये. दूसरे  ही दिन सुबह उसने अपना रिजाइन लेटर उसके मुंह मे फ़ेंक कर चली आयी. इस घटना ने उसे जिंदगी का नया सबक दिया. वो मां को बिन बताये एक नई जाब की तलाश करने लगी.  और  उसकी मेहनत और बगल की एक आंटी के सहयोग से उसे एक स्कूल मे टीचर की नौकरी मिल ही गयी. मजबूरी ने उसे एक इंजीनियर से टीचर बन दिया. अब वो अपने विद्यार्थियों को इंजीनियर  बनाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिये मेहनत कर रही थी. उसका इस साल का जन्मदिन भी फ़ीका ही रहा.
 स्कूल की सारी व्यव्स्थायें भी उसकी अनुकूल थी, और इस काम मे उसका  मन भी लगने लगा था. और धीरे धीरे उसके मन को भाने लगा उसके हि साथ का एक नौजवान टीचर जिसका नाम था नीरज. कई मुश्किल भरे कामों मे और हर मुसीबतों से वो ही स्वाती को बाहर निकालने लगा. यही उसकी फ़ितरत भी थी, कभी कभी तो स्वाती को उसकी नसीहतें डांट की तरह महसूस हुआ करती थी. जो स्वाती के बर्दास्त के बाहर थी. पर कुछ भी हो नीरज स्वाती की आदत मे सुमार हो गया था. अब उसकी डांट मे भी स्वाती खुश हो लेती थी. और इस तरह स्वाती अपने अतीत को भुला कर वर्तमान को जीने लगी थी.नीरज भी स्वाती की खुशियों को अपनी खुशियों से जोड कर धीरे धीरे प्यार करने लगा था.
एक दिन जब प्रिंसिपल ने कहा."आज स्वाती तुम्हे पूरी कापी जांच करके ही स्कूल जाना है."
इतना सुन कर उसके होश उड गये. उसे अपने बोस के साथ बिताये मजबूरी के वो पल याद आ गये . पर नीरज ने उसकी कापी चेक भी कराया और अपने बेस्ट फ़्रैण्ड की पार्टी छोड कर वो स्वाती को घर भी छोडने गया. और तब से स्वाती का नीरज के लिये देखने का नजरिया भी बदल गया.
 एक दिन नीरज जैसे ही स्टाफ़ रूम  मे आया. और नजर दौडाई तो देखा की स्वाती खिडकी के पास  खडी अपने दुपट्टे से आंशू पोंछ रही थी.  नीरज जैसे ही पीछे से उसकी आंखे अपने हाथों से बंद किया तो उसे हाथों मे गीलापन मह्सूस हुआ. नीरज को देखते ही स्वाती उसकी बांहों मे जा समायी. नीरज ने उसे कुरसी मे बिठाया. और इस दुःख का कारण पूंछा. स्वाती ने उसे बताया कि उसकी वहज से ही उसके पिता जी का देहांत हो गया था. और इसकी प्रमुख वजह उसकी शादी टूटना था क्योंकी वह एक मंगली है.
  नीरज ने उसे मजाक के अंदाज मे बोला-"क्या मैडम आप भी पागल पन वाली बातें करती रहती है.ये सब दकियानूशी विचारधाराओ को लेकर रोती रहती है. चलिये मै आपको एक आप्शन देता हूं, आप मुझसे शादी करलीजिये. मेरे घर मे कोई  नहीं है चाचा जी ने मुझे पाला पोशा बडा किया. खुश रहेंगी. इसतरह से आपको आंशू तो बहाना नहीं पडेगा. नहीं तो यदि मै चला गया तो फ़िर किस से लिपट कर रोयेंगी."
 स्वाती के लबों मे मंद मंद मुस्कान आगई. फ़िर क्या था . वो अपना पीरियड लेकर आयी. फ़िर दोनो स्वाती के घर की ओर चल पडे.स्वाती ने सिर्फ़ इतना ही नीरज से कहा."सर आप को कौन सी बात कब कहनी है  ,कुछ समझ मे आता भी है या नहीं कहां से बात शुरू करते है और कहां पर खत्म कुछ नहीं पता होता है आपको."
  अगले रविवार को स्वाती को बिन बताये नीरज अपने चाचा और चाची जी के साथ उसके घर पहुंच गया. उसके चाचा और चाची ने स्वाती की मां से बात की. और आने वाला समय भी स्वाती और नीरज की शादी का गवाह बना. लिखा जो होता है वही व्यक्ति को मिलता है. आज तीन साल गुजर चुके है. नीरज और स्वाती एक प्राईवेट कालेज मे प्राध्यापक है और एक नन्ही सी बेटी है जिसका नाम है नीरजा. खुशी सिर्फ़ इस बात की है की वो मंगली नहीं है.


अनिल अयान